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…कर्नाटक में 60 हजार मंदिर…फिर भी कर्नाटक में BJP हार गई

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बेंगलुरु

61,232 मंदिर, 84% हिंदू आबादी, हिजाब-हलाल पर बैन, गोहत्या पर सजा, चुनाव से पहले बजरंगबली का मुद्दा, PM मोदी के एक के बाद एक रोड शो-रैलियां, मुस्लिमों का आरक्षण खत्म, सबसे बड़ी कम्युनिटी लिंगायतों को रिजर्वेशन…फिर भी कर्नाटक में BJP हार गई। हार भी ऐसी कि 31 कैंडिडेट्स की जमानत जब्त हो गई।

चुनाव का नतीजा आए 11 दिन हो गए, पर सवाल अब भी है कि कर्नाटक में BJP इतनी बुरी तरह क्यों हारी, यहां हिंदुत्व की पॉलिटिक्स क्यों फेल हुई, इसका लोकसभा चुनाव और दक्षिण भारत की राजनीति पर क्या असर होगा। ये जानने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बात की।

BJP हिंदी पट्टी के राज्यों में पीक पर पहुंच चुकी है। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 80 में से 60, मध्यप्रदेश में 29 में से 27, राजस्थान में 25 में से 24 सीटें जीती थीं। सूत्र बताते हैं, पार्टी को डर है कि आने वाले चुनाव में यहां उसकी सीटें घट सकती हैं। इसलिए पूरा जोर दक्षिण पर है, ताकि सीटों की संख्या बढ़ाई जा सके। हालांकि कर्नाटक के नतीजों ने पार्टी की उम्मीदों को कमजोर किया है।

दक्षिण के 5 राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा की करीब 900 और लोकसभा की 129 सीटें आती हैं। BJP के पास दक्षिण में 29 सांसद हैं। 2024 में पार्टी ने यहां कम से कम 60 लोकसभा सीटें जीतने का टारगेट रखा है।

सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी कहते हैं, ‘ये टारगेट हासिल कर पाना मुश्किल है क्योंकि दक्षिण में BJP के पास स्टेट लेवल पर कोई बड़े कद वाला नेता नहीं है। अब तक कर्नाटक में येदियुरप्पा थे, लेकिन वे अब एक्टिव पॉलिटिक्स से रिटायर हो चुके हैं। केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश में BJP के पास कोई चेहरा ही नहीं है।

मंदिरों की संख्या में कर्नाटक तीसरे नंबर पर
कर्नाटक में 61,232 मंदिर हैं। ये राज्य मंदिरों की संख्या में देश में तीसरे नंबर पर है। यहां से ज्यादा मंदिर तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हैं। कर्नाटक में 84% हिंदू और 13% मुस्लिम हैं। हिंदुत्व और बजरंगबली का मुद्दा उठाकर भी BJP 224 में से 66 सीटें ही जीत सकी।

PM मोदी ने हर रोड शो में बजरंगबली के नारे लगाए। यह भी कहा कि ‘जब पोलिंग बूथ में बटन दबाओ, तो जय बजरंगबली बोल कर इन्हें (कांग्रेस को) सजा दे देना’, लेकिन कर्नाटक में इन बातों का असर नहीं हुआ।

मुस्लिमों का आरक्षण बहाल करने और बजरंग दल जैसे संगठनों पर बैन लगाने की बात कहने वाली कांग्रेस 136 सीटें जीत गई। कर्नाटक की हार से साउथ में BJP पूरी तरह साफ हो चुकी है। इसका असर दूसरे राज्यों में पार्टी की एक्टिविटी पर भी पड़ा है। तेलंगाना में जोर-शोर से चल रहे कैंपेन फिलहाल ठंडे पड़ गए हैं।

हिंदुत्व की लैबोरेटरी माने जाने वाले कोस्टल कर्नाटक में भी नुकसान
मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर और कर्नाटक के सोशल कल्चरल इश्यूज पर लिखने वाले के. फनीराज कहते हैं, ‘कोस्टल कर्नाटक को छोड़कर BJP की हिंदुत्व की राजनीति पूरे कर्नाटक में फेल हो गई। कोस्टल कर्नाटक में भी पिछली बार से तीन सीटें कम आई हैं।

कोस्टल कर्नाटक में उडुपी, उत्तर कन्नड़ और दक्षिण कन्नड़ जिले आते हैं। कांग्रेस कहती रही है कि BJP ने इस इलाके को हिंदुत्व की लैबोरेटरी बना दिया है। यहां की 19 सीटों में से 2018 में BJP ने 16 सीटें जीती थीं, इस बार 13 सीटें मिलीं। कांग्रेस 3 से 6 पर आ गई।

हिजाब बैन का विवाद कोस्टल कर्नाटक के उडुपी से ही शुरू हुआ था, जो बाद में पूरे राज्य में फैल गया। इस मूवमेंट को यशपाल सुवर्णा ने लीड किया था, वे 20% वोट मार्जिन से जीते। मुस्लिम वेंडर्स से सब्जी और फल न खरीदने का मुद्दा भी यहीं उठा था, हिजाब के विरोध में केसरिया दुपट्टे भी यहीं पहने गए थे, इसके बावजूद BJP की सीटें 2018 के मुकाबले कम हो गईं।

प्रो. फनीराज के मुताबिक, ‘विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और RSS कोस्टल कर्नाटक में ऐसा सिस्टम बनाने में कामयाब रहे हैं, जिसे हिंदू संस्कृति बताया जाता है। ब्राह्मणों के आचरण को यहां हिंदू धर्म का आचरण बना दिया गया, जिसने सभी जातियों को जोड़ने का काम किया। कोस्टल कर्नाटक में हिंदुत्व का एक कम्पोजिशन बनाने में BJP कामयाब हुई है। सभी जाति के मंदिरों को एक धर्म के प्रतीक के तौर पर स्थापित किया गया।’

BJP भी ये बात समझती है, इसलिए कोस्टल कर्नाटक में हिंदुत्व का मुद्दा पूरी ताकत से उठाया गया। नॉर्थ कर्नाटक में धर्म के साथ जाति पर चुनाव लड़ा गया। यहां हिंदू-मुस्लिम की राजनीति नहीं चल सकती, क्योंकि इस इलाके में 12वीं सदी के संत बसवेश्वर का असर आज भी है। संत बसवेश्वर ने ही लिंगायत संप्रदाय बनाया था। ये समुदाय न मूर्तिपूजा करता है, न ही हिंदू ग्रंथों को मानता है। कर्नाटक में लिंगायतों की आबादी करीब 16% है।

गांवों में अपने-अपने भगवान, इसलिए बजरंगबली मुद्दा नहीं बने
प्रो. फनीराज के मुताबिक, ‘संत बसवेश्वर जाति व्यवस्था और दूसरी कुरीतियों के खिलाफ थे। वे लिंग, जाति, सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी लोगों को बराबरी का मौका देने की बात कहते थे। मूर्ति पूजा के भी विरोधी थे। उनका असर सिर्फ नॉर्थ कर्नाटक नहीं, बल्कि पूरे कर्नाटक में है। नॉर्थ कर्नाटक में शरण और सूफी धर्म साथ-साथ चलते हैं, इसलिए वहां हिंदू मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण नहीं हो पाता।’

‘बेंगलुरु में हनुमान को मुद्दा बनाया गया, लेकिन बेंगलुरु के आसपास ही गली-गली में मंदिर हैं। वहां लोगों की पूजा-पाठ के तरीके अलग हैं। कम्युनिटी के हिसाब से भगवान तक अलग हैं। बहुत से ऐसे प्रतीक हैं, जिन्हें लोकल कम्युनिटी भगवान मानती है और उन्हें ही फॉलो करती है। ऐसे में इन लोगों को राम, कृष्ण या हनुमान के नाम से एकजुट नहीं किया जा सकता।’

‘BJP ने कन्वर्जन को मुद्दा बनाया था। करीब 4% आबादी वाली ईसाई कम्युनिटी के जरिए डर फैलाने की कोशिश की गई थी कि हिंदुओं को ईसाई धर्म में कन्वर्ट किया जा रहा है, लेकिन ग्राउंड पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा था, इसलिए आम लोगों में इस मुद्दे का कोई असर नहीं हुआ।’

‘2018 में BJP ने कर्नाटक में 104 सीटें जीती थीं। ये भी हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे पर नहीं मिली थीं। तब कांग्रेस और JD(S) के वोट बैंक में सेंधमारी हुई थी, क्योंकि सरकार के खिलाफ गुस्सा था। बीएस येदियुरप्पा के हाथ में कमान थी, जिनका लिंगायतों ने समर्थन किया था। इस बार का सिनेरियो पूरी तरह अलग था। BJP राम-हनुमान के नाम पर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही थी, इसलिए फेल हो गई।’

हिंदू-मुस्लिम कभी नहीं चला, BJP पहली बार सेक्युलर नेताओं की वजह से जीती थी…
अशोक चंदारगी कहते हैं, ‘जनता परिवार से टूटकर आए नेताओं ने कर्नाटक में BJP को खड़ा किया है। जनता परिवार के आधे से ज्यादा नेता BJP में आए थे। इनमें पिछले CM बसवराज बोम्मई भी हैं। इन नेताओं के आने के पहले BJP को ब्राह्मणों की पार्टी माना जाता था।’

‘2004 में रामकृष्ण हेगड़े के निधन के बाद येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता बने। उनके और जनता पार्टी से आए नेताओं के कॉम्बिनेशन की वजह से ही BJP 2008 में 110 सीटें जीत गई थी।’

‘कर्नाटक में कम्युनल लाइन पर इलेक्शन कभी नहीं जीते गए हैं। बजरंग दल पर बैन के मुद्दे का असर 48 घंटे भी नहीं टिक पाया। कोस्टल कर्नाटक में BJP के हिंदुत्व के प्रयोग जरूर कामयाब रहे हैं, लेकिन बाकी कर्नाटक सहित पूरे साउथ इंडिया की बात करें, तो इसका असर नहीं दिखता।’

साउथ में पाकिस्तान के नाम पर चुनाव नहीं जीत सकते…
अशोक चंदारगी कहते हैं, ‘साउथ के हर राज्य का अपना ट्रेडिशन, देवी-देवता और धर्म हैं। आप राष्ट्रीयता, बजरंगबली और पाकिस्तान के नाम पर चुनाव नहीं जीत सकते। यहां बेरोजगारी, महंगाई और डेवलपमेंट की पॉलिटिक्स ज्यादा चलती है। इसके साथ में जो कास्ट सिस्टम को मैनेज कर लेता है, वो सत्ता में आ जाता है।’

‘कर्नाटक के नतीजों का असर पूरे साउथ इंडिया में होना तय है। विपक्षी पार्टियां अगर एक हो जाती हैं, तो फिर एंटी BJP वोट बंट नहीं सकेंगे। अभी अपोजिशन के वोट बंटते हैं, तो इसका फायदा BJP को मिलता है।’

‘1977 में अपोजिशन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ा था। उनके वोट बंटे नहीं और जनता पार्टी की सरकार बनी। इस बार साउथ इंडिया में यही कोशिश की जा रही है कि BJP के खिलाफ एक ही कैंडिडेट उतारा जाए। यदि ऐसा हो पाता है तो BJP को नुकसान होना तय है।’

JD(S) के वोट कांग्रेस में गए, हम नई स्ट्रैटजी के साथ मैदान में आएंगे: BJP प्रवक्ता
BJP के प्रवक्ता गणेश कर्णिक के मुताबिक, ‘2018 के हिसाब से देखें तो इस बार JD(S) को करीब 15 लाख वोट कम मिले हैं। विधानसभा सीट के हिसाब से एनालिसिस करने पर पता चल रहा है कि कांग्रेस और JD(S) ने साथ मिलकर स्ट्रैटजी के तहत चुनाव लड़ा। इससे BJP को नुकसान हुआ।’

गणेश कर्णिक कहते हैं, ‘इसके अलावा भी BJP के कई फेल्योर रहे, जैसे 75 कैंडिडेट्स बदलना, पूरा प्रचार PM मोदी-अमित शाह और जेपी नड्डा तक ही सीमित हो जाना और लिंगायतों को न साध पाना। कांग्रेस ने हम पर करप्शन के आरोप लगाए, वे आखिर तक चिपके रहे।’

‘लक्ष्मण सावदी और जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं को निकालने के कारण लिंगायतों में गलत मैसेज गया। इसलिए लोकसभा चुनाव में BJP नई स्ट्रैटजी से साउथ के राज्यों में चुनाव लड़ेगी। वैसे भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर होता है। इसलिए हमें उम्मीद है कि लोकसभा में हम जोरदार वापसी करेंगे।’

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