कुमार चैतन्य
नास्तिक होने का संबंध कथित ईश्वर से नहीं है. जिसकी ‘स्व’ में, ‘सत्य’ में, ‘मनुष्यता’ में आस्था नहीं है वह नास्तिक है. ईश्वर की बात तो इसके बहुत बाद में आती है.
बहुत से लोग आजीवन इस भ्रम में जी रहे होते हैं कि वे आस्तिक हैं, धार्मिक हैं, सात्विक हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि वे कभी आस्तिक, धार्मिक और सात्विक थे ही नहीं।
बिना स्वयं से परिचित हुए, स्वयं को जाने समझे आप कभी भी आस्तिक, सात्विक, धार्मिक हो ही नहीं सकते, ईश्वर से परिचित होना तो बहुत दूर की बात है।
स्मरण रखें :
~यदि आप धूर्त, मक्कार, नेताओं के समर्थक या भक्त हैं, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि आप किसी पर अत्याचार, शोषण देखकर भी मौन रह जाते हैं, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि आप रिश्वतखोर, भ्रष्टाचारी के समर्थक व सहयोगी हैं, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि आपकी लत है माँ-बहनों का मौखिक बलात्कार करने की, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि आप मिलावट करते हैं, यदि आप अपने ग्राहकों को लूटते हैं, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि आप माफियाओं के पक्ष में हैं, यदि आप उनके सहयोगी या मौन समर्थक हैं, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि आप समृद्ध होते हुए भी किसी की सहायता नहीं करते, कभी दान नहीं करते, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि विश्वासघात करना या विश्वासघातियों का साथ देना आपकी प्रवृति है, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
~यदि राष्ट्र व समाज हित से अधिक महत्वपूर्ण आपके लिए नेता और पार्टी हित है, तो आप नास्तिक और अधार्मिक हैं।
केवल ईश्वर के आस्तित्व को नकारने वाले, पूजा-पाठ, रोजा-नमाज न करने वाले ही नास्तिक नहीं होते. वे सब भी नास्तिक होते हैं, जो धार्मिकता और सात्विक्ता का ढोंग करते हैं.
लोग प्याज-लहसुन, मांस-मच्छी न खा कर, लेकिन उपरोक्त कर्मों में लिप्त रहते हैं। ये नास्तिक हैं, क्योंकि इन्हें ईश्वर का कोई भय नहीं. इन्हें ईश्वर के आस्तित्व पर कोई विश्वास नहीं. केवल दूसरों को दिखाने के लिए धार्मिक, सात्विक और आस्तिक बने घूम रहे होते हैं।
जो वास्तव में आस्तिक होगा, वह कभी भी किसी का अहित नहीं करेगा और न ही दूसरों का अहित करने वालों के पक्ष में खड़ा होगा।