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रमजान और नवरात्र का साथ और हमारी  कैसी दूरी?

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-सुसंस्कृति परिहार 

ये कोई नई बात नहीं है कि रमजान और नवरात्र का साथ साथ मिलाप हो रहा है। ऐसे मौके अनेकों बार आए हैं। दोनों त्यौहारों पर हमारे देश की मिली जुली संस्कृति की एक माकूल तस्वीर हमेशा से हमने देखी है।

प्रकृति का भी अजब सहयोग इन दोनों पर्वों में देखने मिलता है। वह है उपवास का होना। प्रकृति इस समय बड़े नाज़ुक दौर में होती है आधी दुनिया में शीत से उष्ण की ओर इसका पदार्पण होता है और आधी दुनिया ग्रीष्म से शीत की ओर प्रस्थान करती है।ऐसे में शरीर का सामंजस्य कठिनाई भरा होता है इसलिए बीमारियों का मौसम रहता है। हमारे पूर्वजों ने इसीलिए इस बीच ऐसे पर्वों की स्थापना की जिसमें उपवास कर अपने शरीर को वातावरण के अनुरूप लाने की कोशिश होती है।इसकी पुष्टि वैज्ञानिक भी करते हैं। रमजान में जहां तकरीबन एक माह का दिन का उपवास होता है।जल ग्रहण भी वर्जित है।वे सिर्फ रात में भोजन करते हैं ताकि सोने के बाद ठीक से हजम हो सके। रात समाप्त होने के पहले भी वे हल्का भोजन वे लेते हैं। दूसरी ओर चैत्र प्रतिपदा की परमा या प्रथम दिवस से हिंदु धर्मावलंबी भी नौ दिन का व्रत रखते हैं। कुछ लोग यहां भी पानी नहीं पीते।अन्न से दूर रहते हैं सिर्फ़ फलाहार या जूस ही लेते हैं।कहने का आशय यह है कि दोनों त्यौहारों में अद्भुत साम्य है। दोनों के अनुयाई इस दौर में साफ़ पाक दामन रखने की भी पूरी कोशिश करते हैं।मन की स्वच्छता और अपने इष्ट के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम इस वक्त देखने को मिलता है।

 जहां एक ओर रमज़ान का इतिहास 610 ई. में पैगम्बर मुहम्मद  से जुड़ा है, जब उन्हें पहली बार अल्लाह  से रहस्योद्घाटन प्राप्त हुआ था। इस पवित्र महीने के दौरान, फ़रिश्ते जिब्रील मक्का में पैगम्बर  के सामने प्रकट हुए और उन्हें अल्लाह के पवित्र शब्द दिए, जो बाद में कुरान बन गए।यह पैगंबर मुहम्मद के पहले रहस्योद्घाटन का उत्सव है, जो माउंट हिरा की एक गुफा में हुआ था जब उन्होंने फरिश्ता जिब्रील को देखा था। इनके रोज़ा रखने की वजह ये बताई जाती हूं कि यह मुसलमानों को धार्मिक होना सिखाता है, जिससे उन्हें सांसारिक सुखों से दूर रहने और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।

दूसरी ओर चैत्र नवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, जब धरती पर महिषासुर का आतंक काफी बढ़ गया था और वरदान के कारण कोई भी देवता या दानव उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सका, तो ऐसे में देवताओं ने माता पार्वती को प्रसन्न कर उनसे रक्षा करने को कहा। इसके बाद मातारानी ने अपने अंश से नौ रूप प्रकट किए, जिन्हें देवताओं ने अपने शस्त्र देकर शक्तिशाली बनाया। ये क्रम चैत्र के महीने में प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर 9 दिनों तक चला और यही कारण है कि इन नौ दिनों को चैत्र नवरात्रि के तौर पर मनाया जाने लगा।इसे रामनवमी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि चैत्र नवमी के दिन राम जी का जन्म हुआ था। जो भारतीय समाज में उत्तर से दक्षिण तक लोकप्रिय हैं। यहां भी व्रत के ज़रिए धार्मिक आस्था को मज़बूती देते हैं। इस दौरान लोग तामसिक चीजों को त्यागकर सात्विक जीवन जीते हैं और विषय-भोग से दूर रहते हैं। नवरात्रि के व्रत रखने से बुद्धि विवेक की प्राप्ति भी व्यक्ति को होती है। बताते हैं,जैसे रामजी को प्राप्त हुई थी।

यानि रमजान और नवरात्र दोनों दो महापुरुषों से जुड़े पर्व हैं। एक मोहम्मद पैगंबर की याद को समर्पित है तो दूसरा राम को भी भगवान का अवतार मानकर मानवीय करण कर उनके स्वरूप से प्रेरणा लेता है।

इसलिए इन दोनों त्यौहारों का आगमन हमें शुचिता और परस्पर सद्भाव की ओर ले जाता है। कायनात सभी महान व्यक्तित्व को एक नज़र से देखती है इसलिए इनमें खुशियां नज़र आती हैं।हम रामनवमी यानि राम का जन्मदिन नवरात्र का समापन धूमधाम से मनाते हैं तो मुसलमान रमज़ान की समाप्ति ईद, चांद के दीद के बाद मनाते हैं।हमारा देश सदियों से इन पर्वों को एका से मनाता आ रहा है। लेकिन आज चंद उपद्रवकारियों द्वारा इन पावन पर्वों में रंग में भंग करने की कोशिश होने लगी है। ऐसे लोगों की पहचान कर ,उन्हें दंडित उनका समाज ही करेगा। तभी यह पागलपन बंद होगा। आईए हम उत्साह पूर्वक इन महान पर्वों का आनंद लें।

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