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नायक नहीं खलनायक बनना है युवाओं का शगल

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 प्रखर अरोड़ा 

      यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन द्वारा किये गए रिसर्च के अनुसार युवा अमूमन हीरो के बदले विलन को अधिक पसंद करते हैं। उनके जीवन , लाइफ स्टाइल, रुतबा, शान-शौकत से अधिक प्रभावित होते हैं।

     _रिसर्च से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार फिल्मों में विलन कितना भी सत्ता का भूखा एवं क्रुर क्यों न हो युवाओं को उसके प्रति हमेशा सॉफ्ट कॉर्नर होता है। वो मानते हैं कि विलन जन्मजात खराब नहीं, बल्कि परिस्थिति उन्हें खराब एवं क्रूर बनाती है।_

       इस रिसर्च के अनुसार विलन को महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक पसंद करते हैं। इन्हें पसंद करने वाले युवा आत्ममुग्ध एवं मेकियावेलियनिस्म अर्थात षड्यंत्रकारी एवं महत्वाकांक्षी होते हैं.

       जब हम बात अपने महान देश की करते हैं तो यह रिसर्च पूर्णत: खरा साबित होता है। हमारे मुल्क में ये विलन रोबिनहुड की छवि बनाये हुए बिना ताज के बादशाह होते हैं। प्रदेश के विधानसभाओं एवं देश के संसद में सम्मानित लॉ मेकर के रूप मे इन्हें जनता बड़े प्यार से चुनकर भेजती है। तो वहीं दूसरे नम्बर पर धार्मिक हेट स्पीच देने वाले होते हैं।

 अत्यधिक धार्मिकता के प्रभाव के कारण ही भारतीय जनमानस की जीवन पद्धति, आचार -विचार, व्यवहार  का नियंत्रण बिलिफ  या इमोशनल ब्रेन ही अधिक करता है, अपेक्षाकृत रेशनल ब्रेन के। क्योंकि लोग सदियों से धार्मिक,आध्यात्मिक चेतना से कण्डीसंड हो चुके हैं, जिसकी शुरुआत परिवार,विद्यालय,समुदाय, पर्व,त्यौहार,शादी,पूजा, प्रार्थना, अनुष्ठान जैसे अनेक माध्यमों से की जाती है. फलस्वरूप निर्मित व्यक्तित्व धार्मिक आस्था पर आधारित हो जाता है, जिससे यहाँ लॉजिक, रीजनिंग , रेशनालिटी के लिए स्पेस नहीं होता है.

     _एक अन्य रिसर्च स्टडीज के अनुसार मनुष्य को तीन चीजें सबसे अधिक प्रेरित करती हैं :_

* बिलिफ

* लीडर

* मनी

 एक उदाहरण से समझने की कोशिश करतें हैं, आपको याद होगा :    

       तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन पर बहुत सारे व्यक्तियों ने आत्महत्या कर ली थी। जबकि जयललिता अथाह भ्रष्टाचार में डूबी नेत्री थी। 

      खुदकुशी करने वालों का खुद का परिवार था,बीबी- बच्चे थे मां-बाप थे, किन्तु अपने प्रिय नेता के प्रति  उनका प्यार,लगाव उनको आत्महत्या के लिये मजबूर कर दिया।  

      कुछ लोगों का कहना है कि उक्त व्यवहार अशिक्षित लोगों में पायी जाती है, जबकि मनोवैज्ञानिक, प्रबन्ध शास्त्री के अनुसार ऐसे व्यवहार मानव के आत्म जागरुकता एवं चेतना से सम्बन्धित होते हैं नाकि शैक्षिक योग्यता से। 

 द्वितीय विश्व युद्ध के समय यूरोपीय देश इटली या जर्मनी शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ थे, किन्तु  फासीवाद , नाजीवाद को मानने वालों में डॉक्टर, इंजीनियर और वकीलों की संख्या सर्वाधिक थी। 

      ऐसे लीडर राष्ट्रवाद , नस्लवाद, धर्मवाद ,भाषा या क्षेत्रवाद जैसे इमोशनल कार्ड का प्रयोग करते हैं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि क्यों मुसोलिनी, हिटलर, जयललिता , मोदी को जनता का इतना अपार प्यार एवं सपोर्ट मिलता है.


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