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गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाने के साथ ही भाजपा में ऑपरेशन राजस्थान शुरू

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एस पी मित्तल,अजमेर

कई बार यह सवाल उठता है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता में क्या फर्क है? इस सवाल का जवाब राजस्थान में भाजपा के कद्दावर नेता और 78 वर्ष की उम्र में भी विधानसभा में भाजपा संसदीय दल के नेता गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाने से समझा जा सकता है। राजस्थान में नौ माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और गत 25 वर्षों की परंपरा के अनुसार इस बार भाजपा की सरकार बनने की बारी है। भाजपा की ोर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार कटारिया भी थे, लेकिन ऐन मौके पर कटारिया को सक्रिय राजनीति से दूर कर असम का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। कटारिया ने भी बिना किसी एतराज के राज्यपाल पद स्वीकार कर लिया। स्वाभाविक है कि राज्यपाल नियुक्त करने से कटारिया की सहमति ली गई होगी। सहमति के दौरान कटारिया ने यह भी नहीं कहा होगा कि मेरे बगैर राजस्थान में भाजपा की सरकार नहीं बन सकती है। यह भी नहीं कहा होगा कि मुझे सक्रिय राजनीति से अलग करने पर मेरे समर्थक नाराज हो जाएंगे। यह भी नहीं कहा होगा कि मेरे दम पर ही राजस्थान में भाजपा मजबूत स्थिति में है। कटारिया ने यही कहा होगा कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता हूं और मेरे बारे में बड़े नेता जो फैसला लेंगे, वह स्वीकार है। आठ बार विधायक, एक बार सांसद और दो बार मंत्री, तीन बार भाजपा संसदीय दल का नेता बनने के लिए कटारिया ने भाजपा और संघ का आभार भी जताया होगा। असल में भाजपा में दो प्रकार के नेता होते हैं। एक संघ के स्वयंसेवक रहने के बाद संघ के निर्देश पर भी भाजपा का कार्यकर्ता बनना और दूसरे गैर संघी। इसमें दूसरे दलों से आए नेता और स्काईलैब की तरह टपके नेता भी शामिल होते हैं। स्काईलैब और दूसरे दलों से आए नेताओं को यह भ्रम हो जाता है कि उन्हीं की वजह से भाजपा चल रही है। ऐसे नेता भाजपा की मजबूत की दुहाई देकर सक्रिय राजनीति से अलग नहीं होते और न ही संगठन में दूसरी भूमिका स्वीकार करते हैं। ऐसे नेताओं की जिद से भी कई बार पार्टी को नुकसान उठाना पड़ता है। लेकिन वहीं संघ की पृष्ठ भूमि  वाले भाजपा कार्यकर्ता पार्टी के नेताओं के निर्देशों को मानने के लिए तत्पर रहते हैं। चूंकि राजस्थान में नौ माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए राष्ट्रीय नेतृत्व ने ऑपरेशन राजस्थान शुरू कर दिया है। फिलहाल राज्यपाल बना कर रोग की जांच पड़ताल की है। यदि जरूरत पड़ी तो रोग निदान के लिए सर्जरी भी की जाएगी। भाजपा में जो नेता यह समझते हैं कि उन्हीं की वजह से पार्टी है तो उन्हें अब सर्जरी के लिए तैयार रहना चाहिए। कई बार सर्जरी के डर भी रोग का निदान हो जाता है। यह माना कि विधानसभा चुनाव जातिगत समीकरण और किसी नेता की लोकप्रियता मायने रखती है, लेकिन राजस्थान में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे और देशहित भी मायने रखता है।

देवनानी भी बनेंगे राज्यपाल:

हालांकि कोई नियम नहीं है, लेकिन फिर भी भाजपा में 75 वर्ष की उम्र वालों को राज्यपाल या मार्गदर्शक मंडल में रख दिया जाता है। लेकिन राजस्थान में जब कभी 75 वर्ष की उम्र का मुद्दा उठा था तो सबसे पहले 78 वर्षीय गुलाबचंद कटारिया का नाम ही आगे रखा जाता था। तब कटारिया की कद्दावर स्थिति को देखते हुए विधायक का टिकट कटना असंभव माना जाता था। भाजपा में 75 वर्ष की उम्र वाले जो नेता अब तक कटारिया की उम्र को आगे रखकर अपना बचाव करते थे, उन्हें अब संगठन का इशारा समझ लेना चाहिए। ऑपरेशन राजस्थान में भी अब कहा जा रहा है कि चार बार के विधायक और दो बार मंत्री रह चुके वासुदेव देवनानी को भी किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाया जा सकता है। देवनानी भी संघ की पृष्ठभूमि वाले भाजपा नेता हैं। यदि देवनानी को सक्रिय राजनीति से हटाया जाता है तो उनके निर्वाचन क्षेत्र अजमेर उत्तर में टिकट मांगने वालों की लंबी कतार होगी। देवनानी ने उदयपुर से आकर लगातार चार बार चुनाव जीता और अपनी राजनीति क्षमता का प्रदर्शन किया। देवनानी अजमेर उत्तर से हर परिस्थितियों में चुनाव जीते हैं। 

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