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  *डॉ. लोहिया   *’रचनाकारों की नजर में’  (भाग -2)*

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*”बलात्कार और वायदा खिलाफी को छोड़कर मर्द और औरत का हर रिश्ता जायज है।”*   *डॉ. लोहिया*

       *प्रोफेसर राजकुमार जैन*

जब कभी लोहिया का ज़िक्र होगा तो उनके दो अनुयायियों राजनारायण और मधु लिमये का संदर्भ कहीं न कहीं आएगा ही। राजनारायण जी ने ‘डॉ० लोहिया की चिंतनधारा’ लेख में डॉ० लोहिया के वैचारिक पक्ष के विभिन्न आयामों पर रोशनी डालते हुए विदेश नीति पर लिखा, ‘एक और अमरीकी खेमा और दूसरी ओर रूसी खेमा, अपना अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की कशमकश में ये दोनों पुनः विश्व को युद्धाग्नि में झोंक देंगे।’ वह भविष्यवाणी आज रूस और युक्रेन की जंग से सही साबित हो रही हैं।

 कांग्रेस से निकलकर सोशलिस्ट पार्टी बनने पर लोहिया के साथ पहले दौर में जो पढ़े-लिखे दीवाने जुड़े थे, उसमें कृष्णनाथ भी शामिल थे। लोहिया ने जो साहित्यिक पत्रिका ‘कल्पना’ तथा अंग्रेज़ी में ‘मैनकाइण्ड’ हैदराबाद से निकाली थी उसका सह-संपादन भी इन्होंने किया था, कृष्णनाथ जी मात्र एक प्रोफेसर, विचारक, लेखक या सिद्धांतकार ही नहीं आंदोलनकारी सिपाही भी थे। लोहिया के साथ जन सवालों पर हुए संघर्षों में जेल का बंदी जीवन भी इन्होंने बिताया था। इन्होंने सत्याग्रह, सर्वोदय आंदोलन, सत्याग्रही की जटिलता की गुत्थी को खोलकर लोहिया की सिविलनाफरमानी का खुलासा करते हुए एक सवालिया निशान भी लगाया कि लोहिया क्रोध की अति की ओर झुके थे। अपने भिक्षु संघ सहित तथा अकेले बुद्ध या लोहिया अक्रोध से क्रोध को जीत सकते है, क्रोध से क्रोध नहीं, अवैर से वैर जीत सकते हैं, वैर से नहीं, सच से झूठ को जीत सकते है, झूठ से नहीं।

 प्रो० निर्मलकुमार बोस, आज़ादी की जंग के सिपाही होने के साथ-साथ मुल्क के मशहूर एंथ्रोपॉलजिस्ट मानव शरीर रचना विज्ञानी भी थे। डॉ० लोहिया ने अपनी किताब ‘गिल्टी मैन ऑफ इण्डियास पार्टिशन” में आज़ादी के बाद मुल्क में हिंदू-मुसलमानों के सांप्रदायिक दंगों, जिसमें भयंकर कत्लेआम हुआ था उसका विस्तार से ज़िक्र किया है।

 प्रो॰बोस ने अपने लेख ‘गांधी जी और लोहिया’ में चश्मदीद गवाह के रूप में तस्दीक करते हुए नोआखली तथा कोलकाता के सांप्रदायिक दंगों, जिसमें भयंकर कत्लेआम हुआ था, ज़िक्र किया है। गांधी जी ने दंगों की आग बुझाने के लिए अपनी ज़िंदगी को दाँव पर लगा दिया। लोहिया भी अपनी जान की परवाह किये बिना गांधी जी के साथ, इस हिंसक हत्या कांड में लगे नौजवानो को जो बंदूकें हथगोलों से लैस थे ने उन्हें राजी किया कि वे अपने शस्त्र गांधी जी के आगे समर्पण करे |

 गणेश मंत्री का लेख “लोहिया: सप्तक्रांति की सीमा, लोहिया के राजनैतिक दर्शन की गहराई से पड़ताल करता हुआ, उनके अनुयायियों और उस संगठन जिसको लोहिया ने बनाया था, उसके विभिन्न आयामों की परतों को बेबाकी से खोलता हुआ दिखाई पड़ता है। ‘धर्मयुग’ के संपादक रह चुके गणेश मंत्री ने कई चर्चित पुस्तकों, रूस-चीन विवाद, मार्क्स, गांधी और समाजवाद तथा विशेष रूप से ‘गोआ मुक्ति संघर्ष’ जैसी किताबें जिसमें लोहिया की पहल तथा संघर्षों का विस्तार से वर्णन किया है, हिंदी में गोवा के मुक्म्मल इतिहास को जानने के लिए यह बहुत ही उपयोगी किताब है। गणेश मंत्री ने अपने लेख में लोहिया द्वारा सप्त क्रांति का जो दर्शन दिया था, उसको गिनवाते हुए उसकी व्यापक व्याख्या करते हुए विशेष रूप से लोहिया की रचना ‘इकॉनॉमिक्स आफ्टर मार्क्स’ में विषमता के बुनियादी कारणों की छानबीन की थी।

 लोहिया के प्रति अनुयायियों में मसीहा सरीखा विश्वास तथा विरोधियों में खलनायक की तस्वीर थी परंतु लोहिया का यक़ीन था कि “लोग मेरी बात सुनेंगे, शायद मेरे मरने के बाद लेकिन किसी दिन सुनेंगे जरूर। उनकी यह बात अब सच साबित हो रही है।

 मधुलियमे की पत्नी होने के कारण चम्पा लिमये को लोहिया को बहुत नज़दीक से देखने और जानने का मौका मिला था । उन्होंने विशेष रूप से भारतीय नारी पर पौराणिक प्रसंगों से लेकर आधुनिक नारी मुक्ति आंदोलन पर लोहिया का क्या नज़रिया था, चर्चा की है। अनेकों मिसालें देकर उन्होंने लोहिया का स्त्री के प्रति विशालता, उसकी कोमलता, त्याग, करुणा, साहस तथा उसके साथ होने वाली गैर-बराबरी पर बिफरना व्यक्त किया है। मर्द और औरत के बीच कैसा रिश्ता हो, इस पर लोहिया के एक वाक्य ने जवाब दे दिया था कि ‘बलात्कार और वायदा खिलाफी को छोड़कर मर्द और औरत का हर रिश्ता जायज है। लोहिया ने अपनी निजी जीवन में इस पर अमल करते हुए अपनी मित्र प्रो. रमा मित्रा को लिखे गए खतों में बिना किसी दुराव-छिपाव के ज्यों का त्यों व्यक्त कर दिया था।

रामधारी सिंह दिनकर किसी परिचय के मोहताज नहीं हालाँकि वे मूलतः एक कवि थे। उन्होंने अपने लेख स्वर्गीय लोहिया साहब में एक ऐतिहासिक बहस जो उस समय चलती थी कि नेहरू के बाद मुल्क की बागडोर कौन सम्भालेगा, उसका खुलासा करते हुए लिखा कि हम लोग विश्वासपूर्वक मानते थे इसका बोझ समाजवादियों के कंधों पर आएगा। परंतु इसके सारे नेता शासन की बागडोर संभालने के स्थान पर अलग-अलग राह के राही बन गए। अकेले लोहिया आजीवन विस्फोटक बने रहे । संसद में लोहिया के आते ही तहलका मच गया । दिनकर ने कविता के माध्यम से भी लोहिया के व्यक्तित्व को याद किया।

                  *(जारी- है)*…….

चित्र ; दाएं से क्रमशः श्रीकांत वर्मा (पत्रकार) ,डॉ राम मनोहर लोहिया और प्रोफेसर रमा मित्रा, शोभन ( लोहिया के सहायक)

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