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4 कविताएं (रंग बिरंगी दुनिया है ये / मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ? / जब भी कदम बढ़ाऊं मैं / घर से निकली थी वो)

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रंग बिरंगी दुनिया है ये

सुनीति
कक्षा -9
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड

रंग बिरंगी दुनिया है ये,
अलग अलग रंगों से सजा ये संसार,
उसी तरह है ये बेटियां,
रंग बिरंगी फूलों की तरह,
किसी को पसंद है सजना संवरना,
किसी को रहना है साधारण,
रंग रूप हैं अलग अलग सब के,
अलग हैं विचार सब के,
किसी को नाचना गाना पसंद है,
कोई रहती शांत है,
पहनावे सब के अलग हैं,
पहचान सब की है अलग,
सब का अपना पहनावा है,
सबके हैं अपने अपने विचार,
मगर हैं सभी बेटियां,
सब को है इन पर गर्व आज।।

मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ?

ऋतिका
बीए पार्ट – 1
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड

मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ?
क्या बताऊं कि मैं क्या हूँ?
मैं कहाँ जाकर छुप जाऊँ,
मैं रुक जाऊँ या आगे बढ़ जाऊँ,
ये समय आया है आज,
मेरे मन में डर छाया आज,
कितनी बेटियों को मारा है आज,
सब माँओ के दिल में डर छाया है आज,
मेरे पिता घबराये हैं आज,
सबके भाई अगर अच्छे हैं आज,
तो ये राक्षस कहाँ से आया है आज?
कब खत्म होगा इन राक्षसों का अत्याचार,
कब होगा बेटियों का सुरक्षित राज?
कब होगी शांति इस दुनिया में?
क्या कोई बतायेगा यहाँ आज?
क्या अंधी हो गई है ये दुनिया सारी?
बेटियों पर ज़ुल्म क्यों नहीं दिखता आज?

जब भी कदम बढ़ाऊं मैं

श्रेया जोशी
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड

जब भी कदम बढ़ाऊं मैं,
पर जाने क्यों थक जाऊं मैं?
मन विचलित हो जाता है,
कुछ भी समझ नहीं आता है,
फिर भी कोशिश तो करती हूं,
पर जगह-जगह रुक जाऊं मैं,
तिनका तिनका पिरो-पिरो कर,
जब मैं कुछ कर पाती हूं,
पर इस दुनिया के ताने सुनकर,
फिर मैं पीछे हट जाती हूं,
उम्मीद तो बहुत करती हूं,
के मंजिल तक पहुंच पाऊं मैं,
पर कैसे हार मानूं मैं,
सोच कर लड़खड़ाऊ मैं,
जब भी यह सोचती हूं,
के जिंदगी में ढ़ल जाऊं मैं,
करती कोशिशें खूब हूँ मैं,
पर इतनी बेरहम है ये दुनिया,
उठाए न फिर मुझे कोई,
अगर रास्ते में कहीं गिर जाऊं मैं।।

घर से निकली थी वो

नीतू रावल
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड

सज संवर कर घर से निकली थी वो,
गई तो थी वो अपनी मंज़िल पाने,
पर दुनिया की गंदी नज़र नहीं जानती थी,
कौन किस रूप में है नहीं पहचानती थी?
इंसान के रूप में भेड़ियों ने नोच खाया उसे,
और जीने से पहले ही मार डाला उसे,
लोग बातें बनाते रह गये,
घर से निकली ही क्यों थी वो?
ज़रूर छोटे कपड़े पहनी होगी वो,
ज़रूर चरित्र ठीक नहीं रहा उसका होगा,
वरना उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ होगा?
मगर दर्द तो उसका किसी ने देखा नहीं,
जिस्म पर थी उसके कई खरोंचे,
इस तरह सपने उसके सारे तोड़े,
बाल बिखरे, फटे थे कपड़े,
चीखती रही चिल्लाती रही,
इस तरह एक बेटी तिल तिल रोज़ मरती रही।।

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