डॉ. गीता शुक्ला
_वर्तमान परिवेश में मनुष्य के अन्दर तनाव बढने का मुख्य कारण असन्तुष्ट यौन सम्बन्ध है। असन्तुष्ट यौन के कारण ही मनुष्य आज आनन्दपुर्वक जीवन जीने से असफल है।_
असफल और असन्तुष्ट यौन सम्बन्ध में पचहत्तर प्रतिशत पुरुष शीघ्रपात के शिकार होते हैं। जो गहन मिलन से पहले ही वे स्खलित हो जाते हैं और उन की क्रीड़ा समाप्त हो जाती है। उसमें 95% प्रतिशत स्त्रियाँ
कभी चरम सन्तुष्टि को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। वह कभी भी गहन सम्भोग के शिखर आनन्द तक नहीं पहुँच पाती हैं।
असन्तुष्टी और असफल यौन सम्बन्ध के कारण ही अक्सर स्त्रियाँ चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं। सन्तुष्टी की चाह में जब उनको असन्तुष्टि मिलती है वह चिलमिला उठती हैं.
एक स्त्री सम्भोग में बहुत कम उतरती है, और जब वह उतरती है तो चरमता तक पहुँचना चाहती है। जब वह चरमता में पहुँचने का आश रख कर सम्भोग में उतरती है और निराशा हाथ लगती है तो वह चिड़चिड़ी और कोध्री हो जाती है।
एक स्त्री की कामुकता परमाणु बम से कम नहीं होती है. उसको सम्भालना हर किसी की बस की बात नहीं है। उसकी कामुकता को फ़िर कोई औषधि शान्त नहीं कर सकती है. कोई दर्शनशास्त्र, धर्म या नीति उसे अपने पुरुषों के प्रति सहृदय नहीं बना सकती है. वह स्त्री अतृप्त है तो वह क्रुद्ध होगी ही।
आधुनिक मनोविज्ञान और तन्त्र दोनों में स्पष्ट लिखा है कि जब तक स्त्री काम भोग में गहन तृप्ति को नहीं प्राप्त करती, वह परिवार और समाज के लिए समस्या बनी रहती है, जिससे वह वञ्चित हो गयी.वह चीज उसे क्षुब्ध करती रहेगी. वह उसके कारण तनाव महसूस करती रहेगी।
स्त्री पुरुष के बीच झगड़ा हो, तनाव हो, वह उदास हो, घर में शान्ति ना हो तो उस स्थिती का अवलोकन कर चिन्तन मनन करना। उस स्थिती का मूल कारण समझ में आ जायेगा. उस स्थिती के लिये सिर्फ स्त्री ही दोषी नहीं है.इस गलती में कहीं ना कहीं हमारा हाथ भी है।
इसका प्रमुख कारण यौन के प्रति पुरुष का रुका स्वभाव सबसे ज्यादा कारण होता है. सम्भोग में पुरुष का स्वखलन होते ही वह स्त्री के प्रति बेपरवाह हो जाता है. वह यह नहीं सोचता कि वह भी चरम आनन्दता प्राप्त करना चाहती है. वह सम्भोग में लम्बा और गहरे तह तक जाना चाहती है।
बस पुरुषों का स्वखलन हुआ, आनन्द लिया और स्त्री को उसके हाल में छोड देते हैं. इस रूखा स्वभाव और अतृप्त यौन सम्बन्ध के चलते स्त्री मन हीनभावना से कुण्ठित हो जाता है. वह कामुकता के चरमता को ना उपलब्ध होने के कारण काम विमुख हो जाती है। फ़िर वह आसानी से काम भोग में
उतरने को नहीं राजी होती है।
बहुत कम पुरुष स्त्री को गहन सुख की उपलब्धि करा पाते हैं. स्त्री जब तक सम्भोग के चरमता को नहीं छू पाती, तब तक वह भोगरत रहना पसन्द करती है. वह भोग की गहनता में उतर कर सम्भोग करना पसन्द करती है, लेकिन एक पुरूष भोग के गहरे पन में उतरने से डरता है.
पुरूष का भोग केवल शारीरिक होता है. उसमें गहनता होती ही नहीं है. स्त्रियों को सम्भोग में चरम आनन्द का अहसास नहीं मिलता तो वह तनाव में आ जाती है. मन में प्रश्नों का ज्वार-भाटा उठने लगता है और उसे लगने लगता है कि पुरुष केवल अपने आनन्द के लिये उसका उपयोग कर रहा है. उनका शोषण कर रहा हैं.
उसे लगता है कि पुरुष को उसकी खुशी से कोई लेना देना नहीं है. उसे वह भोग्या वस्तु समझ रहा है. पुरुष का तो स्खलित होते ही वह सन्तुष्ट हो जाता है। फिर वह करवट ले कर सो जाता है; लेकिन स्त्री को सम्भोग के चरम आनन्द का अहसास ना होने के कारण वह आँसू बहाती रहती है।
वह अनुभव उसके लिए तृप्तिदायक नहीं होता है। जिसकी वजह से सम्भोग के प्रति वह कुण्ठित और रूखी स्वभाव की हो जाती है.बस पुरूष को तृप्ती कर सन्तुष्टि देती है। लेकिन खुद असन्तुष्ट और अतृप्त रह जाती है।
आज प्रायः स्त्री को तो चरम आनन्द का ज्ञान ही नहीं है. उनको सम्भोग का अर्थ केवल योनी लिंग का घर्षण ही पता है। वह यह भी नहीं जानती कि कामुकता के चरम तक कैसे पहुँचे। बस बिस्तर पर लेट जाना और पुरुष जैसा करे उसी को स्त्री सम्भोग मानती है।
वह यह भी नहीं जानती हैं कि चरम कामुकता क्या होती है? काम के गहन तल तक कैसे पहुँचा जा सकता है ? उन्होंने कभी इसका अनुभव ही नहीं किया। वह कभी भी उस शिखर तक पहुँच ही नहीं पायी है। सम्भोग के समय जहाँ उनके शरीर का रोआँ-रोआँ से कम्पित हो उठे, वह तृप्त हो, अङ्ग-अङ्ग उससे निखरे। उसका अनुभव करना ही एक स्त्रीत्व का सपना रहता है।
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(चेतना विकास मिशन)