3 मामले बंद, 20 की जांच रुकी; जब आरोपी ने अपनी पार्टी बदल ली और सत्तारूढ़ भाजपा में चले गए, तब मामले को बंद करने से लेकर इसे ठंडे बस्ते में डालने तक के काम कर प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आईटी विभाग ने अपना रास्ता बदल लिया।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में कुछ ही दिन बाकी हैं, इस बीच सत्ताधारी पार्टी के कार्यों व भ्रष्टाचार मिटाने के दावों की पोल खोलने वाली रिपोर्ट सामने आई है। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि 2014 के बाद से अब तक भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में जांच का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेता बीजेपी में शामिल हो गए, भाजपा में शामिल होने के बाद इन 25 में से 23 को राहत मिली है।
इनमें से तीन के मामले बंद किए जा चुके हैं वहीं 20 मामले में जांच रूकी हुई है या ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। यह इसके बिल्कुल विपरीत है जब आरोपी विपक्ष में होता है। वहीं इस पर अधिकारी कह रहे हैं कि उनके खिलाफ जांच चल रही है और जरूरत पड़ी तो कार्रवाई करेंगे।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि इन 25 नेताओं में 10 कांग्रेस से हैं। एनसीपी और शिवसेना से चार-चार, टीएमसी से तीन, टीडीपी से दो, एसपी से एक और वाईएसआरसीपी से एक नेता शामिल हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी जांच में पाया कि इनमें से 23 मामलों में, इन नेताओं का यह राजनीतिक कदम उनके लिए राहत में बदल गया। इस सूची में शामिल छह राजनेता तो आम चुनाव से कुछ हफ्ते पहले इसी साल भाजपा में चले गए हैं।
2022 में द इंडियन एक्सप्रेस को एक जांच से पता चला कि कैसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 2014 के बाद से जिन राजनेताओं पर कार्रवाई की उनमें से 95 प्रतिशत विपक्ष के नेता थे।
भाजपा में शामिल होने और जांच से राहत मिलने के मामले को विपक्षी दल “वॉशिंग मशीन” कहते हैं। वे कहते हैं कि यह वह तंत्र है जिसके द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपी राजनेताओं को अपनी पार्टी छोड़ने और भाजपा में शामिल होने पर कानूनी परिणामों का सामना नहीं करना पड़ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि यह नया है लेकिन इसका पैमाना अभूतपूर्व है। 2009 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के शासन के वर्षों में, द इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच में फ़ाइल नोटिंग से पता चला कि सीबीआई ने बसपा की नेता मायावती और सपा के नेता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में अपना रुख बदल दिया था, जब दोनों नेताओं के सत्तारूढ़ यूपीए से संबंध बेहतर हुए।
नवीनतम निष्कर्षों से पता चलता है कि महाराष्ट्र में 2022 और 2023 की राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान केंद्रीय कार्रवाई का एक बड़ा हिस्सा यहां केंद्रित था।
2022 में एकनाथ शिंदे गुट ने शिवसेना से अलग होकर बीजेपी के साथ नई सरकार बना ली। एक साल बाद अजित पवार का गुट एनसीपी से अलग हो गया और सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में शामिल हो गया।
रिकॉर्ड बताते हैं कि एनसीपी गुट के दो शीर्ष नेताओं, अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में चल रही जांच को बाद में बंद कर दिया गया। महाराष्ट्र के 12 प्रमुख राजनेता इन 25 नेताओं की सूची में हैं, जिनमें से ग्यारह 2022 या उसके बाद भाजपा में चले गए, जिनमें एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के चार-चार नेता शामिल हैं।
भाजपा में शामिल होने के बाद इन्हें मिली राहत
रिपोर्ट में कहा गया है कि अजीत पवार के मामले में, मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने अक्टूबर 2020 में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। यह रिपोर्ट तब दायर की गई थी जब वह पिछली एमवीए सरकार का हिस्सा थे।
राज्य में भाजपा के सत्ता में लौटने पर उनकी परेशानी फिर बढ़ी थी। लेकिन उनके एनडीए ज्वाइन करने के बाद इस फाइल को इस वर्ष मार्च में फिर से बंद कर दिया गया। ईओडब्ल्यू की कार्रवाई के आधार पर पवार के खिलाफ ईडी का मामला तब से निरर्थक हो गया है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कई ऐसे मामले भी हैं जो खुले रहते हैं लेकिन केवल नाम के लिए, जिनमें कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं होती। उदाहरण के लिए, सीबीआई 2019 से नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी जो कथित अपराध के समय एक सांसद थे के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष से मंजूरी का इंतजार कर रही है। 2020 में सुवेंदु अधिकारी टीएमसी को छोड़ कर भाजपा में चले गए थे।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के खिलाफ चल रहे मामले भी अटके हुए हैं। बिस्वा को 2014 में सारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई की पूछताछ और छापेमारी का सामना करना पड़ा था, लेकिन 2015 में उनके भाजपा में शामिल होने के बाद से उनके खिलाफ मामला आगे नहीं बढ़ा है।
अशोक चव्हाण इस साल भाजपा में शामिल हो गए, जबकि आदर्श हाउसिंग मामले में सीबीआई और ईडी की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी हुई है।
इन 25 मामलों में से केवल दो ऐसे हैं जिनमें भाजपा में शामिल होने के बाद भी संबंधित नेता को राहत नहीं मिली है। इसमें एक मामला पूर्व कांग्रेस सांसद ज्योति मिर्धा का है जबकि दूसरा मामला पूर्व टीडीपी सांसद वाईएस चौधरी का है। इन दोनों नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद भी ईडी द्वारा ढील दिए जाने का कोई सबूत अब तक नहीं मिला है।
यह रिपोर्ट कहती है कि सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग ने नवीनतम निष्कर्षों पर टिप्पणी मांगने वाले द इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब नहीं दिया।
हालांकि, सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि एजेंसी की सभी जांच “सबूतों पर आधारित” हैं। “जब भी सबूत मिलते हैं, उचित कार्रवाई की जाती है।” उन मामलों के बारे में पूछे जाने पर जहां आरोपी के पक्ष बदलने के बाद एजेंसी ने अपना रास्ता बदल लिया है, अधिकारी ने कहा कि कुछ मामलों में, विभिन्न कारणों से कार्रवाई में देरी होती है। लेकिन वे खुले हैं।
ईडी के एक अधिकारी ने कहा कि उसके मामले अन्य एजेंसियों की एफआईआर पर आधारित हैं। अगर अन्य एजेंसियां अपना मामला बंद कर देती हैं, तो ईडी के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। फिर भी, हमने ऐसे कई मामलों में आरोपपत्र दायर किए हैं। जिन मामलों में जांच चल रही है, जरूरत पड़ने पर कार्रवाई की जाएगी।
रिपोर्ट कहती है कि, द इंडियन द्वारा मामले के रिकॉर्ड के कालक्रम की जांच से पता चला है कि जब आरोपी ने अपनी पार्टी बदल ली और सत्तारूढ़ भाजपा में चले गए, तब मामले को बंद करने से लेकर इसे ठंडे बस्ते में डालने तक के काम कर प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आईटी विभाग ने अपना रास्ता बदल लिया।