अग्नि आलोक
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4 कविताएं (लड़कियों का क्या दोष है? / खिलौना समझा है / मेरे मन की गहराई / मेरा अभिमान)

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लड़कियों का क्या दोष है?

अंशु उपाध्याय
कक्षा- 9, उम्र-14
उत्तरौडा, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

अरे समाज के लोगों मत सोचो,
इसमें लड़कियों का क्या दोष है,
लड़कियों ने पहने कपड़े छोटे नहीं है,
सोच छोटी तो तुम्हारी है,
नज़रों का दोष तुम्हारा है,
वह जीव है कोई निर्जीव प्राणी नहीं,
वह मानव नहीं क्या वस्तु है?
घर से बाहर वो क्यों न जाए?
क्या चारदीवारी में सड़ कर मर जाये?
क्यों रोकते हो आगे बढ़ने से उसको?
क्यों लगाते हो उस पर रोक तुम इतना?
कह नहीं पाती वह कुछ भी,
मगर पूछती है दोष क्या है मेरा?
पर आज तक समझ ना पाई वो,
इसमें लड़कियों का दोष कहां है॥

खिलौना समझा है

भावना गड़िया
कन्यालीकोट, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

हर दिन अखबार में शोषण की खबर आती,
मगर अपराधियों को न कोई शर्म आती,
एक नन्ही सी परी के पंख काट,
दूसरे की तलाश में रहते हैं,
चारों तरफ अपना आतंक बनाए रहते हैं,
दिन दिहाड़े लड़की को छेड़ा जाता है,
कोई आवाज उठाए तो उसको रोका जाता है,
ये क्या खेल लड़कियों पे खेला जा रहा है,
उसके कपड़ों पर बातें बनाई जा रही हैं,
कुछ लोग दिखावे की मुस्कान लिए फिरते हैं,
बाहर से देवता, अंदर से शैतान बने फिरते हैं,
बस हो या ट्रेन हर कही ज़ुल्म हो रहा है,
लड़कियो को खिलौना समझ,
उसकी इज्जत से खेला जा रहा है,
लड़कियों को गंदी नज़रों से देखा जा रहा है,
गालियों में भी मां बहन का नाम लिया जा रहा है,
कही कसर नहीं छोड़ी है, जिसकी कोई गलती न हो,
उसको भी इस दुनिया वालो ने खूब कोसी है॥

मेरे मन की गहराई

रितिका
उम्र-I 17
चौरसों, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड

अगर लड़की एक बोझ है, उसका होना पाप है,
शायद उसके होने पर कोई भूचाल आया होगा?
लड़की हुई है, गांव के अखबार में छाया होगा,
पोते की चाह में दादी का सपना टूटा होगा,
लड़की हो गई इस बात का खौफ छाया होगा,
मगर इस दुख में मां ने प्यार से सर सहलाया होगा,
मेरी आजादी के लिया पापा ने एक रास्ता बनाया होगा,
लोगे की बातें सुन कर भी मुझे पढ़ाया होगा,
तू बस बढ़ती जा, अपने लिए खुद का घर बनाना,
आग की चिंगारी जैसे तुम्हें चमकना होगा,
इस भेदभाव की दुनिया में,
समानता की लड़ाई खुद लड़ना होगा,
तुझे अपनी मंज़िल तक पहुंचना होगा,
खुद के होने के दुख को जश्न में बदलना होगा,
सर उठा कर दुनिया में चलने का सहसा रखना होगा,
अपनी उड़ान के लिए तुझे खुद ही उड़ना होगा,
दुनिया की बातें भूलकर बस आगे बढ़ना होगा,
अपने साथ होने वाले हर अन्याय पर बोलना होगा,
अपने मन की इच्छाओं से तुझे जीना होगा,
छोटी सी उम्मीद के साथ आगे चलकर दिखाना होगा॥

मेरा अभिमान

अंशु कुमारी
कक्षा -11वी
गोरियारा, मुजफ्फरपुर

मेरे हाथों की चूड़ियों को हथकड़ी मत समझो,
पैरो की पायल को कोई जंजीर मत समझो,
ये तो है श्रृंगार मेरा, ये है अभिमान मेरा,
चांद तक जा चुकी हूं, मंगल पर भी जाना है,
मुझे मेरे अभिमान का अब परचम लहराना है,
वीरांगना लक्ष्मी बाई की तरह कलयुग में भी,
मैदान-ए-जंग में दुश्मनों पर तलवार लहराना है,
और सावित्री बाई फुले की तरह शिक्षा फैलाना है,
अब शिक्षा हो ऐसी जहां नारी का मतलब समझाना है
विकसित भारत में लड़कियों का भी स्थान बनाना है,
नारी शक्ति से विश्व मंच पर भारत का मान बढ़ाना है,
आगे बढ़कर कई जिम्मेदारी को अब निभाना है,
नई ऊर्जा और एक नया आकाश मिलेगा,
लड़कियों से देश को एक नई पहचान मिलेगी।।

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