नरेन्द्र मोदी की अगुआई वाली NDA सरकार का यह लगातार 11वां बजट रहा, जिसमें 4 जून को लोकसभा नतीजों से बदले सियासी हालात की झलक दिखी। साथ ही, मोदी 3.0 सरकार की आर्थिक दिशा को इसने राह भी दिखाई। इस बजट से निकले पांच संदेश बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ
1- गठबंधन युग की वापसी
वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण ने पहली बार अपने किसी बजट में दो राज्यों पर इतना फोकस किया। केंद्र सरकार के दो अहम सहयोगी- टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू की अगुआई वाले आंध्र प्रदेश और जेडीयू में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले बिहार को जिस तरह खास ट्रीटमेंट दिया गया, वह एक तरह से गठबंधन धर्म की वापसी का ऐलान ही था। इससे पहले तक नरेन्द्र मोदी की सरकार को बजट में ऐसे सियासी दबाव का अहसास नहीं हुआ था। लेकिन इस बजट से साफ संदेश गया कि सहयोगी सरकार में अपने समर्थन की ‘कीमत’ भी वक्त आने पर लेते रहेंगे।
2- 4 जून के जनादेश का साया
बजट में यह भी साफ दिखा कि 4 जून को आए आम चुनाव के जनादेश का साया सरकार पर है। इस बार विपक्षी दलों ने रोजगार को बड़ा मुद्दा बनाया था। बाद में आए आंकड़ों ने भी संकेत दिया कि युवा वोटरों ने इस मुद्दे पर बीजेपी से नाराजगी दिखाई है। सरकार ने बजट में इस पर ध्यान दिया और युवा और उनके रोजगार को बड़े फोकस में रखकर संदेश दिया कि वे सियासी परिणाम से सीख लेने को तैयार हैं। संकेत साफ है कि आगे की राजनीति में युवाओं पर सभी राजनीतिक दलों का फोकस और बढ़ेगा और सरकार की नीतियां भी इनके इर्द-गिर्द घूमेंगी।
3- गरीबों की सुनी, गांवों पर ज़ोर
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ग्रामीण इलाकों की गरीब आबादी से पिछली बार के मुकाबले कम वोट मिला था। उनका विश्वास फिर से हासिल करने के लिए सरकार ने बजट में ग्रामीण इलाकों पर जोर दिया है। खेती-किसानी से लेकर आवास योजना हो या दूसरी सब्सिडी स्कीम, वहां बजट में गांवों को प्राथमिकता दी गई। जानकारों के अनुसार, सरकार बजट में लोकलुभावन योजनाओं से जरूर बची, लेकिन बजट का बड़ा हिस्सा वहीं खर्च करने की मंशा दिखाई है।
4- मिडल क्लास के प्रति दिखी दुविधा
एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल के इस पहले बजट में अगर सबसे अधिक इंतजार किसी बात को लेकर था तो वह यह कि इसमें मिडल क्लास के लिए क्या है, क्या टैक्स में राहत मिलेगी? लेकिन पिछली बार की तरह इस बार भी मिडल क्लास के प्रति दुविधा इस बजट में भी दिखी। बजट में इस वर्ग को टैक्स के मोर्चे पर आंशिक राहत जरूर मिली, लेकिन फौरी प्रतिक्रिया में यह क्लास खुश नहीं दिखा। ऐसे में आने वाले वर्षों में उन्हें साधने की कोशिश हो सकती है। सरकार ने यह भी संदेश दिया कि मिडल क्लास को सीधा लाभ देने के बजाय उनके लिए बेहतर संसाधन जुटाने पर फोकस होगा।
5- बड़े जोखिम से परहेज़
मोदी सरकार की अब तक शैली चौंकाने वाली रही है, लेकिन इस बार बजट में बड़े जोखिम लेने से परहेज किया गया। बड़े-बोल्ड रिफॉर्म को जगह नहीं मिली। बहुत कुछ यथास्थितिवाद का पालन किया गया। नीतिगत स्तर पर पुरानी योजनाओं को विस्तार या उन्हें बेहतर-बड़े स्तर पर लागू करने की बात कही गई। लेकिन वित्तीय घाटे को काबू में रखने के मोदीनॉमिक्स का स्पष्ट संदेश दिया गया कि इस मोर्चे पर कोई समझौता नहीं होगा। साथ ही, यह संदेश भी गया कि सरकार को खर्च के लिए अब अपने खजाने के साथ प्राइवेट इनवेस्टमेंट से भी उम्मीद है, जो उनकी उम्मीदों के अनुरूप हाल के वर्षों में नहीं हुआ।