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स्त्री माया लेकिन माया बिना शिव भी शव 

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          डॉ. विकास मानव 

माया क्या है? हम आपको अध्यात्म विज्ञान और आधुनिक विज्ञान दोनों दृष्टि से दिखाएंगे. 

          शिव ने महामाया को अपने शरीर से उत्पन किया। महामाया ने एक माया रची इसी माया से स्त्री का जन्म हुआ, और इसी माया ने इस संसार को अपने वश में कर रखा है। यह माया कभी किसी के वश में  नहींआ सकती है ना कोई इसकी गहराई समझ सकता है। माया का फैलाव अंतहीन है।

      सिर्फ शिव पुराण की इसी कथा से आधुनिक विज्ञान के कई पहलू समझे जा सकते है। जैसे प्रकाश की गति। प्रकाश की गति तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकंड है और कोई भी वस्तु इसकी गति के बराबर नहीं चल सकती। 

      अब इसका एक रहस्य समझिए। मान लें आप एक जगह खड़े हैं और आपके हाथ में टॉर्च है आप इस टॉर्च को एक पल के लिए फ़्लैश करते हैं एक लाइट का पुंज निकलता है और आपसे दूर तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से दूर चला जाता है। अगर आप इसकी जगह मान ले एक फुटबाल मान लो 100 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से दूर फेंकते हो तो वह आपसे 100 किलोमीटर प्रति सेकंड दूर जाएगा। लेकिन अगर आप साथ साथ फुटबॉल के 30 किलोमीटर प्रति सेकंड दौड़ना शुरू कर दो तो फुटबॉल कि गति अब आपके मुकाबले 70 किलोमीटर प्रति सेकंड ही रहेगी।

     अब अगर ऐसे ही आप लाइट के उस पुंज के साथ साथ 2 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड से दौड़ना शुरू कर दो तो अब लाइट की गति आपके मुकाबले सिर्फ 1लाख किलोमीटर प्रति सेकंड रह जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं होगा आप चाहे लाइट पुंज के मुकाबले चाहे जितना मर्जी तेज दौड़ो लाइट हर बार आपके मुकाबले 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से ही आगे जाएगी। आपके हाथ की टॉर्च से निकलने वाली लाइट हमेशा आपके मुकाबले 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से ही आगे जाएगी। लाइट के केस में गति विज्ञान का हर नियम फेल हो जाएगा। 

         इसीलिए लाइट की गति को एब्सोल्यूट माना गया है। इसका मुकाबला इस दुनिया में किसी भी वस्तु की गति नहीं कर सकतीं। और लाइट जो जितना दूर जाती जाएगी उतना फैलती जाएगी। मतलब माया किसी के वश में नहीं और माया अंतहीन है।

     अब इसी माया को स्त्री पुरषों के संबध में समझते है। क्योंकि महामाया ने ही स्त्री को भी उत्पन किया है। जब कोई पुरष किसी स्त्री के प्रेम में फस जाता है तो भी यही हाल होता है। हर पत्नी यही कहेगी की इनको मेरे लिए समय ही नहीं है अब आप सब काम छोड़ कर स्त्री के साथ प्रेम करने बैठ जाए तो स्त्री कहेगी ये मेरा पीछा ही नहीं छोड़ते इनको कोई काम धाम ही नही है। 

      मतलब स्त्री हमेशा आपको हर बात पर उलझा कर ही रखेगी। जो मांगेगी वह हाज़िर कर दो तब भी थोड़ी देर में कोई और पंगा खड़ा कर देगी। मतलब अगर कोई भी पुरष स्त्री के पीछे जितना मर्जी भाग ले जितना वह उसके पीछे भागेगा वह हर बार उससे आगे ही रहेगी। इसलिए कोई भी पुरष किसी स्त्री को कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर सकता। 

      यह स्त्री पुरष का रिश्ता सिर्फ मनुष्यों के आधार पर ही नहीं समझना चाहिए हमारे वैदिक ज्ञान में यह स्त्री पुरष रिश्ते की बात सभी जीवों के मेल फीमेल रिश्तों में लागू होती है। यही थी ब्रम्हा की सेक्सुअल reproduction या मथैनुनी सृष्टि का आधार। 

 आप अगर स्त्री के मुकाबले स्थिर बने रहोगे तो स्त्री आपको स्थिर भी नहीं रहने देगी। जितना मर्जी सिर पीट लो स्त्री कभी आपके वश में नहीं आ सकती। इस लिए जो पुरष अपने उद्देश्यों से भटक कर स्त्री के पीछे भागा रहता है वह कभी अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए आप स्थिर बन कर रहो। 

     जिस भी स्त्री से जितना भी समय आपका रिश्ता लिखा है उतने समय के लिए अपने आप बन कर रहेगा। अगर टूटना लिखा है तो टूट कर ही रहेगा।  क्योंकि स्त्री भी माया या शक्ति का ही एक रूप है जिसको पार पाना पुरष के वश में नहीं। और जो स्त्री आपसे जितना दूर जाएगी उसका फैलाव आपके व्यक्तित्व पर उतना ही विशाल होता जाएगा। मतलब माया का फैलाव या प्रकाश का फैलाव ज्यादा दूरी से और ज्यादा हो जाता है।

       इसीलिए अगर कोई लड़का निठ्ठला बैठा रहता है तो ब्जूर्ग लोग कहते हैं इसकी शादी करवा दो मतलब इसकी पूंछ में आग लगा दो। जब माया में उलझेगा तो माया के पीछे भागने लग जाएगा और कुछ ना कुछ करने लग जाएगा। 

      इसी तरह से कोई छोटा लड़का जी तीन तीन दिन बिना नहाए धोए आराम से स्कूल जाता है जब उसका किसी लड़की से अट्रैक्शन होना शुरू होता है तो वह बिना सजे सवरें घर से बाहर भी नहीं निकलता।

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 मनुष्यों के लिए स्त्री ही माया का रूप है। जिसको भी ऐसी स्त्री मिल जाए जो स्थिर स्वभाव की हो वह पुरष जीवन के बाकी क्षेत्रों में उतना ही ऊंचा जा सकता है। लेकिन माया स्थिर नहीं हो सकती इसलिए जीवन में उतार चढ़ाव आना आवश्यक हैं। इनको आप नहीं रोक सकते।

      अब जब हम किसी माया में उलझ जाते हैं।तो हमारी सारी ऊर्जा शक्ति तन की भी और मन की भी सिर्फ उसी माया को संभालने में लगी रहती है।

      आप संसार में देख सकते है कि बड़े बड़े पुरष सिर्फ इसी माया के सहारे बड़े भी बनते हैं और गिर भी जाते हैं। जब माया आप में प्रवेश करती है मतलब कोई स्त्री आपको सच्चा प्रेम करने लगती है तो जीवन आनंदमय होने लगता है और जीवन में आप दूसरे काम में भी तरक्की प्राप्त करने लगते हैं।

   लेकिन जैसे ही माया आप से बाहर या दूर जाने लगती है तो आपका जीवन मन और तन दोनों से कष्टकारी होने लग जाता है। चाहे आपको पता हो या नहीं कि जो स्त्री आपके जीवन में है वह आपसे अंदर ही अंदर दूर जा रही है। अब इसको दूर जाने से भगवान भी नहीं रोक सकता क्योंकि माया है ही चंचल।

    सांसारिक जीवन में सभी सुखों और दुखों का कारण माया या स्त्री ही होती है। स्त्री ही जन्म देती है, स्त्री ही पूरे आपके सांसारिक जीवन का आधार होती है। 

    अब बहुत से प्रेमी जोड़े या पति पत्नी आपस में बहुत लड़ते रहते हैं।कई पति पत्नी में तलाक तक की नौबत आ जाती है पुलिस कोर्ट कचहरी चली रहती है। इन सबका कारण सास बहू ननद भाभी आदि के रिश्ते या अवैध रिश्ते कारण होते हैं। 

  अब आगे कि बातें मै सिर्फ पुरषों के लिए लिख रहा हूं कृप्या स्त्रियां नाराज़ ना हों।उनके लिए मैं अलग से मोह नाम कि सीरीज लिखने जा रहा हूं। 

    किसी भी पुरष से दो स्त्रियों का रिश्ता बलैंस करना ही सबसे मुश्किल काम होता है। क्योंकि एक माया दूसरी माया को कभी भी बर्दास्त नहीं कर सकतीं मतलब दो स्त्रियां जैसे सास बहू का रिश्ता।  क्योंकि वे दोनों किसी भी पुरष को सिर्फ अपनी और ही खींचती हैं। बस आपको बीच से हट जाना है और  आगे बताया गया उपाय करना है। 

     इस स्थिति से कैसे बचा जाए इसका वेदों में बहुत अच्छा उपाय है। जैसे आपने देखा है को शिव पार्वती का जोड़ा सबसे उत्तम माना गया है। लेकिन इस जोड़े में भी गंगा और गौरी का झगड़ा होता है। अब गंगा के रूप को ही शिव पार्वती को हमेशा अपने साथ जोड़े रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं। मतलब गंगा को सिर पर धारण किया अर्थात दिमाग से गंगा को पत्नी माना। लेकिन संसार में पार्वती को।

     अब जो मै उपाय बताने जा रहा हूं वह सिर्फ बुद्धिमान पुरष ही समझ सकते हैं। आपको अपनी एक काल्पनिक दुनिया में एक अपनी मनपसंद कल्पनिक स्त्री की कल्पना करनी है और उसको अपनी पत्नी स्वीकार करना है। जब भी अपने लाइफ पार्टनर के बारे में सोचना है तो उसी काल्पनिक स्त्री के बारे में सोचना है हर चीज में। और जो आपकी सांसारिक पत्नी है उसकी अपनी पड़ोसन समझना है। 

     अब जो आपकी सांसारिक पत्नी है वह यह कभी समझ नहीं पाएगी की उसकी प्रतिद्वंदी कौन है। वह अपनी सारी ऊर्जा उस काल्पनिक स्त्री के पीछे लगा देगी। इससे वह आपसे अपनी सास ननद आदि से अपना फोकस हटा लेगी। और आपको पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए आपसे प्रेम बढ़ाना शुरू कर देगी। लेकिन आपने हमेशा अपना प्रेम उसी काल्पनिक स्त्री से करना है। 

     जब तक आप ऐसा करते रहेंगे आपकी पत्नी बाकी सब से झगड़े भूल कर सिर्फ आपकी कल्पना में छाई स्त्री को ढूंढती रहेगी और आपको पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए आपके आगे पीछे नाचती रहेगी।

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जब कोई पुरष किसी स्त्री से संबंध बनाता है मान लो जैसे किसी की शादी हो जाए। तो बस उसी पल से स्त्री या माया की छुपी हुई एक इंस्टिक्ट बिना विचारे या दिमाग से सोचे एक्टिवेट हो जाती है।

      वह स्त्री या माया अपनी शक्तियों का इस्तेमाल पुरष पर सौ प्रतिशत काबू कैसे किया जाए उस पर काम करना शुरू कर देती है और आम बुद्धि का पुरष यही सोचता रह जाता है जीवन भर कि अगर स्त्री न होती तो मेरा कया होता। इस बात को मैं बहुत आध्यात्मिक तरीके से न समझा कर कुछ उदाहरणों से बताता हूं।

      जैसे पहले एक अकेला रहने वाला पुरष रोज नहाने के बाद जहां अपना तोलिया और अंडर गारमेंट हमेशा सूखने डालता था और रोज वहीं से उठाता था कभी उसका न तोलिया गायब हुआ न अंडर वियर। लेकिन शादी होने के बाद या लिव इन रिलेशनशिप के बाद, सबसे पहला पंगा यहीं से शुरू होता है कि उसका तोलिया और अंडर गारमेंट उसे ढूंढने से नही मिलते क्योंकि स्त्री घर आते ही सबसे पहले केयर करने के नाम पर अनजाने में उसका तोलिया और अंडर गारमेंट छुपा कर रखना शुरू कर देती है, ताकि जब भी पुरष को उसकी जरूरत हो तो उसे अपनी पत्नी या gf को ही पूछना पड़े। यही काम लड़के के साथ उसकी मां भी करती है।

      इस प्रकार से स्त्री छोटी छोटी बातों के लिए उस व्यक्ति को अपने ऊपर निर्भर बना कर उसकी रग रग से परिचय कर लेती है। फिर उसी को अपना हथियार बना कर उसके जीवन में पहले से मौजूद अपने सारे विरोधियों को उसके जीवन से दूर कर देती है। जैसे ही पुरष या मोह उस स्त्री या माया के पूरी पकड़ में आ जाता है।

    उसके बाद असली खेल शुरू होता है। फिर माया या स्त्री उस पुरष से अपना फोकस हटा लेती है और किसी और नई योजना पर कार्य शुरू कर देती है।

   अब आम मनुष्य मोह माया के इस जंजाल को समझ नही पाता और जीवन भर इसी में उलझा रहता है।

       आप कभी प्रैक्टिकल कर के देखना कोई महत्वपूर्ण बात मन में या कुछ रुपए अपने घर में किसी कोने में छुपा कर रख देना और पत्नी या मां को मत बताना। फिर देखना या आपकी पत्नी साफ सफाई के बहाने अनजाने में बिना दिमाग से सोचे उसी घर के कोने में तब तक सफाई करती रहेगी जब तक उसके हाथ आपकी छुपाई वस्तु या पैसे उसको नही मिल जाते या वह आपके आगे पीछे घूमी रहेगी जब तक आप अपने मन में छिपाई बात उसको नही बता देते।

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   मेरे एक मित्र के शब्दों में : जब मैने 2010 में मैने एसडीओ की सरकारी नौकरी छोड़ी थी, उससे काफी पहले शराब की बार में बैठ कर कई योजनाएं बनाई कि एक बड़ी कंपनी खोल कर उसका सीईओ कैसे बना जाए। इस योजना में मेरे बहुत से सहायक  रोज बार में बैठ कर मेरे साथ दारु के छह सात पेग पी कर रोज योजना बनाते थे। 

      रोज बड़ी बड़ी योजनाएं तो बन जाती थी लेकिन अगली सुबह हैंगओवर के कारण उन पर कार्य नहीं हो पाता था। लेकिन यह क्रम कई सालों तक जारी रहा , क्योंकि उस समय मेरी ग्रह दशा में राहु का अच्छा खासा प्रभाव चल रहा था। क्योंकि यह दारू बार की यूनिवर्सिटी में सिर्फ राहु से प्रभावित लोगों को ही रिजर्वेशन के आधार पर दाखिला मिलता है।

      लेकिन न मैं न मेरे सहायक मित्र कभी हार नही मानते थे जो मर्जी हो जाए लेकिन रोज नई योजना पर शाम होते ही दुबारा मीटिंग शुरू हो जाती थी, रोज सात आठ हजार का बिल देने के बाद बिलकुल निश्चित हो जाते थे कि बस कल सुबह से तो फट्टे चक ही देंगे। लेकिन कभी हैंगओवर कभी उल्टियां होने से सारी योजना धरी की धरी रह जाती थी। 

     फिर अगले दिन फिर शाम तक कोई नींबू पानी और सिगरेट फूंक फूंक कर अपनी तबियत ठीक करके, शाम को फिर अपने काम पर जुट जाते थे। यह कार्यवाही लगभग 2002 से 2010 तक निर्बाध रूप से जारी रही।

   फिर 2010 में मैने नौकरी छोड़ दी और उन सारी मीटिंग्स से इक्कठा किया ज्ञान इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। जबकि मुझे पता था कि ऐसी बार में दारू के साथ बनी योजनाएं कोई भी बड़ी कंपनी स्थापित नही कर सकती, इसके लिए कोई अच्छी बैटरी का सहारा होना बहुत जरूरी है, क्योंकि माया या शक्ति या नारी के बिना संसार नही चल सकता। 

      बड़ा व्यापार या बड़ी योजना का चलना भी एक माया ही होती है।

   लेकिन इन सब बातों के लिए दारू के बार पेग पी कर  समझा गया ज्ञान बहुत काम का होता है। क्योंकि वही हमारी व्यापार जगत के ज्ञान की असली पाठशाला होती है। जबकि स्कूल कॉलेज में समझा गया ज्ञान सिर्फ नौकरी करने का ज्ञान मात्र देता है।.

     यह ध्यान होना बहुत जरूरी है की दारू के बार में ली गई शिक्षा का समापन समय रहते हो जाना चाहिए। नही तो कुछ लोग सारी उम्र बुढ़ापे तक जेएनयू के छात्रों की तरह पढ़ाई ही करते रह जाते हैं और कुछ लोग मेरे उन मित्रों की तरह दारू की बार की यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ही बने रहते हैं।

   अब मर्जी आपकी आप या सारी उम्र दारू के बार की यूनिवर्सिटी के छात्र बने रहें या वहीं के प्रोफेसर बने रहें। या समय रहते अपनी शिक्षा संपूर्ण करके जीवन की असली फील्ड में आकर, किसी माया या स्त्री या शक्ति का सहारा लेकर , माया से कैसे खेलना है यह सीख कर अपना आगे का प्लान एक्जीक्यूट करें। 

       ध्यान रखें अगर आप को माया या स्त्री या शक्ति को ठीक से हैंडल करना नही आया तो आपको उस शक्ति रूपी बैट्री की वोल्टेज सही रूप से नही मिलेगी और शॉर्ट सर्किट होने के कारण आप जीवन में ऊर्जा विहीन हो सकते है और फिर से वापिस उसी दारू के बार में दुबारा से अपने पुराने वहीं के प्रोफेसर मित्रों के बीच पहुंच सकते हैं।

      या आप अपूर्ण इच्छाओं के साथ संपूर्णता प्राप्त करने के लिए सन्यास या भक्ति की ओर भी मुड़ सकते है, फिर जिसकी कुंठा आपके गले में विशुद्ध चक्र को ब्लॉक करके आपको नीलकंठ महादेव के दर्शनों के लिए लालायित कर सकती है।

कृपया मेरे इस लेख में नारी शक्ति का अर्थ लुच्ची सोच से न समझे, शक्ति किसी भी रूप में आपका साथ दे सकती है चाहे मां या बहन या पत्नी या गर्लफ्रेंड या किसी और रूप में। ये जो जितने दारू बार में प्रोफेसर हैं या अपूर्ण इच्छाओं के साथ संपूर्णता प्राप्त करने के इच्छुक संन्यासी हैं ये सभी बैटरी वोल्टेज के शॉर्ट सर्किट के कारण बने हुए लोग होते हैं।

  हां शौक के लिए कभी कभार दारू बार में बैठना अलग बात है।

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 माया या स्त्री या इच्छाएँ तीनों एक ही हैं। इनका व्यवहार आपकी अर्थात् पुरुषों की सोच से बिल्कुल उल्टा होता है। आमतौर पर एक शरीफ और छोटी आयु का लड़का या बहुत ज़्यादा आदर्शवादी पुरुष यह सोचता है कि सच्चा प्रेम करने से स्त्री या माया आपकी ओर आकर्षित होती है यह बात बिल्कुल ग़लत है। 

       माया या स्त्री सिर्फ़ उसी पुरुष से प्रेम करती है जो उससे खेल सके , उसका व्यक्तित्व प्ले बॉय की तरह हो। यह उसकी बेसिक इंस्टिक्ट होती है जो उसके अवचेतन मन में होती है, लेकिन उसका दिमाग़ सोचता कुछ अलग है दिमाग़ से वह ऐसे पुरष को प्यार करती है जो उससे प्रेम करे , उसकी केयर करे , उसे सुरक्षा दे। लेकिन उसके अवचेतन मन की प्रकृति इससे बिल्कुल अलग होती है वह अपने अवचेतन मन से उस पुरुष से ज़्यादा प्रेम करती है जो उसके लिये केयरलेस हो, उससे झूठ कहे, उसे धोखा दे और उससे प्रेम ना करे , उसे हर समय तंग करता रहे।

        उसकी यह इंस्टिक्ट अपनी शक्ति स्वरूप के कारण होती है वह एक बिगड़ैल पुरुष को अपनी शक्ति से सुधारना चाहती है अर्थात् सृजन करना चाहती है।इसी कारण बहुत अधिक ऊर्जावान स्त्री अधिकतर बिगड़ैल पुरुष की ओर जल्दी और ज़्यादा आकर्षित होती है बजाये सुलझे और समझकार पुरुष के।

 स्त्री का यह द्वन्द उसे हर समय परेशान करता है। 

       इसी कारण आप देखेंगे किसी भी पुराने चित्रकार की पेंटिंग में एक तरह दौड़ता हुआ घोड़ा जो केयरलेसनेस , आज़ादी का, मौज मेले का प्रतीक होता है । दूसरी तरह मकड़ी का जाला पुराने संदूक कबाड़ जो एक बंधन घर गृहस्थी और सुरक्षा का प्रतीक होता है । दिखाया गया होता है और इन दोनों के बीच कोई स्त्री जो द्वन्द में है दिखाई गई होती है।

   स्त्री एक तरफ़ आज़ादी, केयरलेसनेस, और दूसरी तरफ़ बंधन चाहती है। 

      स्त्री के इसी द्वन्द भरी प्रकृति के कारण हर पुरुष कभी समझ ही नहीं पाता कि वह उससे प्रेम करती भी है या नहीं । यही माया स्वरूप स्त्री अपनी इसी प्रकृति के कारण शव रूपी पुरुष(शिव) को अपनी स्त्री रूपी शक्ति के कारण हर समय कुछ ना कुछ कर्म करने के लिए प्रेरित करती रहती है। पर ध्यान रखें माया अर्थात् स्त्री कभी किसी की नहीं हो सकती वह सिर्फ़ पुरुष रूपी शव को चालायमान रखने की ऊर्जा मात्र है।

     जिस समय पर कोई भी माया या स्त्री अपने इस द्वन्द के बिल्कुल बीच की स्थिति में होती है उस समय अंतराल में वह डिप्रेशन की स्थिति में होती है। और जिस समय पर कोई पुरष भी अपने प्लेबॉय और केयरिंग बॉय वाली प्रकृति के चेंज ओवर की स्थिति में होता है उस समय अंतराल में वह भी बहुत मानसिक पीड़ा के दौर से गुज़र रहा होता है।

       फ़र्क़ सिर्फ़ इतना होता है पुरुष एक समय में सिर्फ़ एक ही स्थिति में होता है या केयरिंग बॉय या प्लेबॉय। लेकिन स्त्री हर समय दोनो स्थितियों में रहती है अर्थात् हर समय द्वन्द।

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माया, स्त्री और इच्छाएँ यही ऊर्जा का स्रोत है जिससे कोई पुरष कर्म करने के लिए मजबूर होता है। क्योंकि पुरुष एक निर्जीव सर्किट की तरह होता है और स्त्री उसके लिये बैटरी।

   आप कई बार देखते हैं कि अस्सी अस्सी साल की आयु के नेता या कोई बड़े व्यापारी या  कलाकार में इतनी ज़्यादा ऊर्जा होती है कि जितनी एक पचीस साल के युवा में भी नहीं होती। इनकी इस ऊर्जा का स्रोत क्या है क्या आप कभी समझ पाए।

       यदि पैसे से ऊर्जा मिलती तो बहुत ज़्यादा पैसे वाले लोग एक आयु के बाद सीढ़ियाँ तक ढंग से नहीं चढ़ पाते। यदि योग व्यायाम से इस प्रकार की ऊर्जा आती तो मैं बहुत से लोगों को सुबह सुबह चार बजे सैर योग व्यायाम करते देखता हूँ लेकिन वे भी इतने ऊर्जावान नहीं होते।

       मैने ऐसे कई अस्सी अस्सी साल के नेता लोग देखें हैं जो खूब खाते पीते है ( दारू, मुर्ग़ा ) लेकिन वे इतने ज़्यादा ऊर्जावान है कि वोट माँगने के लिये कई कई किलोमीटर पहाड़ की चढ़ाई उतराई आराम से पैदल नाप लेते है और उनके साथ घूमते हुए युवा कार्यकर्ता की भी सांस फूल जाती है।

  ऐसा क्या आपने कभी सोचा ऐसा क्यों होता है।

       इसके पीछे माया वाला रहस्य छिपा पड़ा है जिसके बारे में मैने मानसिक ऊर्जा ट्रांसफ़र वाले लेखों में बताया था। 

       मैं उस सीरीज के पार्ट चार को यहाँ कॉपी पेस्ट कर रहा हूँ शायद उससे आप कुछ कुछ समझ जाएँ इससे ज़्यादा ओपन हो कर मैं ज़्यादा नहीं लिख सकता :

      पुरुष सर्किट और स्त्री बैटरी होती है। यदि दो पुरुषों के बीच मानसिक ऊर्जा का लेन देन करना हो तो उनका सम्बन्ध किसी एक स्त्री के द्वारा बनता है और दो स्त्रियों के बीच मानसिक ऊर्जा का लेन देन बीच में किसी पुरुष के होने के कारण बनता है। शायद आपको मेरी ये बातें बहुत अजीब लगे। इसलिए मैं इन बातों को उदाहरण से बताता हूँ।

      जैसे मैंने एक बहुत आलसी,मोटे थुलथुले , लड़के की लाइफ हिस्ट्री देखी वह लड़का बहुत ज्ञानी स्थिर स्वभाव का और बहुत ज़्यादा पैसा कमाता था । आप उस लड़के का नाम A रख लें याद करने के लिए। उस लड़के ने पूरे जीवन कभी दौड़ नहीं लगाई थी ना कभी किसी प्रकार का व्यायाम किया था ना उसे इन बातों में कोई रुचि थी। उसका किसी लड़की से चक्कर चल पड़ा शायद लड़की उसके धन पैसों से प्रभावित थी।

       कुछ दिनो बाद उस लड़के को स्मार्ट और फिट बनने का भूत सवार हो गया उसने जिम जाना शुरू कर दिया और बहुत ज़्यादा व्यायाम करने लग गया। उसके मित्र बहुत परेशान हुए कि इस बंदे को क्या फ़र्क़ पड़ गया। लेकिन इस चक्कर में उसने अपने काम काज पर ध्यान देना कम कर दिया और उसकी कमाई कुछ कम हो गई।

     मैंने उसका अध्ययन करके पता लगा लिया कि इसकी जो गर्ल फ्रेंड बनी है उसका टाँका पहले से किसी दूसरे लड़के से था जो कोई भी पैसा नही कमाता था लेकिन बहुत ज़्यादा बॉडी फ़िटनेस पर ध्यान देता था हमेशा जिम व्यायाम करता था, और बहुत मोटी बुद्धि का था। उसका नाम आप याद रखने के लिये B रख लें।

       मैं उस लड़के को भी जानता था मैने उसका वर्तमान व्यवहार देखना शुरू किया और पाया वह अब हर बात को मोटी बुद्धि से ना सोच कर काफ़ी गंभीरता से सोचने लग गया था और पैसे कमाने के लिए काम काज करने लग गया था, लेकिन इस चक्कर में उसका जिम जाना कम हो गया था और उसकी बॉडी फिटनेस पहले मुक़ाबले कम हो गई थी।

      अब आप इसका अर्थ समझें जब दोनों लड़कों के साथ बीच में एक लड़की दोनों के साथ एक दूसरे की जानकारी के बिना सबन्ध में थी तो उस लड़की के माध्यम से उन दोनों लड़कों के बीच मानसिक ऊर्जा का आदान प्रदान हुआ।

  जो गुणA के पास ज़्यादा थे वे B में गए और B के गुण A में।

   तभी यजुर्वेद में लिखा है यथा देह यथा ब्रह्मांड। जो नियम विज्ञान के बाहरी संसार में लागू होते है वही सारे नियम हमारी मानसिक ऊर्जा के मामले में भी लागू होते हैं।

       इसलिए जब भी जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन आता है तो इसका अर्थ कहीं ना कहीं इसी तरह से कोई मानसिक ऊर्जा का लेन देन हो रहा होता है चाहे आपको मालूम हो या नहीं।

      इलीट क्लास के लोग जाने अनजाने में अपनी कमियों को पूरा करने में इस विधि का भरपूर इस्तेमाल करते हैं , लेकिन खोखली आदर्शवादी मिडल क्लास की सोच के लोग यदि अनजाने में भी उनके जीवन में इस प्रकार की घटनाएँ हो जाये तो इससे डिप्रेशन, अग्रेशन का शिकार हो जाते हैं और लड़ाई झगड़े करते रहते हैं। इसलिए कहते हैं ज्ञान का इस्तेमाल भी किया जा सकता है और इसका बुरा प्रभाव भी हो सकता है।

  अब यदि बंदर के हाथ में नारियल आ जाये तो वह उससे अपना सिर ही फोड़ सकता है।

  जितनी बातें में पुरुषों के लिए लिख रहा हूँ यही नियम वाईस वरसा स्त्रियों पर भी ऐसे ही लागू होते हैं।

          यह प्रयोग सभी धर्मों के गुरु ( सभी नही) करते हैं । जैसे इस्लाम में कुछ मुल्ला मौलवी हलाला तकनीक और ईसाईयत में कुछ पादरी पिता से माफ़ी के नाम पर इस बात का ग़लत इस्तेमाल करते हैं और यही विद्या हिंदुओं के कुछ धर्मगुरुओं ने भी अपना ली है। लेकिन सनातन में इस तकनीक का इस्तेमाल ग़लत कहा गया है। एक पुराने धर्म ताओ चीन में इस तकनीक को यिन येन नाम से इस्तेमाल किया जाता था।

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  “ यथा पिंडे यथा ब्रह्मांडे“ हमारे वेदों में लिखा है। अर्थात् जो नियम बाहरी संसार में भौतिकी , स्पेस ,रसायन विज्ञान में लागू होते हैं वही नियम हम मनुष्यों के जीवन और मानसिकता पर भी लागू होते हैं। जैसे आपने क्या कभी सोचा है पानी क्यों बहता है? ऊर्जा जैसे गर्मी ( हीट) ज़्यादा तापमान से कम तापमान की ओर क्यों बहती है।

      प्रकाश अपने स्रोत से अंधेरे की ओर क्यों बहता है, क्योंकि संसार का नियम है हर चीज़ हर वस्तु स्थिर होना चाहती है एक समान फैलना चाहती है, एक समान बंटना चाहती है। और हर चीज हर वस्तु हर तरह एक समान फैलने के लिए ऊर्जा प्रवाह का सहारा लेती है।

      मनुष्य जीवन में स्त्री या माया या इच्छाएँ ही ऊर्जा का रूप है तो ज़ाहिर है वह भी प्रकृति के नियम के अनुसार वही काम करेगी।

       यदि आप एक पुरुष हैं और ऊँची मानसिक स्थिति के व्यक्ति हैं या ऊँचे व्यक्तित्व या किसी भी स्थिति में ऊँची जगह स्थित है चाहे पद चाहे , प्रतिष्ठा  चाहे किसी और क्षेत्र में तो आपको अपने से जुड़ी किसी भी स्त्री से ( चाहे वह माँ हो, बहन हो या प्रेमिका हो या पत्नी हो) 

     आपको हमेशा एक शिकायत होगी कि वह स्त्री लेती तो सब कुछ आपसे है लेकिन देती किसी दूसरे को है।

     हर माँ के काबिल बेटे को शिकायत होती है कि माँ मेरे दूसरे भाई को ज़्यादा प्रेम करती है जो कुछ नहीं करता घर के लिये , जबकि मैं सब कुछ करता हूँ घर की हर स्थिति की ज़िम्मेवारी उठाता हूँ और मेरा वह भाई घर के लिए कुछ नहीं करता और माँ हर समय उसे ज़्यादा महत्व देती है।

    लेकिन यह स्थिति तब बहुत दुखदाई बन जाती है किसी पुरुष के लिए जब यही काम उसकी प्रेमिका या पत्नी करती है।

     जो व्यक्ति ऊपर के लेवल का होता है वह कभी अपनी प्रेमिका या पत्नी से प्रेम ( दिल से,  दिखावा ज़रूर हो सकता है) नहीं पा सकता क्योंकि यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध है । क्योंकि वह ऊँचे लेवल पर है , जिस प्रकार से ऊँची रखे पानी के टैंक रूपी पुरुष से स्त्री रूपी पाइप जुड़ी हो तो स्त्री रूपी पाइप अवश्य किसी निचले लेवल पर रखे दूसरे पुरष से जुड़ी होगी। 

      नियम के अनुसार वह स्त्री रूपी पाइप ऊपर रखे टैंक से पानी ख़ाली करके नीचे रखे टैंक को भरेगी।

  इस कारण ऊँचे व्यक्तित्व का पुरुष सदैव इस बात को लेकर दुःखी रहता है कि वह अपनी प्रेमिका या पत्नी के लिये सब कुछ करता है लेकिन उसकी पत्नी या प्रेमिका उसे महत्व ना देकर किसी दूसरे पुरुष को महत्व क्यों देती है। यह दूसरा पुरुष उससे किसी भी रिश्ते में जुड़ा हो सकता है। 

      मेरी यही बातें वाईस वरसा नियम के तहत स्त्रियों के लिये भी लागू होती है। संसार में सारे मानसिक दुःखों का कारण यही माया अर्थात् स्त्री और मोह अर्थात् पुरुष के बीच के संबन्धों के इस लोचे के कारण होते है और इनमें कभी स्थिरता नहीं आ सकती । इसलिए संसार में सच्चा प्रेम नामक वस्तु खोजने का प्रयत्न ना करे क्योंकि स्थिरता सृष्टि का नियम नहीं है।

         इसलिए किसी स्त्री को सच्चा प्रेम करने वाले पुरुष ( केयरिंग बॉय) यह ज़रूर सोच लें आपके सच्चे प्रेम की यह ऊर्जा ज़रूर किसी प्ले बॉय को ट्रांसफ़र हो रही है एंड वाईस वरसा।

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 जब कोई किसी को प्यार या  रिश्ते में धोखा दे देता है तो धोखा खाने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी नार्मल जीवन नहीं जी पाता उसमे एक परमानेंट समस्या पैदा हो जाती है। उसके दिमाग़ के इमोशन वाले हिस्से में एक स्थिर विचारों का लूप बन जाता है , वह हालाँकि कुछ सालो में धीरे धीरे सक्रिय विचारों से पैसिव विचारों में चला जाता है , लेकिन जब भी वह व्यक्ति नशा कर लेता है या अकेला बिना काम के बैठा होता है तो वह विचारों का लूप फिर से सक्रिय विचारों में प्रकट हो जाता है। 

        इस विचारों के लूप से उस व्यक्ति में एक नेगेटिव ऊर्जा उत्पन होती है जो उसे हर समय परेशान करती है, यदि किसी समय यह निगेटिव ऊर्जा बहुत ज़्यादा बढ़ जाए तो व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रूप से उसे बीमार कर देती है। 

   यदि किसी को लगातार कई दिन सिरदर्द हो रहा हो लेकिन उसका कोई मेडिकल कारण नहीं मिल रहा हों तो यह तय है कि उसके दिमाग़ में यह नेगेटिव विचारों का लूप ऐक्टिव है। जिससे उसे बार बार माइग्रेन हो रहा है। 

       यदि इस समस्या पर समय रहते ध्यान ना दिया जाए तो इस कारण व्यक्ति का हार्मोनल सिस्टम बिगड़ सकता है जिसके साइड इफ़ेक्ट से ब्लड प्रेशर, सुगर यदि स्त्री हो तो पीरियड गड़बड़, पीसीओडी जैसी समस्या उत्पन्न होने के चांस बन जाते हैं।

      मैंने यह समस्या ख़ासकर उन लोगो में देखी है जिनका वृहस्पति उच्च या अच्छा पड़ा हो। क्योंकि ऐसा व्यक्ति ख़ुद भी ईमानदार होता है और अपने प्रेमी या रिश्तेनातों में ईमानदारी की आशा रखता है, जबकि संसार में ऐसा होता नहीं इसी कारण ऐसे व्यक्ति इमोशनल रूप से जल्दी आहत हो जाते हैं।

        जिसका वृहस्पति ख़राब पड़ा हो और शनि राहु अच्छा तो ऐसा व्यक्ति स्वार्थी होता है और स्वार्थी व्यक्ति भावनात्मक रूप से कभी दुखी नहीं होता बल्कि दूसरों को आहत करके प्रसन्न होता है। 

       अब इस समस्या का क्या उपाय है तो मैं आपको बता देता हूँ इस संसार में इस समस्या का साधारण सोच वाले व्यक्ति के लिये कोई भी उपाय संभव नहीं।

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एक बार यदि किसी का दिल टूट जाए तो उसके दिमाग़ में उसके दिल तोड़ने वाले के प्रति विचारों का एक स्थाई लूप बन जाता है और कई सालो बाद भी जब भी व्यक्ति नशे की हालत में होता है या अकेला होता है तो विचारों का वह स्थाई लूप ऐक्टिव मेमोरी में प्रकट होकर उस व्यक्ति को बहुत निगेटिव ऊर्जा देने लगता है और व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान होने लगता है। 

      साधारण सोच वाले व्यक्ति के लिए इस समस्या का कोई भी उपाय नहीं होता। लेकिन आध्यात्मिक सोच वाला व्यक्ति इस ऊर्जा से अध्यात्म की ऊँचाई छू सकता है लेकिन अधिकतर लोग आध्यात्मिक नहीं हो सकते और सांसारिक जीवन भी तो जीना है ऐसे व्यक्तियों के लिये कुछ उपाय है जिनसे वह इस समस्या से कुछ राहत प्राप्त कर सकता है.

       जैसे:-

1. धोखा देने वाले को मन से पूरी तरह माफ़ करके उसे मन से आशीर्वाद दें कि जल्दी से जल्दी उसकी संतान उत्पन्न हो जाए।

2. सेक्स के संबंध में कोई मानसिक रूप से बुरी भावना ना पाले। क्योंकि प्रेम में धोखा खाये अधिकतर लोग सेक्स को बुरा मानने लग जाते हैं। आप ख़ुद ही देखो स्त्री पुरुष के सबंधों का मूल उद्देश्य सृष्टि में संतान उत्पन करना ही है। इस कारण ही स्त्री पुरुष में आकर्षण होता है , यदि आप इन सबंधों के मूल उद्देश्य को ही बुराई से जोड़ देंगे तो फिर कोई भी दूसरा स्त्री या पुरुष आपकी ओर आकर्षित नहीं होगा। जिस पुरुष या स्त्री में सेक्स की भूख होगी उसीका हार्मोनल सिस्टम अच्छा होगा, स्वास्थ्य अच्छा होगा। उसी को किसी का प्रेम मिलने की भरपूर संभावना होगी।अधिकतर ज़्यादा पढ़ी लिखी बड़ी आयु की लड़कियों और लड़कों में यही समस्या पाई जाती है वे सृष्टि के मूल उदेश्य से उल्टे चलते हैं वे सिर्फ़ पैसा, अच्छा करियर , अच्छे कपड़े रहन सहन को ही आकर्षण का कारण मानते हैं। जबकि ये चीजे आपकी ओर सिर्फ़ स्वार्थी लोगो और अपना कोई मतलब चाहने वाले व्यक्ति को ही आकर्षित करती है किसी प्रेम करने वाले व्यक्ति को नहीं। ये सारी चीजे सिर्फ़ बाहरी आवरण है जो पहली झलक में किसी को आपकी ओर आकर्षित करता है लेकिन मूल रूप से आकर्षण सिर्फ़ आपकी सेक्स की भूख कितनी है इससे निर्धारित होता है।

3.  जिस व्यक्ति में सेक्स करने की क्षमता और इसकी भूख जितनी ज़्यादा होगी उस व्यक्ति को ही किसी अपोज़िट सेक्स के व्यक्ति से भरपूर प्रेम मिलने की संभावना होती है जबकि धन करियर फैशन से सिर्फ़ आपको अपना स्वार्थ चाहने वाले लोग ही पसंद करते हैं।जिस व्यक्ति ने सृष्टि के इस मूल उद्देश्य को समझ लिया उसके लिए दिल का टूटना और उसके कारण उत्पन समस्या कोई बड़ी बात नहीं होती। सेक्स की भूख के बाद दूसरी ज़रूरत होती है वैचारिक रूप से बैलेंस बनाना। उसके बाद धन सम्पति वैभव आता है।

4. मेरी बातें सिर्फ़ उन लोगो के लिए है जो अभी जवानी के दौर से गुज़र रहे हैं। यदि आप बड़ी आयु के हैं तो आपको मेरी बातें बुरी लग सकती हैं। और समय से पहले संन्यासी बने लोग भी इन बातों को बुरा कह सकते है लेकिन सृष्टि के इस नियम को नहीं झुठला सकते।

        इसलिए किसी भी व्यक्ति को यदि प्रेम की आवश्यकता है तो उसे उन हर कारण से दूर रहना चाहिये जिससे आपकी सेक्स करने की क्षमता या सेक्स की भूख कम होती हो जैसे नशे ,शराब ( शुरू में तो सेक्स की क्षमता बढ़ाती है लेकिन धीरे धीरे इसको बहुत कम कर देती है। ) , स्मोकिंग  या टेंशन इन चीजों से दूरी बना लेनी चाहिये।

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 माया अर्थात् स्त्री या इच्छाएँ , ये वैसे तो हर समय आपके आस पास मंडराती रहती हैं लेकिन जैसे ही आप इन्हें पकड़ने का प्रयत्न करते हैं अर्थात् इनके ग़ुलाम बनते है ये आपसे दूर भागने लग जाती है और आपको नचाना शुरू कर देती है, और यदि आप इनसे छुटकारा पाने की कोशिश करोगे तो ये आपके पीछे भागना शुरू कर देती हैं। मतलब माया या स्त्री या इच्छाएँ ये कभी आपको चैन से नहीं जीने देती। आपको हमेशा काम पर लगाये रखती है। 

         यही शक्ति या ऊर्जा है जो कर्म उत्पन करती है। इसलिए स्त्री या माया या इच्छाओं से दूर भागने का अर्थ है आप कर्म नहीं करना चाहते अर्थात् आप आलसी हैं । आजकल मैं अधिकतर युवाओं को देख रहा हूँ कि वे माया के इस खेल से दुखी होकर शराब या दूसरे नशे से इस कर्म से बचना चाहते हैं, अर्थात् वे दरअसल आलसी हैं।

    यदि आपने शिव पुराण पढ़ा हो तो आप जानते होंगे कि शिव ने ही सर्वप्रथम अपने को दो भागों में विभक्त करके शक्ति के रूप में नारी को उत्पन्न किया था। अर्धनारीश्वर रूप में, ताकि विश्व में स्वचालित सृष्टि का जन्म हो अर्थात् कर्म उत्पन हो। 

      इसलिए इच्छाओं या स्त्री या माया के इस व्यवहार से दुखी ना होकर इस का मूल उद्देश्य समझते हुए इस शक्ति का प्रयोग सोच समझ कर करते हुए आप इस सृष्टि के निर्माण का ख़ुद को एक हिस्सा समझ कर जियें और अपना कर्म करते रहें।

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 आप किसी स्त्री या माया या ऊर्जा को हमेशा कैसे अपने साथ प्रेम बनाये रखने को बाधित कर सकते हैं।

   स्त्री या माया या ऊर्जा चाहे मनुष्य या कोई और जीव में। किसी भी स्त्री के जीवन का मूल उद्देश्य संतान उत्पन करना होता है।

       इसलिए हमारे उपनिषदों में स्त्री को जो सबसे बड़ा आशीर्वाद ऋषि मुनि देते थे वह यह था “ जाओ तुम्हारे दस पुत्र उत्पन्न हो और ग्यारहवाँ पुत्र तुम्हारा पति बन जाए!” 

      इसी आशीर्वाद में स्त्री का सच्चा प्रेम हासिल करने का रहस्य छिपा हुआ है, अर्थात् जब कोई स्त्री आपको अपने पुत्र की भाँति समझ कर आपसे अपने पुत्र की तरह व्यवहार करने लग जाए तो इसका अर्थ होता है उस समय वह आपसे पूर्ण प्रेम करती है।

       इसलिए आपको भी अपनी पत्नी या प्रेमिका से जितना समय सम्भव हो सके एक शरारती बच्चे की भाँति व्यवहार करना चाहिये।अर्थात् हर समय जिस प्रकार एक छोटा बच्चा अपनी माँ को तंग करता रहता है शरारत करता रहता है , मार खा कर गाली सुन कर भी प्रेम से चिपटता रहता है। 

       इस प्रकार उस स्त्री का मन भी आपके पीछे भागता रहेगा। कभी भी रौब, अपनी संपन्नता , धन सम्पति ज्ञान का दिखावा करने से कभी आप किसी स्त्री का प्रेम नहीं पा सकते। इसलिए आपको एक छोटे बच्चे की तरह मासूम शरारती बनना होगा।

मोह पुरष और माया स्त्री होती है मनुष्यों में। अब शास्त्रों में लिखा है कि पुरष स्थिर और स्त्री अस्थिर होती है। माया या स्त्री या शक्ति क्योंकि ऊर्जा का रूप होती है इसलिए ऊर्जा स्थिर नहीं रहती। बल्कि लगातार परिवर्तित होती है एक रूप से दूसरे में ना ही ऊर्जा को स्टोर किया जा सकता है।

        इसलिए माया या स्त्री या शक्ति जब किसी मोह या पुरष के संपर्क में आती है तो वह पूरे के पूरे मोह या पुरष में व्याप्त हो जाती है और वहां किसी दूसरी माया या स्त्री या शक्ति की उपस्थिति की बर्दास्त नहीं कर सकती यही कारण है सास बहू ननद भाभी आदि के आपसी रंजिश का। 

लेकिन माया तो अंतहीन है इसलिए माया या स्त्री या शक्ति किसी पुरष या मोह में व्याप्त होने के बावजूद भी बाकी संसार में फैलाव बना कर रखती है।

       इसीलिए हमारे शास्त्रों में लिखा है कि माया या स्त्री को कभी गुप्त भेद की बातें नहीं बतानी चाहिए। इसलिए कोई पुरष या मोह किसी भी स्त्री या माया या शक्ति को पूरी तरह से जान नहीं पाता। जबकि माया या स्त्री या शक्ति किसी भी पुरष या मोह में क्योंकि पूरी तरह से व्याप्त होती है इसलिए कोई भी स्त्री या माया या शक्ति उसकी पूरी नस नस से वाकिफ होती है।

        आप ने देखा होगा जब भी कोई पुरष अपने सामान्य काम काज में व्यस्त होता है तो उसकी पत्नी या गर्लफ्रेंड उसकी कोई ज्यादा परवाह नहीं करती लेकिन जैसे ही वह किसी दूसरी स्त्री या माया या शक्ति से मिलने का कार्यक्रम बनाता है तो उसकी पत्नी या गर्लफ्रेंड चाहे सात समुंदर पार हो उसे उस बात की भनक लग जाती है और वह चाहे फोन पर या खुद एकदम से आपके पास पहुंच जाएगी और आपकी ऐसी तैसी कर के छोड़ेगी। स्त्री या माया या शक्ति का फैलाव अंतहीन होता है।

        जब यही काम स्त्री या माया या शक्ति खुद करे और किसी दूसरे पुरष या मोह के साथ अंतरंग संबध बना रही हो और उसके पति या मोह या ब्वॉयफ्रेंड का उसी समय फोन भी आ जाए तो वह दूसरे पुरष को दो मिनट चुप रहने को कह कर अपने पति या बॉयफ्रेंड को ऐसी डांट लगाएगी की उसका पति या बॉयफ्रेंड भूल कर भी दूसरी बार यह गलती नहीं करेगा। 

        वापिस घर आ कर ऐसा तगड़ा विक्टिम कार्ड प्ले करेगी कि आप हाथ जोड़ कर माफी मांगने पर मजबूर हो जाएंगे। और कोई पति समझ ही नहीं पाएगा की ऐसा भी हो सकता है। पुरष कभी भी स्त्री या माया के असली कारनामों को ना कभी सोच सकता है ना समझ सकता है ना कभी उसे इन बातों का आभास हो सकता है। क्योंकि मोह या पुरष स्थिर होता है। 

   अब यही बात लेवल सिस्टम से समझते हैं। पुरष या मोह को शास्त्रों में स्थिर कहा गया है। 

        इसलिए कोई भी पुरष अपने जन्म नक्षत्र और ग्रह स्थिति के अनुसार किसी एक लेवल पर फोकस होता है जबकि स्त्री अपने हार्मोनल साइकिल की वजह से पूरे माह में सभी लेवल्स पर बारी बारी से फोकस बदलती रहती है। और अपने फोकस के हिसाब से किसी एक लेवल पर फोकस्ड पुरष को अपने साथ दूसरे लेवल पर के जाना चाहती है और लगातार यह खीच तान जीवन भर चली रहती है। 

       अगर आप में से कोई भी ऐसा पुरष है जो अपने घर में अपनी स्त्री से छुपा कर कोई अपनी वस्तु रख सकता है तो बताएं यह एक exceptional केस होगा। लेकिन स्त्री अपनी पता नहीं कितनी चीजे पूरा जीवन भर पति से छुपा कर पूरे घर में रखती हैं और पति को भनक भी नहीं लगती। कभी आप अपनी पत्नी कि अलमारी को अपनी मर्जी से खोल कर देखो क्या हालत होगी। जबकि आप अपनी जेब भी पत्नी से छुपा कर नहीं रख सकते।

        इसी खींच तान से पुरष को कर्म करने की शक्ति प्रदान करती है। और स्त्री या माया या शक्ति अपने अंतहीन फैलाव के कारण समाज में उस पुरष को अन्य लोगों से जोड़े रखती है। चाहे रिश्तों से चाहे दोस्ती से चाहे दुश्मनी से। मतलब माया या स्त्री समाज में एक्शन इंटरेक्शन बनाए रखती है। नहीं तो शक्ति या स्त्री या माया के बिना शिव या पुरष या मोह एक शव ही होता है।

   इसलिए स्त्री को सृष्टि का जन्मदाता कहा जाता है। अगर स्त्री या माया ना हो तो संसार रुक जाएगा। शिव भी शव हो जाएगा.

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