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क्या यात्रा के आने से पहले अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मनमुटाव समाप्त हो जाएगा?

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एस पी मित्तल,अजमेर

घोषित कार्यक्रम के अनुसार राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा 3 दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश करेगी। यह यात्रा रात 9 बजे झालावाड़ पहुंचेगी। कांग्रेस पार्टी ने जो कार्यक्रम जारी किया है उसके अनुसार राहुल की यात्रा झालावाड़ से कोटा, बारां, सवाई माधोपुर, दौसा, अलवर जिले में होते हुए दिल्ली की ओर जाएगा। राहुल को कश्मीर तक जाना है। राजस्थान में जिन जिलों से यात्रा गुजरेगी उनमें से अधिकांश गुर्जर बाहुल्य है। इनमें गुर्जर आरक्षण आंदोलन से प्रभावित लालसोट, सिकंदरा, बांदीकुई जैसे उपखंड भी आते हैं। हालांकि राजस्थान कांग्रेस शासित प्रदेश है और यात्रा के शांतिपूर्ण तरीके से गुजरने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की है, लेकिन इन दिनों सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच जो मनमुटाव चल रहा है, उसे देखते हुए अनेक आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही है। पिछले दिनों ही पुष्कर में गुर्जर समाज के एक कार्यक्रम में सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत और कई मंत्रियों तक को बोलने नहीं दिया। हंगामे के कारण सीएम के वैभव, उद्योग मंत्री शकुंतला रावत (गुर्जर), आरटीडीसी के चेयरमैन धर्मेन्द्र राठौड़ आदि भाषण दिए बगैर ही बैरंग लौटना पड़ा। खेल मंत्री अशोक चांदना का तो मंच पर विवाद भी हो गया। सीएम गहलोत भले ही सचिन पायलट को अभी भी नकारा और निकम्मा मानते हों, लेकिन यह हकीकत है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का एक भी गुर्जर उम्मीदवार चुनाव नहीं जीता। तब पायलट के मुख्यमंत्री बनने को लेकर गुर्जर समुदाय में उत्साह था। लेकिन पायलट के सीएम न बनने पर अब उतनी ही निराशा और आक्रोश है। यह सही है कि पायलट की नजदीकियां राहुल गांधी से बढ़ी हैं। ऐसे में पायलट कभी नहीं चाहेंगे कि गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों में भारत जोड़ों यात्रा के दौरान कोई हंगामा या विवाद हो। पायलट खुद भी राजस्थान में राहुल गांधी के साथ रहेंगे। लेकिन गुर्जर समुदाय खास कर युवाओं की भावनाओं पर काबू पाना सरकार के किसी भी तंत्र के लिए आसान नहीं होगा। इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी की यात्रा से गहलोत और पायलट के बीच मनमुटाव समाप्त हो जाएगा? राजस्थान में राहुल की यात्रा 18 दिसंबर तक रहेगी। यानी पूरे 15 दिन। जहां तक मन मुटाव का सवाल है तो अभी तक भी दोनों के बीच मधुर संबंध नहीं हुए हैं। जहां पायलट ने गहलोत की तुलना कांग्रेस के बागी नेता गुलाम नबी आजाद से करते हुए सीएम के पद पर जल्द निर्णय लेने की बात कही है, वहीं गहलोत ने राजनीति में सही एप्रोच की बात कही।  गहलोत और पायलट भले ही एकदूसरे का नाम नहीं ले रहे हों, लेकिन दोनों के समर्थक एक दूसरे पर खुले आरोप लगा रहे हैं। गहलोत के सबसे विश्वास पात्र आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ तो पायलट समर्थक विधायकों पर भाजपा से पैसा लेने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं वेद प्रकाश सोलंकी, राम निवास गवाडिय़ा जैसे विधायक, धर्मेन्द्र राठौउ़ को सत्ता का दलाल बता रहे हैं। यानी अभी तक तो दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच तलवारें खींची हुई है। पायलट के समर्थकों का मानना है कि पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए ही अशोक गहलोत ने 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक नहीं होने दी। 

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