~ प्रखर अरोड़ा
गरूण पुराण मे वर्णित जिस नर्क की कल्पना हम करते है ऐसा नरक किसी अन्य लोक मे नही है. यह आपकी पहुँच मे ही है. बस जरा सा अपने ही आस पास ध्यान देने की आवश्यकता है.
नरक मे अनेको प्रकार के कष्ट और भोगो का वर्णन है. जैसे आरी से काटा जायेगा. मुहँ सूई की तरह होगा. सर को धड़ से अलग कर दिया जायेगा. खौलते तेल मे डाल दिया जायेगा. पीप मवाद की नदी पार करना आदि.
हमारा शरीर हमें छोड़कर यहीं पंचतत्व मे मिल जाता है तो किस शरीर को ये प्रताडना मिलेगी? जब शरीर है ही नही तो सजा किसे मिलेगी? सोचिये.
वस्तुत: गरूण पुराण मे वर्णित नरक सत्य है पर इसे जानने के लिये पूरा नजरिया ही बदलना होगा.
नरक भी कर्म पर ही आधारित है. वस्तुत; जीव मृत्यु के उपरांत कर्मो के अनुसार ही नयी योनियों मे प्रवेश या जन्म पाता है. इसे प्रारब्ध कहते है.
मुख का सूई की तरह होना ,ताकि कुछ भोजन न कर सकेगे. यदि हम पृथ्वी के ग्यात समस्त जीवन को देखे तो पुराण मे वर्णित सूई के मुख वाले अनगिनत जीवन मिलेंगे. जैसे मधुमक्खी, मक्खी,मच्छर ,जुआँ,कीट पतंगे. पैरालाइज इंसान का मुंह देखिए.
इनके मुख कुछ भी खाने मे सक्षम नही,पर इनका जीवन है. इस जीवन को स्वर्ग नही कह सकते। इन कीट पतंग,कीड़े मकोड़ो कि संख्या मनुष्य से बहुत ही ज्यादा है,अनगिनत योनियाँ हैं जो नर्क को भोग रही है।
अब आप पृथ्वी के वृक्ष को देखे. अगणित संख्या है पर इनको स्वयं की मृत्यु नही मिलती. इनकी मृत्यु आरियों के शरीर पर चलने से ही होगी. विरला ही बृच्छ स्वयं मरता है,अन्यथा सब मारे ही जाते है. मनुष्य भी काटे जा रहे हैं.
वृक्षजीवित होते है पर उनपर आरियों के चलने का कष्ट भोगना ही है जो नर्क का ही कष्ट है. वृक्ष चल फिर भी नही पाता और आजीवन लोगो को फल और छाया ही प्रदान कर अपना प्रायश्चित करता है.
यदि हम कुछ जीवो को देखे तो पायेगे कि बकरे ,मुर्गे, भैंस, गाय आदि जैसे जीवो की गरदन ही कटती है. इनकी की गरदन काटी ही जाती है. ये खिला पिलाकर काटने योग्य ही बनाये जाते है. इनका भक्षण भी निश्चित है. शायद ही विरला बच पाता है. यह जीवन ही इनका नरक भोग है ,स्वर्ग नही. मनुष्य भी काटकर खाए जाते हैं.
विश्व मे शाकाहारी बहुत कम है. ऐसे देश जहॉ मॉसाहार है : जीवित जीव,मछली केकड़ा, जीवो के अण्डे आदि सीधे जीवित ही फ्राइ किये जा रहे है. यही खौलते तेल का नर्क भोग है.
किसी के रोग व्याधि से इंसान के अंग सड़ जाते है और उन अंगो मे अनगिनत जर्म,विषाणु , कीड़े पैदा होकर जीवन को कष्ट देते है. यही पीप मवाद की नदी है जो पुराण मे वर्णित है।
स्वर्ग ,नरक कोई स्थान नही कर्मो के योनियो की जीवन यात्रा ही है. आत्मा अपने कर्मो के हिसाब से ही अगले जन्म की यात्रा करती है। वही पर प्रारब्ध का भोग ही स्वर्ग अथवा नर्क का भोग है ,जो सर्वत्र हो रहा है अनगिनत स्वरूपों मे.