हरनाम सिंह
हर शहर की अपनी एक पहचान होती है, जिस पर वहां के निवासी गर्व करते हैं। इंदौर की ऐसी ही पहचान राजवाड़ा है। कम ही लोग जानते होंगे कि इस विशाल संरचना को एक बार बेच दिया गया था। लेकिन इंदौर के विधायक और सांसद रहे कामरेड होमी दाजी द्वारा चलाए गए आंदोलन के कारण खरीददार ने राजवाड़ा वापस उसके मालिक को लौटा दिया। अब वह जनता की संपत्ति है। 15 वर्ष पहले 14 मई 2009 को कामरेड दाजी हमसे सदा के लिए बिछड़ गए।
विनीत तिवारी द्वारा संपादित कामरेड दाजी की शरीके हयात पेरिन दाजी के संस्मरण की पुस्तक “यादों की रोशनी” में इस घटना का वर्णन किया गया है। ” इंदौर की शान कहे जाने वाले राजवाड़ा को शहर के धनवान सेठ कासलीवाल ने यशवंत राव होलकर की बेटी उषा राजे से खरीद लिया था। उषा राजे इंदौर में ही जन्मी थी लेकिन उन्हें अपनी विरासत से लगाव नहीं था। उन्होंने इस इमारत को महज पैसे से तोला और अच्छी कीमत पाकर बेच दिया। सौदे की जानकारी सार्वजनिक होने पर होमी दाजी सहित कई लोग नाराज हुए कि एक व्यक्ति धन के बल पर शहर की धरोहर को हमसे कैसे छीन सकता है ? कामरेड दाजी ने शहर के वरिष्ठ नागरिकों को साथ में लेकर राजवाड़े के सामने स्थित चौक में आंदोलन किया। अंततः उषा राजे को यह सौदा रद्द करना पड़ा और लिए गए पैसे लौटाने पड़े।
ऐसे जन नेता थे कामरेड होमी दाजी वे इंदौर से दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे। होमी दाजी का जन्म 5 सितंबर 1926 को मुंबई में पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता तमिलनाडु में एक कॉटन जिनिंग फैक्ट्री के मालिक थे। 1930 के दशक की आर्थिक मंदी ने उनके व्यवसाय को चौपट कर दिया वे नौकरी का विज्ञापन पढ़कर इंदौर आए थे। होमी दाजी का बचपन बेहद गरीबी और संघर्षों में बीता था। विद्यार्थी जीवन काल से ही वे राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया तब उनकी आयु मात्र 16 वर्ष थी। वर्तमान कोठारी मार्केट में राम प्याऊ चौराहे पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई, पुलिस ने लाठीचार्ज किया दाजी का भी सर फूटा।
1951 में ग्वालियर में हुए छात्र आंदोलन में भी वे गिरफ्तार हुए। विधि स्नातक होमी दाजी ने अपना मुकदमा खुद लड़ा और जेल से रिहा हुए। उसके पूर्व 1946 में ही वे कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ चुके थे। कामरेड दाजी कुशल वक्ता और संगठनकर्ता थे। पार्टी ने उन्हें इंदौर की कपड़ा मिलों में काम करने वाले 30 हजार मजदूरों को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।
देश को आजादी नहीं मिली थी, अंग्रेजों के जुल्म चरम पर थे। हड़ताल करने वाले मजदूरों को बेल्ट से पीटा जाता था। इस कार्य के लिए हार्ट्न नामक पुलिस अधिकारी कुख्यात था। दाजी एम. ए. की परीक्षा दे रहे थे। इसी दौरान एक ऐसी घटना हो गई, विद्यार्थियों और मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा। दाजी के नेतृत्व में हॉर्टन के निवास (रीगल चौराहे पर गांधी प्रतिमा के पीछे) के बाहर प्रदर्शन हुआ। दूसरे दिन जब दाजी एम ए फाइनल की परीक्षा दे रहे थे तभी पुलिस उन्हें परीक्षा हाल से ही गिरफ्तार करने आ पहुंची। दाजी विचलित नहीं हुए। परीक्षा देकर बाहर आए और गिरफ्तारी दी। अदालत में स्वयं पैरवी कर रिहा हुए, यही नहीं परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए।
1957 में 31 वर्ष की आयु में वे इंदौर से मध्य प्रदेश की विधानसभा के लिए चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता गंगाराम तिवारी को पराजित किया। 1962 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और संसद में पहुंचे। उसे काल में संसद में वे सबसे कम आयु के सदस्य थे। उन्हें तीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री एवं इंदिरा गांधी के साथ संसद की कार्यवाही में भाग लेने का अवसर मिला।
नेहरू जी उनसे प्रभावित थे दाजी की योग्यता पर उन्हें भरोसा था। एक अवसर पर नेहरू जी ने विरोधी दल का होते हुए भी कामरेड दाजी को श्रीलंका में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा था।
शास्त्री जी भी दाजी का सम्मान करते थे उनकी सरकार संसद में “पब्लिक सेफ्टी बिल” लाई दाजी ने बिल का जमकर विरोध किया। बिल पास हो गया बाद में शास्त्री जी ने उन्हें अपने चेंबर में बुलाकर विरोध का कारण पूछा। तब दाजी का जवाब था कि इस कानून की आड़ में शरीफ लोगों को फंसाया जा सकता है शास्त्री जी सहमत नहीं थे।
कुछ समय पश्चात ही इंदौर में एक जन आंदोलन के सिलसिले में दाजी इसी कानून के तहत गिरफ्तार हुए। कामरेड दाजी ने जेल से शास्त्री जी को पत्र लिखा। पत्र मिलते ही शास्त्री जी ने अविलंब दाजी को जेल से रिहा करवाया। 1972 में एक बार फिर वह मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। वे सुलझे हुए राजनीतिज्ञ थे। राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी उनका सम्मान करते थे।
आजादी के बाद से ही इंदौर नगर निगम पर कांग्रेस का कब्जा था। मध्य प्रदेश के गठन पश्चात पहली बार 1958 में नगर निगम का पहला चुनाव हुआ इस चुनाव के लिए कामरेड दाजी के नेतृत्व में एक “नागरिक मोर्चे” का गठन किया गया जिसमें कतिपय अखबारों के संपादक एवं गणमान्य नागरिक शामिल थे। चुनाव में मोर्चे को जीत मिली। उस काल में नगर निगम की कार्य अवधि निश्चित नहीं थी। 1958 में बनी नगर परिषद 1965 तक बनी रही। इस अवधि में मोर्चे ने अपने 8 पार्षदों को महापौर बनवाया।
नागरिक मोर्चे ने जनता की राहत के अनेक फैसले लिए उनमें प्रमुख था साइकिल पर लगने वाला टैक्स। उस समय खान नदी के किनारे गरीब लोग घांस फूस की झोपड़ियां बनाकर रहते थे। नगर निगम उनसे टैक्स वसूलत था। कामरेड दाजी ने उस टैक्स को भी समाप्त करवा दिया।
कामरेड दाजी का निजी जीवन बेहद संघर्ष पूर्ण था। उनकी दोनों युवा संतानों का निधन हो गया था। पार्टी और मजदूर वर्ग की सेवा के क्षेत्र में उनकी पत्नी पेरिन दाजी का बड़ा योगदान था, जिन्होंने परिवार की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी थी। कामरेड दाजी का 14 मई 2009 को निधन हो गया।
#कामरेड दाजी से मांगा था सहयोग
मुझे कामरेड होमी दाजी से मिलने और उन्हें सुनने का अवसर मुझे मिला था। वर्ष 1980 में मंदसौर में केंद्रीय श्रम संगठन सीटू के नेतृत्व में स्थानीय स्टार्च फेक्ट्री में मजदूरों की विभिन्न मांगों पर 104 दिन की लंबी हड़ताल हुई थी। इस दौरान का. दाजी से सहयोग लेने के लिए हम (मेरे साथ स्थानीय सिटी ट्रेड यूनियन काउंसिल के सदस्य भी थे) इंदौर में आकर उनसे मिले थे।
दूसरा अवसर 2004 का था जब इंदौर में प्रगतिशील लेखक संघ का राज्य सम्मेलन हुआ था। बतौर प्रतिनिधि हम मंदसौर से सम्मेलन में शिरकत करने के लिए आए थे। अधिवेशन के स्वागत अध्यक्ष कामरेड् दाजी बेहद अस्वस्थ थे। मंच से उन्होंने स्वागत भाषण की चंद पंक्तियां ही पढ़ी थी। मुझे आज भी याद है अधिवेशन में पेरिन दाजी ने होमी दाजी के पसंद का गीत गाया था *अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल जमाने के लिए* ऐसी महान शख्सियत की स्मृतियों को सुर्ख सलाम।