लूणकरणसर। किसी भी समाज के विकास में शिक्षा को महत्वपूर्ण कारक माना गया है। बात जब हम महिलाओं की शिक्षा की करते हैं तो यह न केवल सामाजिक विकास बल्कि सामाजिक न्याय का भी एक महत्वपूर्ण पहलू हो जाता है। महिलाओं की शिक्षा को नज़रअंदाज़ कर कोई भी देश वास्तविक विकास के पथ पर नहीं चल सकता है। चूंकि वह दुनिया की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, ऐसे में यदि उन्हें शिक्षा के अवसर प्रदान नहीं किए जाते हैं, तो हम सामाजिक और आर्थिक प्रगति का आधा हिस्सा खो देते हैं।
भारत जैसे देश में जहां शिक्षा प्राप्त करना एक बड़ी समस्या है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और अन्य सामाजिक कारणों से शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। अक्सर गांवों में स्कूलों की कमी या उनकी दूरी इस समस्या को और अधिक बढ़ा देती है। सुरक्षा चिंताओं के कारण अभिभावक अपनी बेटियों को दूरदराज के स्कूलों में भेजना नहीं चाहते हैं। जिससे उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। ऐसे में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ जाती है।
दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने में आज भी कई स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई योजनाएं संचालित कर रही है, लेकिन स्कूल में शौचालय और पैड्स की उपलब्धता जैसी सुविधाओं की कमियों के साथ साथ किशोरियों को घर से स्कूल या कॉलेज की दूरी सहित अन्य कई प्रकार की सामाजिक बाधाओं का सामना रहता है। जो न केवल सामाजिक विकास में अवरोधक है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने से भी रोकती है। इसके अतिरिक्त पितृसत्तात्मक समाज में किशोरियों की शिक्षा को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। स्कूल छुड़वा कर उन्हें घरेलू कामों में लगा दिया जाता है या कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती है। इन पारंपरिक विचारों और शैक्षिक अवसरों की कमी उन्हें अपनी क्षमता को उजागर करने से वंचित कर देती है।
राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के राजपुरा हुडान गांव इसका एक उदाहरण है। जहां माहवारी के दिनों में लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। इस संबंध में कक्षा 10वीं में पढ़ने वाली 16 वर्षीय मोनिका बताती है कि आर्थिक रूप से कमज़ोर पारिवारिक पृष्ठभूमि से होने के कारण वह प्रत्येक माह पैड खरीदने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में वह माहवारी के दिनों में स्कूल आना बंद कर देती है। जिससे उसे पढ़ाई में नुकसान उठाना पड़ता है।
वहीं 11वीं में पढ़ने वाली मीणा बताती है कि स्कूल में शौचालय तो बना हुआ है लेकिन साफ़ सफाई नहीं होने के कारण लड़कियां उसका प्रयोग नहीं कर पाती हैं। ऐसे में वह माहवारी के दिनों में पैड बदलने की समस्या से बचने के लिए स्कूल आना बंद कर देती हैं। वह बताती है कि केवल शौचालय गंदा ही नहीं रहता है बल्कि स्कूल में पैड के निस्तारण की भी उचित व्यवस्था नहीं है।
शुरू में किशोरियां इसे खुले में फेंक दिया करती थी। लेकिन स्कूल प्रशासन द्वारा इस पर रोक लगा दी गई जबकि निस्तारण की व्यवस्था भी नहीं की गई है। वह कहती है कि स्कूल प्रशासन को किशोरियों की समस्या को दूर करने के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि माहवारी के दिनों में भी किसी लड़की का स्कूल न छूटे।
ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों के सामने केवल स्कूल स्तर तक ही चुनौतियां नहीं हैं बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी कई बाधाएं आती हैं। इस संबंध में गांव की 21 वर्षीय संतोष बताती है कि 12वीं के बाद उसे आगे की शिक्षा इसलिए छोड़नी पड़ी क्योंकि कॉलेज गांव से 18 किमी दूर लूणकरणसर ब्लॉक में है। जहां जाने आने के लिए बहुत सीमित संख्या में बस या अन्य साधन उपलब्ध हैं। इसलिए उसके अभिभावक ने उसका कॉलेज में नामांकन कराने से मना कर दिया।
वहीं माधवी बताती है कि कॉलेज दूर होने के कारण उसकी पढ़ाई छुड़वा कर घर के कामों में लगा दिया गया। जबकि उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने और पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनने का सपना था, जो अब अधूरा रह गया है। वहीं दूसरी ओर भाई को कॉलेज जाने आने के लिए बाइक दी गई है। वह कहती है कि 12वीं के बाद कॉलेज दूर होने होने की वजह से गांव की लगभग सभी लड़कियां शिक्षा से वंचित हो जाती हैं। अधिकतर किशोरियों की 12वीं के बाद शादी कर दी जाती है। जबकि लड़कों को कॉलेज जाने आने के लिए आगे पढ़ने के लिए सभी साधन उपलब्ध कराये जाते हैं।
यदि राजपुरा हुडान की किशोरियों को बेहतर शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाएं तो वे न केवल अपना जीवन सुधार सकती हैं, बल्कि अपने परिवार और गांव के विकास में भी योगदान दे सकती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनका कदम अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
देश में पुरुषों की तुलना में महिला साक्षरता की दर में काफी अंतर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में महिला साक्षरता की दर मात्र 64।46 फीसदी है, जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 फीसदी है। विशेष बात यह है कि भारत की महिला साक्षरता दर विश्व की औसत महिला साक्षरता की दर 79.7 प्रतिशत से काफी कम है। वहीं राजस्थान की बात करें तो यहां महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 52.12 प्रतिशत है जो बिहार (51.50 प्रतिशत) के बाद में देश में दूसरी सबसे कम है। वास्तव में, किशोरियों के लिए शिक्षा प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां सांस्कृतिक और पारंपरिक बाधाएं उनकी राह में एक बड़ी रुकावट बन जाती है।
इस मुद्दे को उजागर करने और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक संगठनों और मीडिया को भी सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। इसके माध्यम से ही एक विकसित और संतुलित समाज की स्थापना की जा सकती है। हमें इस तथ्य को समझते हुए कि शिक्षा प्राप्त करना हर लड़की का मूल अधिकार है। ऐसे में राजपुरा हुडान की किशोरियों को इस अधिकार से वंचित करना उनके सामाजिक प्रगति के मार्ग में बाधा है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक लड़की को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले, ताकि वह एक उज्ज्वल और स्वतंत्र भविष्य का निर्माण कर सके।
(राजस्थान के लूणकरणसर से रामश्री की ग्राउंड रिपोर्ट)