_आर्थिक उदारीकरण के प्रणेता को नमन, आर्थिक सुधारों के महान शिल्पकार रहे डॉ मनमोहनसिंह_
_देश मे 7 दिन का राजकीय शोक का एलान, 92 साल की उम्र में ली अंतिम सांस, कल अंतिम संस्कार_
*_देश की राजनीति का अत्यंत विनम्र, भद्र व संवेदनशील चेहरा थे सिंह साहब_*
_प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, नड्डा पहुँचे आवास पर, श्रद्धासुमन अर्पित किए_
_लड़ती-झगड़ती आज की राजनीति के लिए डॉक्टर साहब एक मिसाल थे। वे भारत की राजनीति के अटल बिहारी वाजपेयी जी के बाद दूसरे अजातशत्रु थे। देश की वर्तमान की एक बड़ी आबादी ने लालबहादुर शास्त्री जी को नही देखा, उनके लिए डॉ मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व व कृतित्व शास्त्रीजी से किसी भी तरह कम नही। वो ही सहजता, सरलता, ईमानदारी, सादगी व भारत भक्ति। सत्ता का प्रभाव उन पर भी कभी नही चढ़ा। आलोचना को भी उन्होंने सहजता से स्वीकारा और भारत के लिए वो भागीरथी काम कर गए जिसकी कल्पना आज के दौर की राजनीति में संभव नही। आर्थिक उदारीकरण, मनरेगा, आरटीआई से लेकर न्यूक्लियर डील जैसे कालजयी फैसलों के लिए ये देश उन्हें सदैव याद करेगा। बस अफ़सोस ये ही रहेगा कि डॉ मनमोहनसिंह को भी देश मे वो मान नही मिल पाया, जिसके हकदार वे थे। ठीक स्व लालबहादुर शास्त्री की तरह। इसलिए ही शायद आज दिल्ली में सुबह से सर्द मौसम में भी बारिश हो रही हैं। यानी गगन भी इस नाटे कद के विराट व्यक्तित्व के अवसान -उपेक्षा पर ग़मगीन हैं।_
_*…न जाने कितने सवालों की आबरू रख देश का ‘मन’ मौन हो गया। हजारों हज़ार जवाबों से अच्छी खामोशी को ही ओढ़कर वे हमेशा हमेशा के लिए ख़ामोश हो गए, जिनका मौन भी बोलता था। अब सब तरफ़ उनकी ख़ामोशी मुखर हैं। उनका मौन, आज मुखरित हो उठा। हर जुबां पर आज वे श्रद्धा के साथ मुखर हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व आज गूंज रहा हैं। देश ही नही, दुनियां में। सहज, सरल, सादगी से ओतप्रोत व्यक्तित्व का अवसान देश के लिये अपूरणीय क्षति हैं। वे थे तो हिम्मत थी। वे थे तो भरोसा था कि भारत कभी भी आर्थिक मोर्चे पर कमजोर नही होगा। वे भारत ही नही, समूची दुनिया की आस थे। अब सब तरफ़ आंसू हैं। आलोचना को सदैव जिसने सहा लेकिन किसी की आलोचना नही की। किसी भी पर भी उन्होंने जीवन पर्यंत कोई विपरीत टिप्पणी नही की और न कोई व्यक्तिगत हमला। वे भारतीय राजनीति के अटलजी की तरह अजातशत्रु थे। अपनी विनम्रता, विद्वता, शुद्धता और शुभ्रता के साथ वे सबके प्रिय थे।*_
_डॉ मनमोहन सिंह नही रहे। देश का दस बरस सफलता के साथ नेतृत्व करने वाले डाक्टर साहब हम सबको बहुत याद आएंगे। वे देश के आर्थिक उदारीकरण के प्रणेता थे। आज जो भारत की आर्थिक तरक़्क़ी हैं, वो मनमोहन सिंह जी की ही देन हैं। 1991 में देश की आर्थिक स्थिति हिचकोले खा रही थी। खाड़ी देश के युद्ध ने भारत की कमर तोड़ दी और अर्थव्यवस्था गम्भीर संकट में थी। उस वक्त बतौर एक अच्छे सर्जन के रूप में उन्होंने आर्थिक सुधार के लिए ऐसी शल्य क्रिया की कि आज देश दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक ताकत बनने का भरोसा जता रहा हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जो वैश्विक आर्थिक ताकत बनने की बात कर रहे हैं, उसके शिल्पकार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही थे। उन्होंने ही दुनिया के लिए भारत के बाज़ार खोलने का ऐतिहासिक फैसला लिया और तमामं विरोध के बावजूद उसे लागू भी किया। डब्लूटीओ और डंकल प्रस्तावों के विरोध के मचे शोर के बीच भी वे साहस के साथ देश को उस तरफ़ ले गए, जहां से भारत आर्थिक कंगाली से बाहर निकल गया।_
_*जब पूरी दुनिया समेत अमेरिका जैसे देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहे थे, तब मनमोहन सिंह जी के नेतृव में देश इससे अछूता रहा। ये दुनिया के लिए चमत्कृत कर देने का विषय था। लिहाज़ा अमेरिका जैसा देश भी हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के मार्गदर्शन को लालायित हुआ। आर्थिक मोर्चे पर उनके जैसा दूरदृष्टा हुआ ही नही और न होगा। आरबीआई गवर्नर से देश के वित्तमंत्री और फ़िर प्रधानमंत्री तक का उनका सफ़र आर्थिक मोर्चे पर काबिल ए तारीफ़ रहा। उनका राजनीति में आना भी बड़ा दिलचस्प रहा था। वे पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की खोज थे। डाक्टर साहब राजनीति में आना ही नही चाहते थे। वे इस काम के लिए स्वयम को पात्र नही मानते थे लेक़िन नियति को कुछ और मंजूर था। और हुआ भी वही और एकाएक वे देश के वित्त मंत्री बनाये गए। बाद में वे प्रधानमंत्री भी बने और लगातार दो कार्यकाल देश का प्रतिनिधित्व भी किया। ये उनके ईमानदार चरित्र का ही कमाल था कि बेहद कम सीट के बाद भी कांग्रेस में उनके नेतृत्व में दो बार केंद्र में सरकार बनाई।*_
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