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*तुम मुझे तीसरी टर्म दो, मैं तुम्हें एक और आज़ादी दूंगा!*

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*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

पारदर्शिता हो तो ऐसी। आम चुनाव का सीजन अभी आठ-नौ महीना दूर है, पर मोदी जी ने अभी से अपना ऑफर दे दिया है। तुम मुझे तीसरी टर्म दो, मैं तुम्हें सब कुछ दूंगा। रोजगार-वोजगार जैसी छोटी चीजें क्या मांगते हो, मैं तुम्हें दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था दूंगा; मैं तुम्हें विश्व गुरु की गद्दी दूंगा; मैं तुम्हें डेमोक्रेसी की मम्मी दूंगा; मैं तुम्हें दुनिया का अमीर नंबर वन दूंगा; मैं तुम्हें दुनिया की सबसे बड़ी मुफ्त अनाज वितरण योजना भी दूंगा; मैं और भी बहुत कुछ दूंगा! इतना दूंगा कि गिनती भूल जाओगे! गिनती भूलना क्या, मैं तो तुम्हें नो डाटा राज यानी गिनती की जरूरत से ही आजादी दूंगा। और हां! आजादी से ध्यान आया कि प्लीज मोदी जी की गारंटी को, नेताजी के नारे की पैरोडी बताकर, उसका मजाक उड़ाने की जुर्रत कोई नहीं करे। तीसरी टर्म पा जाएंगे, तो मोदी जी इन मुंहझोंसे मजाक उड़ाने वालों से तो जरूर भारत को आजादी दिलाएंगे।

बेशक, पहले और दूसरे टर्म में भी मोदी जी ने व्यंग्य-कॉमेडी वगैरह करने वालों से काफी आजादी दिलाई है; पट्ठों को ऐसे-ऐसे चुटकुलों तक के लिए जेल की लंबी सैर कराई है, जो बंदे के मन में रहे हों तो रहे हों, बंदे ने अपनी जुबान से सुनाए तक नहीं थे। फिर मोदी जी अकेले मजाक उड़ाने वालों से ही आजादी थोड़े ही दिलाएंगे। और भी तरह-तरह की आजादियां दिलाएंगे। संविधान में दर्ज सोशलिज्म के बाद, सेकुलरिज्म, फेडरलिज्म वगैरह से आजादी। संसद, चुनाव, जनता के प्रति जवाबदेही से प्रधान सेवक की आजादी। डेमोक्रेसी से आजादी। अधिकारों से पब्लिक की और कर्तव्यों से राज करने वालों की आजादी। और तो और, संविधान में देश के नाम में इंडिया की साझेदारी से भी भारत की आजादी।

इस आखिरी आजादी का वादा उन लोगों को खासतौर पर याद रखना चाहिए, जो मोदी जी के चुनावी ऑफर को नेताजी के नारे की पैरोडी साबित करने पर तुले हैं। मोदी जी नेताजी का कितना सम्मान करते हैं, यह तो इसी से जाहिर है कि पहली बार उन्होंने ही नेताजी को राजधानी में इंडिया गेट की बगल में, किंग जार्ज पंचम की खाली पड़ी छतरी के नीचे बसाया है। जार्ज पंचम चले गए, पर छतरी पर कब्जा बना रहा। मोदी जी ने ही शत्रु संपत्ति घोषित कर, विदेशी कब्जे से आजाद करायी गयी इस छतरी के नीचे नेताजी की प्रतिमा बैठाई है। वह नेताजी के नारे का उपहास कभी कर ही नहीं सकते हैं। हां! मोदी जी के तीसरे टर्म वाली आजादी के वादे के आगे, नेताजी का नारा खुद-ब-खुद पैरोडी लगने लगे, तो बात दूसरी है। आखिरकार, जार्ज पंचम की छतरी को आजादी तो मोदी जी दूसरे टर्म में ही दिला चुके हैं। तीसरे टर्म में मोदी जी, आजादी का सिलसिला और आगे ले जाएंगे और इंडिया शब्द से ही आजादी दिलाएंगे।

अमृतकाल के उद्घाटन वाले लाल किले के अपने भाषण में ही मोदी जी ने इसका वादा कर दिया था कि — अब गुलामी का एक-एक चिन्ह मिटाएंगे। मुसलमानों का इस्तेमाल किया हिंदुस्तान नाम तो पहले ही छूट गया, अब अंग्रेजों का इस्तेमाल किया, इंडिया भी रगड़-रगड़कर छुड़ाएंगे। और इंडिया से आजादी क्यों न दिलाएं। इंडिया सिर्फ नाम थोड़े ही है। सिर्फ नाम होता, तो मोदी जी के विरोधी इस नाम के पीछे यूं दीवाने नहीं होते। तोड़कर देख लीजिए, इस इंडिया में और जो कुछ है, सो तो है ही, सब कुछ के अलावा इन्क्लूसिव या समावेशी यानी मेल-मिलावट का तत्व भी शामिल है। जब तक ये मिलावट नहीं हटेगी, जब तक शुद्धता नहीं आएगी, तब तक मोदी जी पूरी आजादी के लिए संघर्ष करते रहेंगे। तीसरे के बाद चौथा टर्म भी मांगना पड़ा, तो मांगेंगे, पर गुलामी के, मेल-मिलावट के सारे निशान मिटाकर रहेंगे। और यह नेताजी टाइप का कोरा वादा नहीं है, यह गारंटी है, मोदी जी की पक्की वाली गारंटी।

नेताजी का सारा सम्मान अपनी जगह, पर हम यह भी नहीं भूल सकते हैं कि नेताजी अपना वादा पूरा नहीं कर पाए थे। बलिदान दिया, पर वादा पूरा कहां हुआ। लोगों से खून मांगा भी और लोगों ने खून भर-भर कर दिया भी, पर क्या नेताजी भी अपना वादा पूरा कर पाए? क्या आजादी दिला पाए? जबकि मोदी जी का सिर्फ वादा ही नहीं, गारंटी है, एक और आजादी की गारंटी। और गारंटी भी करीब-करीब मुफ्त ही समझ लो। पब्लिक का क्या लगता है, तीसरी या कोई भी अगली टर्म देने में? सिर्फ एक वोट ही तो देना है, वह भी पांच साल में एक बार। इससे सस्ता ऑफर पब्लिक को दूसरा नहीं मिलेगा। बस अब कोई यह याद मत दिलाने लगना कि पहले टर्म वाले अच्छे दिनों के वादे का क्या हुआ? और हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का भी? और विदेश में जमा काला धन वापस लाकर, हरेक के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख डाले जाने का भी? पर वो सब तो सिर्फ वादे यानी बकौल अमित शाह जुमले थे; और जुमलों का क्या? इस बार मोदी जी पक्की गारंटी लेकर आए हैं। अमित शाह की गारंटी है कि इस बार गारंटी को जुमला हर्गिज नहीं कहेंगे।

*(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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