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पेरेंटिंग : सक्सेसफुल जीनियस संतान को भी होती है संभालने की जरुरत

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     शिफ़ा ख़ान, कानपुर

  आजकल बच्चे पेरेंट्स से अटैचमेंट रखना बंद कर देते हैं, सक्षम होते ही. इसके लिए आधुनिकतापरक भौतिकवादी सोसायटी, संगति, सेल्फिशनेश के अलावा काफी हद तक मातापिता की गैर-संस्कारिक परवरिश भी जिम्मेदार बनती है.

   बेहद ग़रीबी में रहते हुए, सफलता की ओर बड़े एक हायर एजुकेटेड पिताश्री कॉउन्सिलिंग के लिए हमारे मिशन के मनोचकित्सक डॉ. मानवश्री के पास आये. उनसे उनकी लाइफ हिस्ट्री क़ो जाना गया. अभी एक MNC में वे लगभग एक लाख शेलरी पर कार्यरत थे. एक बेटे क़ो इंजिनियरिंग करा दिए. वह सफलता के शिखर पर है. दूसरा बेटा भी इंजिनियरिंग कर रहा है.

    इस बीच नौकरी-रोजगारखाऊ मोदीयुग ने उनकी नौकरी भी खा ली. कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऑप्सन नहीं मिल रहा है.

   कॉल पर माँ से बात करते वक्त बड़े बेटे ने पूछा : पापा कहीं काम पे लगे क्या? माँ ने कहा, अभी नहीं. बातचीत चल रही है. जबाब में उसने कहा : बात ही तो कर रहे हैं इतने दिनों से.

   पत्नि के पास बैठे उन्होंने मोबाइल पर यह कमेंट्स सुन लिया. काफी आघात लगा. यह समस्या लेकर वे आये थे.

     अब इसमें बेटे क़ो बुलवाकर पंचायत करना तो समाधान था नहीं. उसे कॉल करना भी समस्या क़ो और बढ़ा देता. इसकी कोई दवा भी नहीं बनी.

   डॉ. मानवश्री ने एक लेटर लिखा उनके लिए. उस पिता की ओर से उसके पुत्र के लिए लेटर. इसके बाद वे उनसे बोले, इसे अपने व्हाट्सप्प या ईमेल से बेटे क़ो भेजना. कल आकर मुझे मिलना.

     वह लेटर पढ़ने के बाद बेटे क़ो सब समझ आ गया. उसने सॉरी बोला और सहयोगी रुख भी अख्तियार कर लिया.

    आप पढ़िए. आप सीख सकेंगे की संतान क़ो कैसे मोटीवेट किया जा सकता है.

   ———————————–

      सामान्य पिता की महान संतानजी, होली की शुभकामनायें.

    तुमने अपनी मां से बोला :

 “बात ही तो चल रही है इतने दिनों से!” मैने सुना मोबाइल पर तुम्हारी आवाज.

   इसमें तुम्हारी चिंता, निराशा दिख रही है, जो अच्छी संतान के लिए नेचुरल है. फिर भी : नॉर्मलनेश और मेच्योरिटी डेवलप करो बेटे!.

   तुम बस ख़ुद को मैनेज करो, पॉसिबल हो तो थोड़ा अपने अनुज को भी. बाकी हमारी टेंशन हरगिज़ नहीं लो, बिल्कुल भी नहीं. लगभग साल भर होने को हैं, एक लाख मंथली आने बंद हुए : लेकिन हम निराश नहीं हुए हैं. ना कभी निराश होकर टूटेंगे. कभी नहीं, मतलब कभी भी नहीं.

हम तो जिंदगी भर स्ट्रगल ही किए हैं, वो भी बिना रोये, बल्कि मस्ती से.

       कितना समझाता हूँ, नहीं समझते तुम. “सबकुछ” इंसान के हाथ में नहीं होता. कोशिश बंद करना हारना होता है, ऐसी कायरता नहीं करनी चाहिए. बाकी टेंश होना, किस्मत को कोशना, चिड़चिड़ा होना गलत है. यह लाइफ~जर्नी को डेमेज करता है.

   थोड़ा रुको, सोचकर देखो :

     जिस बच्चे का फेमली ऐटमोस्फीयर ऐसा हो की उसे चौथी क्लास की पढ़ाई छुड़ाकर मुंबई भेज दिया जाए भैस के तबैले में काम करने.  मतलब गोबर की सफाई करने. आगे उस बच्चे की फेमली कैसी होगी? उसका फ्यूचर कैसा होगा?

    किसी भी बच्चे को मेरी जगह रखकर कल्पना करो. फिर देखो :  हार नहीं मानकर मैंने कितना स्ट्रगल किया होगा? कैसे किया होगा? और आज का मेरा मेंटल + फेमली का लेबल कैसा है?

   अगर मुझे तुम्हारी मम्मी जैसी लड़की नहीं मिलती तो? मेरा फ्यूचर कैसा होता और मेरी संतान किस मेंटलिटी की होती?

    कितनी लड़कियां होती हैं ऐसी? ऐसी मुझे ही क्यों मिली? गॉड ने यह कनेक्शन क्यों बनाया? और तो और अब ख़ुद तुमको भी ऐसी ही लड़की क्यों मिली? बचा तुम्हारा छोटा भाई, उसको भी गॉड निराश नहीं करेगा. क्या यह “गॉड ऑफ़ मिस्ट्री” नहीं है?

      मेरी फेमली (हम दोनों और तुम दोनों+तुम्हारी प्रेमिका) का जो मेंटल और थिंकिंग लेबल है, हम सब में जो यूनिक-नेश, डिवाइन-नेश है : वो आज की दुनिया में कितनों का है? शायद 1% का.

 क्यों? क्या यह गॉड गिफ्ट नहीं है? क्या यह प्रॉउड फील करने लायक नहीं है?

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