गांव, नगर और शहरों में युवा तेजी से राजनैतिक और गैर-राजनैतिक संगठनों से जुड़ रहे हैं. ऐसे युवा सोशल मीडिया और इन दलों द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के माध्यम से इन संगठनों में शामिल हो रहे हैं. इनमें विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, भीम आर्मी और विभिन्न राजनीतिक दलों के अनुषांगिक संगठन व अन्य दबाव समूह शामिल हैं.
कभी-कभी लगता है कि छात्र पढ़ाई और अपने भविष्य की परवाह किए बिना इन संगठनों से जुड़ रहे हैं. ये संगठन कैसे काम करते हैं, इनका प्रभाव कितना है, इनसे जुड़े युवा क्या सोचते हैं और संगठन से जोड़ने के लिए क्या जतन किए जाते हैं? हमने इन सवालों के जवाब जानने के लिए बांदा जिले का दौरा किया.
बांदा जिले के कोर्रा खुर्द गांव निवासी अरुण कुमार पटेल 2016-17 में हिंदू युवा वाहिनी के सक्रिय सदस्य थे. तब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का शोर अपने चरम पर था. पटेल ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ‘हिंदुओं को जगाने का काम’ कर रहे थे.
वे बताते हैं, “मैं सोशल मीडिया के माध्यम से इस संगठन से जुड़ा था. तब राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार अपने आखिरी दौर में थी. हमें सोशल मीडिया पर लेख और वीडियो के जरिए बताया जाता था कि मुसलमान गुंडागर्दी कर रहे हैं. दंगा फसाद की जड़ मुसलमान हैं. ये सब देखकर मैं भी हिंदू युवा वाहिनी में जुड़ गया. मुझे पहले साल तहसील मंत्री बनाया गया और बाद में जिला कार्यकारिणी सदस्य. इस दौरान हम गांव-गांव जाकर हिंदुओं को जागरूक करते थे. हिंदू समाज के बारे में बताते थे. मुस्लिम समाज के लोग, जो दंगा फसाद कर रहे हैं उनसे हमें कैसे बचना है ये सब जाकर लोगों को समझाते थे. हम गायों के लिए भी काम करते थे कि उन्हें कैसे बचाना है. कुल मिलाकर हिंदू धर्म के लिए काम करना था. हमारे व्हाट्सएप ग्रुपों में भी इन्हीं सब मुहिमों पर बातें होती थीं.”
पटेल अब कहते हैं, “जब मैं ये सब कर रहा था तब मेरी उम्र काफी कम थी. समझ नहीं थी और न ही कोई गाइड करने वाला था. अब लगता है कि वह एक गलत कदम था क्योंकि बिना भविष्य देखे ही राजनीतिक क्षेत्र में चले गए. अब अफसोस होता है. पढ़ लिया होता तो शायद कोई नौकरी कर रहा होता. काफी पढ़ाई की बर्बादी हुई है. आज मैं अपना दल (सोनेलाल) के लिए काम कर रहा हूं और बीजों की दुकान चलाता हूं.”
वह आखिरी में कहते हैं, “आज के युवा पहले अपना भविष्य देखें और पढ़ाई पर ध्यान दें. ऐसे संगठन सिर्फ बर्बादी की जड़ हैं.”
हालांकि, ये कहानी सिर्फ 28 वर्षीय अरुण कुमार पटेल की नहीं है. युवा गुमराह होकर ऐसे राजनीतिक चक्र में फंस जाते हैं कि फिर उनका निकलना मुश्किल हो जाता है.