~ दिव्या गुप्ता, दिल्ली
गत 29 सितंबर, 2024 को गाजियाबाद के लोहियानगर स्थित हिंदी भवन में एक वैचारिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती ने कहा कि “हिंदू लोग दशहरा में रावण की जगह मुहम्मद का पुतला जलाएं.”
दरअसल ऐसे बयान चर्चा में आने के लिए दिए जाते हैं. यह बयान हरियाणा भी चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए दिलाया गया।
जब उच्चतम न्यायालय के धार्मिक विद्वेष वाले बयान पर कार्रवाई के आदेश के बाद भी यह लोग नहीं रुक रहें हैं और उच्चतम न्यायालय कंडेम्प्ट के बावजूद कुछ नहीं कर रहा है तो सोशल मीडिया पर हाय तौबा मचाकर मुसलमान सिर्फ उसकी पब्लिसिटी ही कर रहे हैं। यह बयान इसीलिए दिया गया है कि मुसलमान इस पर प्रतिक्रिया दे और वह हिंदू हृदय सम्राट बन सके।
यति नरसिंहा नंद एक मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति है. वह तो योगी आदित्यनाथ के बारे में, नरेंद्र मोदी के बारे में, स्मृति ईरानी के बारे में और पूरी भाजपा के बारे में भी बेहद अश्लील टिप्पणी कर चुका है। इसके बाद भी उसका कुछ नहीं हुआ।
मुहम्मद का एक भी फोटो एक भी अक्स यहां तक कि मानव स्मृतियों में उनकी कोई भी 1% इमेज नहीं है। जलाओगे क्या मूर्खो?
इस्लाम की यह व्यवस्था आज समझ में आ रही है कि यहाँ चित्र और स्टेच्यू क्यों प्रतिबंधित है। आज गांधी की मुर्तियां तोड़ी जाती हैं, अंबेडकर की तोड़ी जाती हैं, छत्रपति शिवाजी महाराज की भहरा कर ढह जाती हें, महाकाल मंदिर में बनाई मुर्तियां ज़मीन में गिर जाती हैं , गणेश चतुर्थी और नवरात्र में गणेश जी और तमाम देवियों की मुर्तियां बुल्डोजर और कूड़े की ट्रक से फेंकी जाती है। यह सब भी उन महापुरूषों और आराध्यों का अपमान ही है।
शार्ली आब्दो ने किसी दाढ़ी वाले कार्टून को नबी मुहम्मद का बताकर अश्लील चित्रण किया था और उसे अपने कवर पेज पर छापा था। उसने एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में कहा था कि, “कलाम के राष्ट्रपति और DRDO प्रमुख रहते हुए न जाने कितने हिंदू वैज्ञानिकों की हत्या हुई।”
सहिष्णु समाज की हकीकत अब दुनिया देख रही है , युरोप के तमाम देशों की हाउसिंग सोसायटी से उनके बहिष्कार की खबरें वैसे ही आ रही हैं जैसे गुजरात या राजस्थान से मुसलमानों को लेकर आती है।
मगर मुझे हैरानी होती है कथित धर्म निरपेक्ष, सहिष्णु समाज की खामोशी पर.
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