इंदौर
मध्यप्रदेश खासकर इंदौर के कद्दावर भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय की ‘घरवापसी’ की अटकलों ने प्रदेश में पार्टी नेताओं की नींद उड़ा दी है। राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय से हाल ही में पार्टी ने बंगाल का प्रभार वापस ले लिया। उनकी जगह यूपी प्रभारी रहे सुनील बंसल को बंगाल भेजा गया है। राजनीतिक विश्लेषक इसे विजयवर्गीय से ‘जिम्मेदारी छीनना’ बता रहे हैं। समर्थकों का तर्क है कि वहां सात साल हो गए थे, अब नई जिम्मेदारी मिलेगी ही। पर क्या?
पहले बात बंगाल में परफॉर्मेंस की…
- हिंदुत्व के एजेंडे पर चलती आ रही भाजपा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ एक बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा रहा है। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद भाजपा ने गैर हिंदी राज्यों में सबसे ज्यादा फोकस पश्चिम बंगाल पर ही किया। इसी वजह से NRC और CAA को पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा मानती है। ऐसे में बंगाल जीतना पार्टी के लिए बहुत जरूरी था। पर पार्टी ऐसा नहीं कर सकी। हालांकि वहां पार्टी का प्रदर्शन जरूर सुधरा और विधानसभा चुनाव में वो 3 से 77 तक पहुंच गए। वहीं लोकसभा में इनकी संख्या बढ़कर 2 से 18 हो गई।
- पार्टी इससे एक हद तक संतुष्ट थी कि जीते नहीं, लेकिन सीटें तो बढ़ गई हैं। पर विजयवर्गीय के लिए मुश्किलें तब बढ़ना शुरू हो गईं जब ममता बनर्जी की पार्टी TMC से बीजेपी में आए नेताओं ने घर वापसी शुरू कर दी। इससे पार्टी की नेशनल इमेज को धक्का लगा और विरोधी पार्टियां इसे जमकर BJP हाईकमान के खिलाफ इस्तेमाल करने लगीं।
विजयवर्गीय के भविष्य की बात…
सरकार में हिस्सेदारी? इसकी संभावना नहीं है। कारण, संगठन में काम करने के कारण ही बेटे आकाश विजयवर्गीय को भी पार्टी ने टिकट दिया। एक परिवार, दो पद नहीं के फॉर्मूले के कारण इनका दावा सांसद और विधायक दोनों पदों के लिए नहीं बनता। अब ये टिकट ‘मांगने’ के बजाय ‘दिलाने’ की भूमिका में ज्यादा हैं। समर्थक विधायक रमेश मेंदोला, विधायक बेटा आकाश विजयवर्गीय, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, सभापति मुन्नालाल यादव जैसे इंदौर के सभी ‘KEY टिकट्स’ विजयवर्गीय की मर्जी से दिए गए।
संगठन में भविष्य? कैलाश विजयवर्गीय 7 साल से लगातार राष्ट्रीय महासचिव हैं। बंगाल का प्रभार वापस लेने के बाद पार्टी ने फिलहाल संगठन में कोई नई जिम्मेदारी नहीं दी है। चूंकि अगले साल कई राज्यों में चुनाव हैं। इनमें मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय, मिजोरम, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, नागालैंड शामिल हैं। इन राज्यों में से किसी एक में बतौर चुनाव प्रभारी उतारा जा सकता है। हालांकि मप्र का चांस कम है क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सक्रिय भूमिका में हैं। विजयवर्गीय को वापस MP में सक्रिय पद देना, यानी एक नया ध्रुव खड़े करने जैसा होगा, ऐसा राजनीतिक जानकारों का कहना है।
आखिर में…यह सवाल कई सवालों को जन्म दे रहा है…
परफॉर्मेंस रिव्यू और सरकार-संगठन में पद को लेकर विश्लेषक और समर्थक तमाम तर्क दे रहे हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि विजयवर्गीय से यह प्रभार तब वापस क्यों लिया गया जब वे भारत में थे ही नहीं। वे अमेरिका में हैं। इसी दौरान बगैर विजयवर्गीय को नई जिम्मेदारी दिए उनसे प्रभार आखिर वापस क्यों लिया गया? इसका जवाब 10 दिन बाद या तो खुद विजयवर्गीय दे सकेंगे या भाजपा हाईकमान।
एमपी में भी वापसी की चर्चा, पर यह बेहद चुनौतीपूर्ण
कैलाश विजयवर्गीय एमपी की राजनीति से करीब सात सालों से दूर हैं। हालांकि सियासी रूप से हस्तक्षेप रखते हैं, लेकिन उतने सक्रिय नहीं हैं। अभी वह किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। अगर कैलाश एमपी की राजनीति में वापस लौटते हैं तो उनकी भूमिका क्या होगी। यदि वे एमपी में वापसी भी करते हैं, तो यहां उनके सामने ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा चुनौती के रूप में सामने आ सकते हैं। पार्टी सिंधिया की भूमिका को लेकर सेफ साइड खेल सकती है। वहीं तोमर का उड़ीसा के प्रभारी के रूप में प्रदर्शन अच्छा रहा है। वे केंद्रीय मंत्री भी हैं। इसी तरह नरोत्तम मिश्रा भी प्रदेश में कैबिनेट मंत्री हैं, वे मप्र में नंबर दो के नेता हैं। ऐसे में विजयवर्गीय के सामने घर के ही नेताओं की चुनौती से पार पाना आसान काम नहीं होगा।
प्रभारी के रूप में विजयवर्गीय का ट्रैक रिकॉर्ड
2014- हरियाणा : 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने हरियाणा में सिर्फ 1996 के चुनाव में 11 सीटें जीतकर दहाई का आंकड़ा पार किया था, लेकिन 2014 में पार्टी ने अपने दम पर 90 में से 47 सीटें जीती थीं। 33 प्रतिशत वोट हासिल करके भाजपा राज्य की नंबर वन पार्टी बनी थी।
2015-पश्चिम बंगाल : 2015 से विजयवर्गीय बंगाल में सक्रिय रहे। बीते 6 सालों में दो विधानसभा चुनाव (2016 और 2021) और एक लोकसभा चुनाव (2019) हुए। लेकिन बंगाल में विधानसभा के दोनों ही चुनावों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में जरूर 42 में से 18 सीटें जीतकर BJP ने सबको हैरान कर दिया था। 2021 में BJP का 200 सीटें जीतने का लक्ष्य था, लेकिन वो महज 77 सीट ही जीत सकी।