~ आरती शर्मा
पहली स्त्री है
जिसके दूध के दाँत नहीं टूटे
उसे चॉकलेट पसन्द है
उसका मुँह दबोचा
गया एकांत में
और कहा गया : चुप रहना
समय आने पर
उसे दफ़ना दिया जाएगा
या जला दिया जाएगा
उसी एकांत में.
दूसरी स्त्री क़ैद है
रिश्तों की चारदीवारी में
उसकी जाँघें खरोंचकर
टाँगों के बीच भरी गईं
सुहाग की निशानियाँ
उसके गालों को खींचकर
चिपका दिया गया
मर्यादा की दीवारों से
ताकि बनी रहे
उसके होठों पर
चिरकाल तक एक
स्थिर मुस्कान.
तीसरी स्त्री वो है जो
उठा ली गयी राह चलते
उसे बांध दिया गया
जकड़कर
मजबूर किया गया उसे
साँस लेने को
जब तक उसके शरीर से
माँस का एक-एक क़तरा
न नोच लिया गया हो.
चौथी स्त्री जकड़ी हुई है
सोने की ज़ंजीरों में
उसके कमरे में खुलती है
एक खिड़की
ककहरा सीखते ही
उसे ब्याह दिया गया
ताकि बचा सके उसे
बलात्कार से
और रह सके ऊँची
समाज़ की नाक.
पाँचवी स्त्री लेटी है
एक अंधेरे कमरे में,
लगभग सत्तर लोग
एक के बाद एक
गुज़रते हैं उसके ऊपर से
रेलगाड़ी की तरह,
उसके कानों में पड़ती हैं
रात भर
दरवाज़े के खुलने और
बन्द होने की आवाज़ें.
ये पाँचों स्त्रियाँ
जो हैं यातनाओं की शिकार
इनका दोष उभरा हुआ है
इनकी टाँगों के बीच
और उनके माथे पर
गुदी हुई हैं
मानवीय सभ्यताएँ,
फटे हुए चिथड़े,
भोर में कुत्तों का
आपस में लड़ना
झाड़ियों या
नालों में पड़ी हुई
अख़बार की
अधनंगी ख़बरें
ऑपरेशन थिएटर के
फ़र्श पर बिखरा खून
और पेट्रोल से जले हुए शव.
वो कौन है
जिसने कहा था
स्त्री के टाँगों के बीच
जीवन का द्वार खुलता है?
वो कौन है
जिसने देखा ही नहीं
दरिंदो की टाँगों के बीच
भी कुछ लटकता है?
(चेतना विकास मिशन).