अरुण नारायण की रपट
बिहार के प्रसिद्ध जन-गीतकार नचिकेता की स्मृति में एक शोकसभा का आयोजन किया गया, जिसे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामवचन राय सहित अनेक वक्ताओं ने संबोधित किया।
“नचिकेता से हमारा परिचय सातवें दशक में हुआ। वह कॉफी हाउस का जमाना था और रेणु जी की मकबूलियत थी। वहां वह अक्सर कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह, राणा प्रताप, जितेंद्र राठौड़, रामनिहाल गुंजन के साथ दूसरी टेबुल पर बैठते थे। उनका मानसिक प्रशिक्षण वामपंथी परिवेश में हुआ था। वह गीत लिखते थे, लेकिन गीतकारों की धज के बारे में मेरी जो धारणा बनी हुई थी, नचिकेता सर्वथा उससे भिन्न नजर आते थे। कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व हमने 67-68 के दौर में धूमिल का भी देखा था। इन दोनों जन-गीतकारों ने इस मिथ को तोड़ा कि गीतकार एकांगी ही होते हैं। इनमें एक गंवई जोश था और आधुनिकताबोध से भरे हुए थे।”
उपरोक्त बातें बिहार विधान परिषद के सदस्य व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामवचन राय ने हिंदी के प्रसिद्ध जन-गीतकार नचिकेता की स्मृति में बीते 27 दिसंबर, 2023 को आयोजित शोक सभा में कही।
बताते चलें कि नचिकेता का निधन बीते 19 दिसंबर, 2023 को हो गया। उनकी स्मृति में कथांतर द्वारा बिहार की राजधानी पटना के गांधी संग्रहालय में आयोजित शोकसभा में ‘नचिकेता स्मृति आख्यान’ नामक पुस्तिका का भी लोकार्पण किया गया। नचिकेता की तस्वीर पर माल्यार्पण के तत्पश्चात शोकसभा की कार्यवाही प्रारंभ हुई। प्रो. रामचवन राय ने आगे कहा कि आज का दौर विस्मृति का है। विस्मृति के इस दौर में हम रिश्तों, मूल्यों और अपने लोगों को भी भूल रहे हैं। आप सभी स्मृतिहीनता के इस दौर में नचिकेता जी को याद कर रहे हैं, जिनका जीवन सामाजिक सरोकारों और जनसंघर्षों के लिए समर्पित रहा। उन्होंने नचिकेता की एक कविता ‘दुनिया नष्ट नहीं होती’ का पाठ किया और उसकी महता पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने कहा कि इस दुनिया को नष्ट करने की बहुत सारी तैयारियां हो रही हैं, ऐसे में एक कवि की आस्था तमाम खतरों के बावजूद इस दुनिया को बचाए रखने की है। यह बहुत बड़ा संदेश है और संकल्प कि दुनिया नष्ट नहीं होगी। वह शब्दों का शिल्पी होता है। नचिकेता ऐसे कवि थे, जिन्होंने नवगीत की पारंपरिक भाषा को भी तोड़ा और उसे आम आदमी के अनुकूल बनाया।
वरिष्ठ लेखक राणा प्रताप ने कहा कि उनपर हमने एक पुस्तिका निकाली है, कई ने लिखा है और कई छूट भी गये हैं। आगे उनपर काम किया जाना चाहिए। नचिकेता की स्मृति साझा करते हुए राणा प्रताप ने बतलाया कि उनका जब पटना तबादला हुआ तो मुझे महेश्वर की मुंगेर से चिट्ठी आई। नचिकेता नवगीतकार हैं। पटना जा रहे हैं, सहायता करना। महेश्वर से ‘बातचीत’ पत्रिका के जरिए पहले ही संपर्क हो चुका था। यह पत्रिका भरत प्रसाद और महेश्वर ने मुंगेर से निकाली थी। तीन-चार अंकों के बाद उसका प्रकाशन बंद हो गया। पटना में नचिकेता से हमारी निकटता बढ़ी और यहीं उन्हें कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह जैसे शिक्षक मिले। एक योग्य शिष्य के रूप में नचिकेता ने उनसे बहुत कुछ सीखा। जब उनका तबादला आरा हुआ तो वहां चंद्रभूषण तिवारी से उनकी निकटता बढ़ी। उनसे भी योग्य शिष्य की भांति उन्होंने बहुत कुछ सीखा। नचिकेता गीत विधा के बड़े विशेषज्ञ थे। उन्होंने इस विधा में जिस तरह का काम किया कोई प्रोफेसर भी नहीं कर पाये। उनकी तबीयत गड़बड़ चल रही थी, लेकिन फिर भी वे संयम से थे और ठीक थे। उनकी मृत्यु बाथरूम में गिरने के कारण हो गई। वह बाथरूम में नहाने गए थे और वहीं पैर फिसल जाने के कारण गिर गए थे।
प्रसिद्ध शायर प्रेमकिरण ने कहा कि नचिकेता जी से मेरी पहली मुलाकात ‘नवभारत टाइम्स’ के कार्यालय में हुई थी। मिलते ही उन्होंने कहा था कि आपकी शायरी पढ़कर मैं समझता था कि आप कोई बुजुर्ग शायर होंगे। बाद में उन्होंने मेरी किताबों पर समीक्षा भी लिखी। उनसे हमारा वैचारिक मतभेद गजल को लेकर रहा। बाद में उन्होंने गजल लिखना बंद कर दिया। प्रेमकिरण ने माना कि गजल और नवगीत की बहुत गहरी आलोचकीय समझ उन्हें थी। उनका यूं चला जाना हमारे लिए एक अच्छे मार्गदर्शक का चला जाना है।
कवि गीतकार आदिमत्य कमल ने नचिकेता की स्मृति में एक गीत ‘घोर अंधियार में/तम के संसार में टिमटिमाते भले कुछ दिये हैं जले/ जो बचे हैं उन्हें तो बचा लीजिए’ का सस्वर पाठ किया और उनसे जुड़ी कुछ स्मृतियां साझा कीं। उन्होंने कहा कि जब 1976-77 में मैं पटना साइंस कॉलेज में आया था तब से नचिकेता जी से हमारा परिचय रहा। वह नवगीत का दौर था और उस दौर में रमेश रंजक और नचिकेता जनगीत का बीज बोनेवाले प्रमुख लोगों में थे।
वहीं फतुहा से आए लघु कथाकार रामयतन यादव ने भी इस मौके पर नचिकेता से जुड़े कई आत्मीय संस्मरण साझा किया। उन्होंने कहा कि नचिकेता जी का समग्र मूल्यांकन अभी शेष है। उन्होंने कहा कि एक समय में पटना के महेंद्रू मुहल्ले में सतीश राज पुष्करणा के आवास पर बैठक होती थी। वह साहित्य का बहुत ही जीवंत अड्डा था। हमारी नचिकेता जी से मुलाकात वहीं हुई। वहां से बहुत सारी किताबें निकली। वहीं मैंने जाना कि व्यक्ति कुछ नहीं होता, वह जो कुछ भी होता है अपने विचार के कारण होता है। उन्होंने कहा कि नचिकेता जी व्यक्ति नहीं संस्था थे। उनके संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘गीत वसुधा’ में उन्होंने पूरे देश के 200 गीतकारों के प्रतिनिधि गीतों को बहुत ही उम्दा ढंग से सुविचारित भूमिका के साथ प्रकाशित कराया। हमने उनका एक इंटरव्यू किया। उसमें उन्होंने गीत विधा के बारे में जो विचार दिए हैं, उसकी सूक्ष्मता और गहराई को जानकर आप दंग रह जाएंगे। रामयतन ने कहा कि नचिकेता जी में नवगीत, जनगीत और लोकगीत की बहुत गहरी समझ थी, इन माध्यमों में जितनी गहनता उनके पास थी शायद ही किसी व्यक्ति के पास हो। किसी किताब की समीक्षा वह बहुत ईमानदारी से करते थे। उनकी दृष्टि विश्लेषणात्मक ढंग से चीजों को समझने की थी।
माले के पूर्व विधायक एन.के. नंदा ने कहा कि जब मैं भूमिगत था तो महेश्वर, गोरख पांडे, बिजेंद्र अनिल और नचिकेता के गीत गाए जाते थे। तब के समाज में गरीबों के बीच इस तरह के गीत गाए जाने की संस्कृति थी। नंदा ने कहा कि संस्कृति जनता के संघर्षों के साथ चलती है। उन्होंने कहा कि दो तरह की संस्कृतियां रही हैं। एक सत्ता की संस्कृति और दूसरी जनता के संघर्षों के साथ खड़ा रहनेवाली संस्कृति। जो लोग जनता के संघर्षों के साथ होते हैं, उन्हें स्वर देते हैं, वही जिंदा रहते हैं। नचिकेता जी जनता के साथ ख़ड़े रहनेवाले लेखक थे, उनका जाना सचमुच हम सब के लिए गहरा आघात है।
वहीं पूर्व राजभाषा अधिकारी एवं ‘कलरव’ पत्रिका के पूर्व संपादक चंद्रदेव सिंह ने भी इस मौके पर अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि ‘कलरव’ पत्रिका के लिए नचिकेता जी का रचनात्मक सहयोग हमें हमेशा मिलता रहा। वे ऐसे लेखक थे जो अपने साथी रचनाकारों की रचनाएं भी हमेशा उपलब्ध करवाते थे। ‘कलरव’ के लिए जयकिशुन सिंह जय की रचनाएं भी हमें उनके ही माध्यम से मिली। उनका व्यक्तित्व प्रेरणादायी था। गीत के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी। नवगीत की महत्ता को स्थापित करने में उनका अमूल्य योगदान रहा। नवगीतकारों और जनगीतकारों को विषय वस्तु के आधार पर उन्होंने तीन वर्गों में वर्गीकरण किया। इसमें श्रम और संघर्ष को महत्ता दी। उन्होंने आक्रोश नहीं, क्रांति को अपनाया। समस्या के मूल में जो कारण हैं, उन्होंने उसको अपनाया। उनकी पुस्तक जनवादी गीत का ‘इतिवृत्त’ और समकालीन गीत का ‘मूल्यबोध’ सरीखी पुस्तक समकालीन गीत आंदोलन में मील का पत्थर है। चंद्रदेव ने माना कि नवगीत विधा तबतक अधूरी मानी जाएगी जबतक नचिकेता वहां न हों।
इप्टा के तनवीर अख्तर ने कहा कि इप्टा के ‘ढाई आखर प्रेम’ कार्यक्रम के लिए हमलोगों ने चार सौ पन्ने के रिसोर्स मैटर जमा कर लिये थे, जिसमें नाटकों, जनगीतों और बहुत सारी चीजों पर सामग्री इकट्ठा हो गई थी। किसानों से संबंधित सामग्री की खोज होने लगी तो हम इस सिलसिल में नचिकेता जी से मिले और इसमें हमें उनसे काफी सहायता मिली। इप्टा ने उनके गीत ‘हम किसान हैं’ की प्रस्तुति भी की। उन्होंने कहा कि आज नचिकेता भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत हमारे हृदय में गूंजते रहेंगे।
इस शोकसभा में परमानंद, जितेंद्र मोहन, संजय राय, महेंद्र सुमन, अरविंद कुमार, संतोष यादव, मनीष रंजन, सचिन, अनंत, अशोक गुप्त, अनंत शाश्वत, श्वेता सागर, संतोष और जयप्रकाश आदि लेखक संस्कृतिकर्मी भी शामिल रहे।