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क्या शर्मशार करने वाले अपने ट्रैक रिकॉर्ड को उलट पाएंगे उड़ीसा के नये मुख्यमंत्री माझी?

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एसएन साहू

चार बार के विधायक मोहन चरण माझी ने 12 जून को उड़ीसा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी समेत बीजेपी के कई शीर्ष नेता मौजूद थे।

हालांकि बीजेपी ने उनकी आदिवासी पहचान को खूब प्रचारित किया और यह भी बताया कि वह बेहद साधारण परिवार से आते हैं। लेकिन पार्टी ने शर्मशार करने वाले उनके कारनामे को छुपाने की हरचंद कोशिश की। उसने यह नहीं बताया कि मोहन चरण माझी ग्राहम स्टेंस हत्याकांड के मुख्य दोषी और सजायाफ्ता दारा सिंह की रिहाई के लिए कियोन्झोर जेल के सामने 2022 में धरने पर बैठे थे। आपको बता दें कि दारा सिंह जनवरी 1999 में हुए इस हत्याकांड में आजाीवन कारावास की सजा काट रहा है।

यह पूरे उड़ीसा पर धब्बा है कि बीजेपी ने नवीन पटनायक के बाद माझी को मख्यमंत्री के लिए चुना। पटनायक जो रिकार्ड 24 सालों तक मुख्यमंत्री रहे, ने कंधमाल इलाके में ईसाई विरोधी दंगे होने के बाद 2009 में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था।

हिंदुत्व की ताकतों द्वारा ग्राहम स्टेंस की हत्या

ग्राहम स्टेंस और उनके छोटे बच्चे की 1999 में उड़ीसा में की गई बर्बर हत्या ने पूरे देश को हिला दिया था। और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस पर अपना गहरा रोष जाहिर किया था। इसके साथ ही उसने इस हैवानी अपराध के लिए तीखी नाराजगी जाहिर की थी। उस समय के राष्ट्रपति केआर नारायणन ने हत्या को सहिष्णुता और सद्भावना के समय परीक्षत दौर में एक स्मारकीय विचलन करार दिया था। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि हत्या दुनिया की काले कारनामों की खोज से संबंध रखती है।

देशव्यापी विरोध और आक्रोश और बजरंग दल- आरएसएस से नजदीकी रिश्ता रखने वाले विश्व हिंदू परिषद का एक घटक संगठन- के इस ठंडे दिमाग से की गयी इस हत्या के पीछे हाथ की आशंका के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी ने एक तीन सदस्यीय कैबिनेट टीम को उड़ीसा भेजा था और सुप्रीम कोर्ट के जज के नेतृत्व में एक न्यायिक जांच की घोषणा की थी। इसके साथ ही अपराध को अंजाम देने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने का भरोसा दिया था।

गहरे दुख के साथ उन्होंने कहा था कि स्टेंस की हत्या हमारे सामूहिक विवेक पर एक धब्बा है और उन सब चीजों के खिलाफ जाती है जिसे गांधी ने हमें पढ़ाया है।

वास्तव में लंबे समय तक चलने वाली एक न्यायिक प्रक्रिया के बाद केस के मुख्य अभियुक्त बजरंग दल के दारा सिंह को सेसन्स कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई। 2005 में उड़ीसा हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया। बाद में 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा को बनाए रखा।

मोहन माझी का दारा सिंह को समर्थन

11 साल बाद सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चाह्वाणके- एक चैनल जो लोगों के खिलाफ आस्था के आधार पर घृणा फैलाने के लिए जाना जाता है- ने दारा सिंह की रिहाई की मांग की। यहां तक कि वह उड़ीसा के कियोंझोर जेल में दारा सिंह से मिलने चले गए जहां वह अपने आजीवन कारावास की सजा काट रहा था।

जब जेल के अधिकारियों ने चाह्वाणके के आवेदन को खारिज कर दिया तो वह जेल के बाहर ही विरोध में धरने पर बैठ गए और फिर उनके साथ और उनके समर्थन में स्थानीय विधायक मोहन माझी कुछ स्थानीय समर्थकों के साथ बैठ गए और इस तरह से उनकी मांगों का समर्थन किया।

चाह्वाणके ने कहा कि दारा सिंह पिछले 21 साल से जेल में है। आगे जोड़ते हुए उसने कहा कि देश में शायद ही कोई दूसरा हो जिसने 20 साल से ज्यादा सजा काटी हो। उन्होंने दारा सिंह से न मिलने की अर्जी का खारिज किया जाना अपने अधिकारों का उल्लंघन बताया। और इस बात का संकेत दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

मोहन माझी जो उड़ीसा विधानसभा में चीफ ह्विप थे ने कहा कि यह केवल एक मांग है। अगर परिस्थिति बनी तो हम पार्टी में उनका साथ देने पर विचार करेंगे।

वही माझी जिन्होंने दारासिंह की रिहाई की तथाकथित मांग को पूरा करने का वचन दिया था अब वही संविधान की सच्ची आस्था और निष्ठा की शपथ लेकर उड़ीसा के मुख्यमंत्री बन गए हैं। लेकिन दारासिंह की रिहाई के लिए धरने पर बैठने का उनका शर्मनाक रिकार्ड संविधान, उड़ीसा और उसके लोगों का अपमान है।

माझी का रिकार्ड किसी को भी उड़ीसा के सेकुलर मिजाज और सांप्रदायिक एकता को बनाए रखने की उनकी चाहत और योग्यता को आशंकाओं के घेरे में डाल दिया है। आपको बता दें कि 2009 में हुए कंधमाल दंगे ने इस मिजाज को खतरे में डाल दिया था और उस समय बीजेडी-बीजेपी का गठबंधन सूबे में सत्ता में था।

अभी पिछले साल संबलपुर में हिंदुत्व की ताकतों द्वारा मुसलमानों से जुड़े घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया था। हिंसा ने हालांकि हिंदुओं को भी प्रभावित किया था। क्योंकि सांप्रदायिक एकता को पहुंचे नुकसान ने स्थानीय अर्थव्यवस्था और आजीविका को समान रूप से प्रभावित किया था।

माझी का ट्रैक रिकॉर्ड संविधान के अनुरूप उड़ीसा में शासन करने की उनकी क्षमता के बारे में ढेर सारे सवाल खड़ा करता है। 

(एसएन साहू पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के ओएसडी रह चुके हैं। दि वायर से साभार लेकर हिंदी अनुवाद किया गया है।)

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