~डॉ. प्रिया
_आज यहाँ पढ़िए बजाईना की संरचना से लेकर इसलिए कार्य, इससे संबंधित विकार और उपचार तक की कम्प्लीट जानकारी. परामर्श, जाँच, एनालिसिस और उपचार की सेवाएं हम नि:शुल्क सुलभ कराते हैं._
*योनि का संरचनात्मक स्वरूप :*
स्त्री के सेक्स अंगों में एक महत्वपूर्ण अंग योनि है। यह प्रजनन अंग भी है। स्त्री का प्रजनन तन्त्र निम्नांकित अंगों से मिल कर बना है :
●गर्भाश्य(uterus)
●डिम्बवाही ●नलिकाएं(fellopian tubes)
●अंडाश्य(ovaries)
●गर्भाश्य ग्रीवा(cervix)
●भगोष्ठ वृहतः(labia majora)
●लघु भगोष्ठ(labia minora)
●बार्थीलिन ग्रंथियाँ(bartholins glands)
●भगशिश्न(clitoris)
●योनि(vagina)
हम में से अधिकांश लोग योनि के बारे में जानते हैं किन्तु इसे वल्वा (vulva) से जोड़ देते हैं। अब आप पूछेंगे वल्वा क्या है?
वास्तव में, वलवा शब्द बाहृय जननांगों (external reproductive organs) लेबिया/लेबिया मजोरा, लेबिया माइनोरा, बार्थोलिन ग्रन्थियाँ, क्लाइटोरिस और वैजाइना के लिए संयुक्त रूप से किया जाता है।
∆ योनि क्या है ?
योनि स्त्री प्रजनन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है जो कि लचीला और मांसल होता है। यह एक प्रकार की नली होती है जिसमें चिकनाई और संवेदना प्रदान करने वाली एक कोमल और लचीली परत होती है।
प्रकृति ने इसकी संरचना इस प्रकार की है कि ये संभोग और शिशु जन्म की प्रक्रिया को सरल और सहज बनाती है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आपके बाह्य जननांगों अर्थात वल्वा को गर्भाश्य ग्रीवा (curvix) और गर्भाश्य(uterus) से जोड़ती है।
आप इसे वल्वा और गर्भाशय के बीच संपर्क बिंदु कह सकते हैं।
योनि, जिसके मुख पर एक बारीक झिल्ली, हाइमन, जो अर्धचन्द्राकार के रुप में होती है, मासिक धर्म के समय रक्त बहाव के मार्ग को सरल बनाती है।
योनि के कार्य :
योनि का मुख्य कार्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को दूर रखना है। ये सूक्ष्मजीव संक्रमण कर सकते हैं और यहाँ तक कि मूत्राशय के संक्रमण (urinary tract infection)का कारण भी बन सकते हैं।
लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस एक ऐसा जीव है जो स्त्रियों में प्रजनन काल 15-40 वर्ष की आयु में कुदरती तौर पर विद्यमान रहता है। ये लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस स्त्रावित लेक्टिक एसिड के द्वारा योनि में अम्लीय वातावरण बनाते हैं, जिसके कारण योनि का pH 4.9- 3.5 के मध्य रहता है।
यही अम्लीय वातावरण विभिन्न जीवाणुओं का पनपने नहीं देता। यही योनि को संक्रमण से मुक्त रखता है और हानिकारक जीवाणुओं को गर्भाश्य तक नहीं पहुँचने देता।
योनि को स्वस्थ रखने के आयाम :
◆डूशिंग(douching) शब्द का प्रयोग योनि को पानी जैसे तरल पदार्थ से धोने के लिए किया जाता है। हम आमतौर पर मूत्रविसर्जन के बाद या मासिक धर्म के दौरान योनि को पानी से बार-बार साफ करते हैं।
डूशिंग आपकी योनि में प्राकृतिक रूप से होने वाली माइक्रो फ़्लोरा को नष्ट सकता है जिससे पीएच का संतुलन बिगड़ सकता है।
ऐसा करना हानिकारक जीवाणुओं को आमंत्रित करता है, ताकि वे संक्रमण पैदा कर सकें।
योनि में एक प्राकृतिक स्व-सफाई तंत्र है, अतः इसे साबुनयुक्त पानी से धोना आवश्यक नहीं है। धीरे से अपनी योनि को एक स्वच्छ कपड़े से पोंछें और डूशिंग बिल्कुल न करें।
◆टैम्पोन और मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग करने से पहले अपने हाथ साफ करें। टैम्पोन या मेंस्ट्रुअल कप अन्दर डालने से पहले अपने हाथों को एंटी-बैक्टीरियल वॉश से अच्छी तरह धो लें। हमें हाथ धोने के बाद ही अपनी योनि को छूना चाहिए।
जब भी हम चीजों को छूते हैं, तो हमारे हाथों में अनगिनत कीटाणु आ जाते हैं। अतः अपने हाथ धोना बहुत ही आवश्यक है!
◆उपयोग करने से पहले मेंस्ट्रुअल कप को जीवाणुरहित(sterlise) करें। चाहे आपने एक नया मेंस्ट्रुअल कप खरीदा है या आपकी अलमारी में पहले से ही उपयोग किया गया कप है, तो भी इसे उपयोग करने से पहले कृपया स्टरलाइज़ कर लें।
स्टरलाइज़ करना हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करता है और आपको योनि संक्रमण से सुरक्षित रखता है।
◆जब आपके पीरियड्स खत्म हो जाएं, तो इसे फिर से स्टरलाइज़ करें और इसके कवर में रख दें। याद रखिए कि मेंस्ट्रुअल कप को आपकी योनि में 5-6 घंटे के लिए लगातार रहना होता है इसलिए इसे साफ और स्टरलाइज़ करना अति आवश्यक है।
★हमेशा के लिए सुरक्षित सेक्स की आदत डाल लें। सुरक्षित का अर्थ यह नहीं कि, कंडोम के सहारे कईयों से सेक्स करवाएं। एक इंसान को ही अपनाएं।
योनि मन्दिर है; एकमात्र जीवंत और परमात्मा निर्मित मंदिर। इसमें हर किसी को डालकर इसे गंदा नाला न बनाएं।
एक इंसान को खुद में उतारती हैं तो कंडोम तभी जरूरी है जब वो रोगी हो, या संतान न चाहती हों।
◆आपको संभोग के बाद पेशाब ज़रूर करना चाहिए क्योंकि यह मूत्र सम्बन्धी संक्रन्मण (यूटीआई) की संभावना को कम करता है, जो कि यौन रूप से सक्रिय महिलाओं में बहुत पाया जाता हैं।
सेक्स के बाद पेशाब करने से आपको संक्रमण करने वाले जीवों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है, यानि आप संक्रमण से बच सकते हैं।
◆अपने प्यूबिक हेयर को काटकर उस स्थान को साफ रखें, किन्तु पूरी तरह से काटने का सुझाव बिलकुल नहीं है।
प्यूबिक हेयर आपकी योनि को हानिकारक बैक्टीरिया से बचाते हैं और कई स्त्रियों में घर्षण या पसीने से होने वाली समस्याओं को कम करता हैं।
◆जब लुब्रिकेंट का उपयोग करना महत्वपूर्ण है, तो इसमें प्रयुक्त सामग्री की जांच करना भी महत्वपूर्ण है।
पैराबेनज़, सुगन्ध, ग्लिसरीन, डाई और अप्राकृतिक तेलों वाले लुब्रिकेंट से हर कीमत पर बचना चाहिए।
इस प्रकार के लुब्रिकेंट आपकी योनि के पीएच के लिए हानिकारक होते हैं और अवांछित जीवाणुओं को पनपने का कारण बन सकते हैं।
आप पानी या सिलिकॉन आधारित लुब्रिकेंट, पर बिना ग्लिसरीन के, का उपयोग कर सकते हैं।
ग्लिसरीन की चीनी यीस्ट बढ़ने के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान कर सकती है।
या येयीस्ट संक्रमण का कारण हो सकता है।
◆अपने अंडरवियर को प्रतिदिन बदलें और आप हमेशा इसे गर्म पानी से धोएं।
यदि आपका अंडरवियर गीला है, तो कृपया इसे तुरंत बदल दें वरना अवांछित बैक्टीरिया या यीस्ट संक्रमण की वृद्धि हो सकती है।
सिंथेटिक के बजाय सूती अंडरवियर पहनें, क्योंकि ये ही आपकी योनि के स्वास्थ्य के लिए सही है।
रात में अंडरवियर न पहनें अपनी योनि को सांस लेने और आराम देने के लिए रात में अंडरवियर पहनने से बचें (मासिक धर्म के समय को छोड़ कर)।
◆आपको अपने सैनिटरी नैपकिन और टैम्पोन को बदलते रहना चाहिए।
इसे ज़्यादा लंबे समय तक रखना अवांछित रोगाणुओं और संक्रमणों का कारण बन सकता है।
आपको ऐसे किसी भी उत्पादन का उपयोग नहीं करना चाहिए जो योनि के लिए नहीं बना है।
●योनि में स्वयं कोई गंध नहीं होती और यह अपने आपको साफ कर सकती है। डिओडोरेंट / साबुन/ टैल्कम पाउडर का प्रयोग पीएच के स्तर को असंतुलित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त आपकी योनि में एक नाज़ुक और कोमल परत होती है जो साबुन के प्रयोग से सूख सकती है।
■योनि में संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स? ज़रा रुकिए….
एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक सेवन से अच्छे और बुरे दोनों तरह के सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो सकते है, इससे माइक्रो-फ्लोरा में परिवर्तन होकर संक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से यीस्ट संक्रमण(yeast infection)।
इसलिए एंटीबायोटिक दवाइयों से बचें, यह लंबे समय में आपको हानि पहुंचा सकती हैं।
◆हमेशा सामने से पीछे की ओर पोंछें। विपरीत दिशा में नहीं।
पीछे की ओर पोंछने से मल-पदार्थ योनि के सम्पर्क में आकर आपके मूत्रमार्ग(urethra) को संक्रमित कर सकता है।
योनि के भाग :
1 – क्लिटोरिस हुड,
2 – भगशेफ (क्लिटोरिस),
3 – मूत्रमार्ग का छिद्र,
4 – योनिद्वार,
5 – वृहत भगोष्ठ,
6 – लघु भगोष्ठ और
7 – गुदा.
योनि का बाहरी दिखाई देने वाला हिस्सा भग कहलाता है। यह दोनों जांघो के बीच योनि का प्रवेश-द्वार है। व्यस्क स्त्रियों में यह चारो और से बालों से घिरा होता है। यह त्वचा की कई परतों से बनी होती है, जो भीतरी अंगों को सुरक्षा प्रदान करती है। यह कई उपांगों को समाविष्ट किय हुए हैं जैसे भगशिशिनका, मूत्रमार्ग का छिद्र, योनि की झिल्ली (हाइमेन), लघु ग्रंथियां, वृहत भगोष्ठ, लघुभगोष्ठ इत्यादि।
गर्भाशय से योनि प्रघाण तक फैली हुई लगभग 8 से 10 सेमीमीटर लम्बी नली होती है जो मूत्राशय एवं मूत्रमार्ग के पीछे तथा मलाशय एवं गुदामार्ग के सामने स्थित होती है। एक वयस्क स्त्री में योनि की पिछली भित्ति उसकी अगली भित्ति से ज्यादा लम्बी होती है और योनि गर्भाशय के साथ समकोण बनाती है।
योनि की भित्तियां मुख्यतः चिकनी पेशी एवं फाइब्रोइलास्टिक संयोजी ऊतक की बनी होती है जिससे इनमें फैलने का गुण बहुत अधिक होता है और इनमें रक्त वाहिनियों एवं तंत्रिकाओं की आपूर्ति होती है।
सामान्य अवस्था में योनि की भित्तियां आपस में चिपकी रहती है संभोग क्रिया के दौरान लिंग के योनि में प्रविष्ट होने पर वे अलग-अलग हो जाती है।
गर्भाशय ग्रीवा (cervix) के योनि में उभर आने से इसके आगे, पीछे तथा पार्श्वों में चार खाली स्थान बनते हैं जिन्हें फॉर्निसेस (fornices) कहा जाता है।
योनि की भित्ति की दो परतें :
(1) पेशीय परत (Muscular layer) :
इस परत में चिकनी पेशी के लम्बवत् एवं गोलाकार तंतु तथा तंतुमय लचीले संयोजी ऊतक रहते हैं। इसी कारण से योनि में बहुत ज्यादा फैलने और सिकुड़ने का गुण पैदा होता है।
(2) श्लेष्मिक परत (Mucous layer) :
यह श्लेष्मिक कला की आतंरिक परत होती है जो पेशीय परत को आस्तरित करती है। इस परत में बहुत सी झुर्रियां (rugae) रहती है। यह परत स्तरित शल्की उपकला (stratified squamous epithelium) अर्थात् परिवर्तित त्वचा, (इसमें बाल नहीं होते) (nonkeratinizing), से आच्छादित (ढकी) रहती है।
यौवनारम्भ के बाद यह परत मोटी हो जाती है और ग्लाइकोजन से परिपूरित रहती है। इसमें ग्रंथियां नहीं होती है। योनि को चिकना बनाये रखने के लिए श्लेष्मा स्राव गर्भाशय ग्रीवा में मौजूद ग्रंथियों से ही आता है।
यह स्राव क्षारीय होता है लेकिन योनि में प्राकृत रूप से पाये जाने वाले बैक्टीरिया (डोडर्लिन बेसिलाइ) श्लेष्मिक परत में मौजूद ग्लाइकोजन को लैक्टिक एसिड में बदल देते हैं, जिससे योनि के स्राव की प्रतिक्रिया अम्लीय हो जाती है।
इससे योनि में किसी भी तरह का संक्रमण होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
योनि का अम्लीय वातावरण शुक्राणुओं के प्रतिकूल होता है लेकिन पुरुष की अनुषंगी लिंग ग्रंथियों से स्रावित होने वाले द्रव क्षारीय होते हैं, जो योनि की अम्लता को निष्क्रिय करने में मदद करते हैं।
डिम्बोत्सर्जन समय के आस-पास गर्भाशय ग्रीवा की ग्रंथियां भी ज्यादा मात्रा में क्षारीय श्लेष्मा का स्राव करती है। जिससे बच्चा बनाने में सहायता मिलती है।
योनि का सेक्सुअल पहलू :
क्लिट या क्लिटोरिस फीमेल सेक्सुअल पार्ट में एक पहाड़ी जैसी संरचना वाला छोटा सा हिस्सा है, पर यह उनकी सेक्सुअल हेल्थ में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जब आप यौनिक रूप से चार्ज हो जाती हैं, तो आपकी उंगली आपकी योनि तक पहुंचने की कोशिश करने लगती है। और वहां नीचे, यौन उत्तेजना और ज्यादा प्लेजर की ओर बढ़ने लगती है। और अंत में ‘बिग ओ’ ओ यानी संभोग तक पहुंचती हैं। तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस चीज को आपने अभी उत्तेजित किया है उसे क्लिट या भगशेफ (Clitoris) कहा जाता है।
क्लिटोरिस हमेशा महिलाओं के शरीर में एक रहस्य है। क्या है क्लिटोरिस यानी भगशेफ?
क्लिट या क्लिटोरिस को समझने का सबसे आसान तरीका यह है कि यह यौन उत्तेजना के लिए जिम्मेदार मुख्य अंग है, जो सेक्सुअल अराउजल देता है।
यदि आप तकनीकी रूप से बात करती हैं तो यह एक सीधी संरचना है जो पुरुष लिंग के समान है।
भगशेफ दो संरचनाओं से बना है जो एक कॉरपोरा कैवर्नोसा (corpora cavernosa) है, जो मूल रूप से ऊतक है और दूसरा छिद्र द्वारा कवर किए गए ग्लान्स है।
यह क्षेत्र नर्व्स एंडिंग एरिया है और यह संभोग के दौरान उत्तेजित हो जाता है।
क्लिट हुड क्या है? :
यह क्लिट पर एक सुरक्षात्मक कवर है। भगशेफ हुड पर कोई बाल follicles नहीं होते और इस पर खोल नहीं है। यह एक अपूर्ण हुड है और रिसेप्टर्स से भरा है।
यही कारण है कि जब आप इसे छूते हैं तो आप अपने शरीर में एक सनसनी महसूस करते हैं। असल में, इस भाग को उत्तेजित करने के रूप में जाना जाता है। यह एक बटन जैसी आकृति है जो आपके मूत्र द्वार के ठीक ऊपर स्थित है।
क्लिट और उसके हुड के उद्देश्य :
1 ~
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यौन उत्तेजना के रूप में काम करना ।
2 ~
दोनों क्लिट और हुड संभोग के दौरान चोट से सुरक्षा प्रदान करते हैं, खासकर यूरीनरी ओपनिंग के लिए।
भगशेफ को उत्तेजित करना खतरनाक बिल्कुल नहीं है। लेकिन : केवल एक चीज जिसके बारे में आपको सतर्क रहने की ज़रूरत है। वह यह है कि सेक्स खिलौनों के साथ कृत्रिम उत्तेजना कभी-कभी योनि संक्रमण, खरोंच और लिबिडो में कमी का कारण बन सकती है।
पशु या एक से अधिक इंसान का इससे अचमेन्ट भी घातक सावित होता है।
भगशेफ और जी-स्पॉट पर अलग-अलग अवधारणाएं हैं, लेकिन विज्ञान के अनुसार, भगशेफ और जी-स्पॉट एक ही चीज़ हैं।
यदि आप आरेखों को देखते हैं, तो जी-स्पॉट क्लिट का आंतरिक अंत है। और जब आप इसे उत्तेजित करते हैं तो आप उत्तेजित हो जाते हैं जो अधिवृक्क भीड़ की ओर जाता है और आप यौन संभोग या हस्तमैथुन के बाद भी अच्छा महसूस करते हैं।
स्लीप ऑर्गेज्म वे इच्छाएं हैं जो सोते वक्त आपके अवचेतन में उत्पन्न होती हैं। यौन शिक्षा की कमी के कारण हम अपने क्लिट के बारे में कुछ चीजों की अनदेखी कर देते हैं।
प्रियपिज़्म एक ऐसी ही स्थिति है। प्रियपिज्म का अर्थ है यौन उत्तेजना की अनुपस्थिति में भगशेफ का दर्दनाक और विस्तारित हो जाना, उदाहरण के लिए, ट्यूमर और ऐसे मामले में आपको गाइनी से परामर्श करने की जरूरत है।
एक योग्य इंसान के प्रति पूर्णतः समर्पित होकर प्रेमभाव से सेल्फ प्लेजर लें या यौन संभोग में शामिल हों : संभोग का वास्तविक आनंद आपके कदम चूमेगा। और हां, इस दौरान अपने क्लिट के प्रति भी थोड़ा प्यार दिखाएं। एकाधिक सेक्स पार्टनर की जोखिम आपको तन- मन से रोगी बनाएगा। योनि तो सेंसिटिविटी खोकर डेमेज होगी ही, सडेगी भी।
योनि रोगों का स्वरूप और समाधान :
प्रमुख योनि विकारों और उनके समाधान का स्वरूप इस प्रकार है :~
(१) योनिपथ का अभाव :
यदि योनि पथ के अभाव के साथ ही साथ संपूर्ण जननांगों का भी अभाव है, तो इस स्थिति में कोई चिकित्सा नहीं की जा सकती।
यदि केवल योनि पथ का ही अभाव, या कुनिर्माण, हुआ है, तो शल्यचिकित्सा द्वारा कृत्रिम योनिपथ बनाया जा सकता हैं।
(2) विभाजित योनि :
भ्रूण अवस्था में वृद्धि के समय जननांग दो भागों में विभक्त हो जाते है। एक पर्दा योनिपथ को तथा दूसरा गर्भाशय को दो भागों में विभक्त करता है, परंतु प्राय: यह पर्दा जन्म के समय से पहले ही स्वत: विलुप्त हो जाता है। कभी कभी यह जन्मोपरांत भी बना रहता है।
उस समय यह योनपथ को उसकी लंबाई में, दो भागों में विभक्त कर देता है। यह अवस्था शल्यचिकित्सासाध्य है।
(3) योनिपथ का संकीर्ण होना :
योनिपथ की परिधि कम होती है। यों तो उसमें अन्य कोई कष्ट नहीं होता है, केवल संभोग के समय अत्यधिक वेदना का अनुभव होता है।
इसकी चिकित्सा योनि विस्फारकों (dilators) के द्वारा शनै: शनै: योनि मार्ग को विस्फारित करना है।
(4) योनिच्छद का छिद्रयुक्त न होना :
साधारण स्थिति में योनिच्छद छिद्रयुक्त होता है तथा मासिक रज:स्राव बाहर आता रहता है, परंतु यदि यह छिद्र उपस्थित न हो, तो प्रति मास होनेवाले स्राव का रक्त बाहर नहीं आ सकेगा तथा अंदर ही रज जमा होता रहेगा।
योनिपथ के पूर्ण भर जाने पर वह रक्त गर्भाशय, डिंब्बाहिनी और अंत में उदर गुहा में अकट्ठा होना प्रारंभ कर देता है। उदर में भगसंधि के ऊपर गाँठ जैसा फूल जाता है। यह गाँठ मासिक स्राव के समय बढ़ती है तथा रक्त जमने पर घट जाती है।
योनिच्छद भी बाहर उभरा एवं फूला रहता है। इन रोगों को रक्तयोनि, रक्त-गर्भाशय एवं रक्त-डिंबबाहनी कहते हैं। धन (+) के आकार को छेद बनाकर, उसे शनै: शनै: विस्फारित करना होता है।
(5) ट्रिकोमोनोस योनिशोथ :
यह एक प्रकार का फंगस है, जो योनि के श्लेष्मल स्तर में संक्रमण करता है। यह शोथ किसी समय किसी भी अवस्था में हो सकता है।
इसमें योनिकंडु, सिर दर्द, बेचैनी तथा दाह होता है। योनि में शोथ के लाल चकत्ते हो जाते हैं तथा पीला स्राव होता है। संखिया, वायोफार्म, फ्लोरक्विन आदि की गोलियों को योनि में धारण करने से लाभ है तथा सल्फा और सेंटिबायोटिक गोलियों को भी योनि में धारण किया जाता है।
(6) योनि का थ्रश :
यह मायकोटिक प्रकार का फंगस उपसर्ग है। योनिपथ में एक सफेद पर्त सी जम जाती है, जिसे हटाने पर दाने दिखाई देते हैं।
इस कवक का नाम कैंडिडा अल्वीकेंस है। इस व्याधि में दाह, वेदना, कंडु तथा स्राव होता है। मायकोस्टेटिन सपॉज़िटरी से लाभ होता है।
इसी प्रकार हीमोफीलस वैजाइनैल के उपसर्ग से भी योनिशोथ होता है। इसमें टेरामाइसीन से लाभ होता है।
(7) सपूय योनिशोथ :
गॉनोकॉकस, स्टैफिलो और स्ट्रेप्टोकॉकस जीवाणुओं के कारण योनिशोथ होता है।
इसमें कंडु, दाह, तथा वेदना होती है और पुयस्राव होता है। सल्फा तथा ऐंटिबायोटिक औषधियों से तुरंत लाभ होता है।
(8) जराजन्य योनिशोथ :
रजोनिवृत्ति के पश्चात् एस्ट्रोजेन की कमी से तथा योनि श्लेष्मलकला में रक्त की कमी से, व्रण उत्पन्न होते हैं तथा उपसर्ग के लिये योनि सुग्राही हो जाती है।
एस्ट्रोजेन के प्रयोग से लाभ होता है।
(9) मृदु शेंकर (ब्रण) :
यह डूक्रे के जीवाणु का उपसर्ग है। यह रतिज रोग है। योनि में रक्त के दाने होते हैं तथा लसिकपर्वी में शोथ उत्पन्न होता है।
सल्फा तथा ऐंटिबायोटिक औषधियों से लाभ होता है।
(10) कठोर शेंकर (ब्रण) :
यह रतिज उपसर्ग स्काइरोकीटा पेलेडा से होता है। इसे सिफलिस कहते हैं। प्राय: अघुभगोष्ठ तथा कभी कभी योनि में एक दाना दिखाई देता है, जो काफी बड़ा होता है तथा फिर ब्रण में बदल जाता हैं।
इसकी चिकित्सा आर्सेनिक एवं पेनिसिलीन से की जाती है।
(11)चोट से विकार :
कभी कभी गिरने से, या कुप्रसव के कारण, योनिपथ विदीर्ण हो जाता हैं, अत: सिलाई करने से तथा व्रण-रोण चिकित्सा से लाभ होता है।
(12) युरेथ्रोसील तथा सिस्टोसील :
योनिपथ की पूर्वी दीवार प्रसव के सतत अधातों से, या जन्मजात कमजोर होने से, ढीली हो जाती है। यह दीवार मूत्रनलिका को, या मूत्राशय को लेकर योनि में लटकने लगती हैं तथा खाँसने आदि में योनि में उभार अधिक होता हैं।
कभी कभी रोगवृद्धि होने पर मूत्राशय में रुकावट तथा कष्ट होने लगता है। इसकी शल्य कर्म से चिकित्सा की जाती है।
(13) रेक्ओसील :
योनिपथ की पश्चिमी दीवार प्रसव के आधातों से ढीली होकर मूत्राशय को साथ लेकर योनि में लटकने लगती है।
इसकी शल्यकर्म द्वारा चिकित्सा की जाती है।
(14) मूत्राशय-योन नाड़ीव्रण :
मूत्राशय का निचा हिस्सा प्रसव के समय आधात से, अथवा दुर्दभ्य अर्बुद से विदीर्ण हो जाता है और मूत्र हर समय योनिपथ से टपकता रहता है।
निदान के लिये कैथेटर से मूत्राशय में कोई रंग डाल दिया जाता है तथा नाड्व्ऱीाण के बाह्य मुख से इसे निकलता देखा जा सकता हैं। शल्यचिकित्सा द्वारा यह रोग साध्य है।
विधिविरुद्ध गर्भपात से, या बालिकाओं के खेलते समय, अन्य कारणों से योनिपथ में बाह्य वस्तु (शल्य) रह जाने के कारण, वेदना, ज्वर, स्राव आदि होने लगते हैं। इसकी चिकित्सा शल्यर्निरण और व्रणरोपण है।
(15) प्राइव्रमायोमाटा :
यह पेशी और तांतवी धातु का सुदम्य अर्वुद है, जो योनि में उभार सा बनाता है तथा मैथुन में कष्ट देता है, परंतु साधारणत: नहीं होती है। इसकी चिकित्सा शल्यकर्म द्वारा होती है।
(16) कार्सिनोमा :
गर्भाशय, या गर्भाश्य ग्रीवा के कार्सिनोमा के बाद यह गौण रूप में होता है। छोटे छोटे दुर्दम अर्बुद होते हैं।
संभोग, या योनिप्रक्षालन के बाद स्राव होता है, पूयजल स्राव, असहनीय वेदना तथा मलाशय, मूत्राशय की दीवार, कष्ट होने पर योनि से मलमूत्र का त्याग होता है।
इसकी चिकित्सा में संपूर्ण जननांगों को शल्यकर्म द्वारा निकाल देना पड़ता है। तथा रेडियम, एवं गंभीर एक्स किरणें दी जाती है।
(17) कोरियन इपिथोलियोमा :
यह अर्बुद बहुत कम होता है। हिमोटोमा की भाँति यह बैंगनी (purple) रंग का दुर्दभ्म अर्बुद है।
इसमें गर्भिणी परीक्षण आस्यात्मक होता है। रेडियम तथा गंभीर एक्सकिरण द्वारा चिकित्सा की जाती है। योनि में यदा कदा कैंसर की तरह सार्कोमा भी होता है।
(18) योनि पुटी :
साधारणतया योनि में कोई ग्रथि, या लसपर्व नहीं होता है, फिर भी कहीं लघु रूप पुटी में रहते हैं, जिनसे पुटी बनती है, जिनमें पानी भरा रहता है।
वुल्फियन डक्ट के अवशिष्टों से भी पुटी बनती है। यह वेदनारहित उभार है तथा शल्यकर्म द्वारा निकाल दिया जाता है।
(चेतना विकास मिशन)