सब कुछ खुला है फिर तीसरी लहर के नाम पर स्कूल कॉलेज क्यों बंद ?
कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए स्कूल कॉलेज अविलंब खोले जाने की सरकार से अपील
रीवा 10 जुलाई . कोरोना काल युवा पीढ़ी एवं बच्चों के भविष्य के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है . एक तरफ सीबीएससी अगस्त माह में बोर्ड परीक्षाएं आयोजित कर रहा है वहीं मध्य प्रदेश में तीसरी लहर की संभावना के नाम पर स्कूल कॉलेज बंद रखे गए हैं और सरकार के द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर मोबाइल की बिक्री को बढ़ावा देकर मोबाइल कंपनियों को भारी लाभ पहुंचाया जा रहा है . ऑनलाइन से होने वाली पढ़ाई के अभी अधिकांश बच्चे वंचित हैं . अधिकांश छात्र-छात्राएं महंगे फोन रखने और नियमित रूप से रिचार्ज का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं हैं . वर्तमान दौर में स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं पढ़ाई एवं रोजगार प्रतियोगी परीक्षाओं से भी बुरी तरह वंचित हो गए हैं . ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे छात्र छात्राएं इस स्थिति से संतुष्ट नहीं हैं , न ही पढ़ाने वाले शिक्षक ही .
ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर सरकारी कागजी खानापूर्ति की जा रही है . वहीं बच्चों के भविष्य का सवाल भी काफी गंभीर है . कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई किस तरीके से हो इस बारे में गंभीर चिंतन मनन की जरूरत है . नारी चेतना मंच के द्वारा कोरोना काल में हो रही ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर सवाल खड़ा किए हैं . कॉल कांफ्रेंसिंग के जरिए नारी चेतना मंच के द्वारा आयोजित की गई एक अंतर्राज्यीय परिचर्चा में इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) से वीणा सिन्हा , अहमदाबाद (गुजरात) से भारती त्यागी , पटना (बिहार) से सरस्वती दुबे , इंदौर (मध्यप्रदेश) से लीला पवार , इंफाल (मणिपुर) से मयोरी माइबम , सासाराम (बिहार) से एम. ए. अंग्रेजी की छात्रा प्रतिभा कुमारी , रीवा (मध्यप्रदेश) से स्कूली छात्रा खुशी मिश्रा , लक्ष्मी पटेल , रीवा के ग्राम पिपरा नईगढ़ी से सुशीला मिश्रा , रीवा के बड़ागांव तहसील गुढ़ से सुधा त्रिपाठी एवं समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने सक्रिय भागीदारी करते हुए महत्वपूर्ण सुझाव रखे हैं . परिचर्चा में वीणा सिन्हा ने कहा कि 2 मीटर दूरी मॉस्क है जरूरी का पालन कराते हुए सरकार को शीघ्र ही छात्र-छात्राओं के शैक्षणिक भविष्य को लेकर स्कूल कॉलेज शुरू कर देना चाहिए . कोरोना कॉल में पढ़ाई का वातावरण नहीं होने से बच्चे बिगड़ रहे हैं . अधिकांश घरों में तनाव का माहौल है . इधर देखने को मिल रहा है कि ऑनलाइन पढ़ाई कार्यक्रम केवल सुविधा संपन्न बच्चों के लिए संभव हो पा रहा है . गरीब एवं निम्न मध्यम वर्ग के बच्चे इससे वंचित हो रहे हैं . महंगे मोबाइल खरीदना और उसे लगातार रिचार्ज कराना सामान्य वर्ग के लिए संभव नहीं हो पा रहा है . स्कूल कॉलेज में बच्चे अनुशासित रहते हैं जहां कोरोना प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन संभव है .
परिचर्चा में बात को आगे बढ़ाते हुए भारती त्यागी ने कहा कि स्कूल कॉलेज के बिना घरों में पढ़ाई का माहौल संभव नहीं है . कोरोना काल में लंबे समय से बच्चों के घरों में रहने से उनका जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है . बच्चों की दिनचर्या प्रभावित होने से उनके स्वास्थ्य पर भी उसका प्रतिकूल असर हुआ है . उनके पढ़ने की ललक खत्म होती जा रही है . बच्चों को स्कूल कॉलेज जाने से रोक दिया गया हैं जिसके चलते वे इधर-उधर भटक रहे हैं . ऑनलाइन पढ़ाई से छात्र छात्राएं खुश नहीं हैं . जिस तरह की ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है उससे बच्चों का स्वाभाविक विकास रुक गया है . बच्चों की दिमागी हालत रोबोट की तरह बनाई जा रही है . मानवीय संवेदनाएं खत्म हो रही है . यह बात काफी खतरनाक है . कोरोना संक्रमण काल में आमतौर पर छात्र छात्राएं स्कूल कॉलेज की फीस देने की स्थिति में नहीं है जिसका खर्च शासन को उठाना चाहिए .
सरस्वती दुबे ने कहा कि स्कूल कॉलेज बंद हो जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र छात्राओं पर बहुत बुरा असर हुआ है . गांव में अध्ययन अध्यापन पूरी तरह बंद है .पढ़ाई का कोई वातावरण नहीं बन पा रहा है . कोरोना काल में स्कूल कॉलेज बंद होने से आवारागर्दी बढ़ी है . बच्चों के लिए खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत चरितार्थ हो रही है . उनके बीच में नशाखोरी की प्रवृत्ति भी तेजी से बढ़ती जा रही है . ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर बच्चों के हाथ में मोबाइल काफी घातक बन रहा है . अधिकांश बच्चे पढ़ाई की जगह गलत संदेशों के शिकार हो रहे हैं . कोरोना काल में बड़े पैमाने पर बच्चों को अपने पेट भरने के लिए बाल श्रम करना पड़ रहा है .
मयोरी माइबम ने कहा कि आमतौर पर कमजोर वर्ग के बच्चे वैसे भी नहीं पढ़ पा रहे थे लेकिन कोरोना काल में उनके भविष्य को पूरी तरह अंधेरे में धकेल दिया है . ऑनलाइन पढ़ाई गरीब तबके के साथ क्रूर मजाक है . गरीब तबके के अधिकांश बच्चे आठवीं के आगे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं . सरकार का सर्व शिक्षा अभियान महज दिखावा बन गया है स्कूल में नाम दर्ज करने से बच्चे की पढ़ाई नहीं होती है .
सुशीला मिश्रा ने बताया कि बहुत से बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन उन्हें माहौल नहीं मिल पा रहा है . गरीबी इतनी अधिक है कि मां-बाप पेट की चिंता में रोजगार के लिए भटकते रहते हैं और ऐसी स्थिति में बच्चों को आगे पढ़ाना उनके लिए संभव नहीं है . सरकार से ऐसी कोई मदद नहीं मिलती कि बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से जारी रह सके . कोरोना काल में स्थिति और खराब हो गई है .
सुधा त्रिपाठी ने कहा कि कोरोना काल में काम धंधे छूट जाने से शहरों में काम कर रहे गांव के लोग फिर गांव में चले आए हैं , जहां उनके लिए कोई काम नहीं है . ग्रामीण बेरोजगारी चरम स्थिति में पहुंच गई है . खेती घाटे का धंधा है जिसके चलते किसानों की स्थिति भी बहुत खराब है . गरीबों को दी जाने वाली सहायता राशि ऊंट के मुंह में जीरा जैसी है . सरकार तीसरी लहर के नाम पर जिस तरह का भय का वातावरण बना रही है , उससे बच्चों की पढ़ाई चौपट हो गई है . लहर कहां है , अभी किसी को पता नहीं है , फिर भी उसका प्रचार बहुत तेजी से हो रहा है . बच्चों को इधर उधर जाने में रोक नहीं है केवल स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए हैं . कुछ समझ में नहीं आता कि सरकार की नीति और इरादा क्या है .
कॉलेज की छात्रा प्रतिभा कुमारी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क की समस्या हमेशा बनी रहती है जिसके चलते गांव में रहने वाले अधिकांश छात्र छात्राएं ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित हो रहे हैं .पढ़ाई के लिए लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर देखने को मिल रहा है . मोबाइल पर आने वाले गलत संदेशों का भी दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है . बीच-बीच में संपर्क टूटने से शिक्षकों को भी बच्चों को पढ़ाने में परेशानी हो रही है .
स्कूली छात्रा खुशी मिश्रा एवं लक्ष्मी पटेल ने कहा कि अधिकांश छात्र-छात्राओं ने क्या समझा नहीं समझा इसका आकलन ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से शिक्षक नहीं कर पा रहे हैं . स्कूलों में प्रवेश शुल्क के साथ ट्यूशन फीस भी ली जा रही है . जबकि सरकार को इसका खर्च वहन करना चाहिए . तीसरी लहर के नाम पर स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए लेकिन वहीं बाकी सभी काम हो रहे हैं . बच्चों को दूसरी जगह जाने में मना नहीं है लेकिन कोरोना के नाम पर स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए हैं .
समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा कि बोर्ड परीक्षाओं को लेकर सरकार बच्चों की विशेष तैयारी करवाए . कोरोना प्रोटोकॉल के अंतर्गत स्कूलों कॉलेजों छात्र-छात्राओं के बैठने की समुचित व्यवस्था बनाई जाए . जिस तरह बहुत सारे प्रशासनिक औद्योगिक और विकास के काम हो रहे हैं उसी तर्ज पर अध्ययन अध्यापन का कार्य भी शुरू किया जाना चाहिए . यात्री ट्रेन सेवाएं जारी हैं , बाजार माल खोल दिए गए हैं जहां बच्चे भी जा रहे हैं तो कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए आगामी जुलाई माह से स्कूल कॉलेज क्यों नहीं खोले जा सकते ? यह भारी विडंबना है कि स्कूल कॉलेजों में चुनावी रैलियों की तरह भीड़ का सवाल नहीं फिर भी वहां तालाबंदी है .सरकार के द्वारा कोरोना टेस्टिंग एवं वैक्सीनेशन कार्यक्रम को जारी रखते हुए कोरोना प्रोटोकॉल के अंतर्गत स्कूल कॉलेज खोलकर छात्र-छात्राओं की अवरुद्ध पढ़ाई को फिर से जारी रखने की दिशा में ठोस पहल करना चाहिए .