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शहीदों के क्रांति के सपनों से ही हो सकता है भारत की जनता का कल्याण

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 मुनेश त्यागी,

    आजकल क्रांति यानी इंकलाब को लेकर जनता के बीच बहुत सारी भ्रांतियां मौजूद हैं। कुछ लोग मारने पीटने, घर जलाने, आग लगाने, रेल रोकने, रेल में आग लगाने, बस जलाने, आपसी लड़ाई झगड़े और मारपीट को क्रांति मानने लगे हैं। मगर यह क्रांति नहीं है। हमारे शहीदों के विचारों में क्रांति के क्या अर्थ और विचार थे? वे क्रांति यानी इंकलाब से क्या मायने लगाते थे? उनके लिए क्रांति का क्या अर्थ था? इसे जानना बहुत जरूरी है और रोचक भी।

      भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांति यानि इंकलाब के विषय में हमारे शहीदों द्वारा बहुत कुछ कहा गया है और बहुत कुछ लिखा गया। हिंदुस्तानी समाजवादी गणतंत्र संघ यानी एचएसआरए के अनेक सदस्यों ने विभिन्न तरह से क्रांति शब्द का इस्तेमाल किया है, मगर भगत सिंह और उनके साथियों ने अपने विभिन्न दस्तावेजों में क्रांति को वैज्ञानिकता प्रदान करने की कोशिश की है। उनके लिए इंकलाब जिंदाबाद क्या था? क्रांति यानी इंकलाब  के क्या मायने थे? क्रांति से उनकी क्या मुराद थी? आइए, उन्हीं के शब्दों में जानें कि क्रांति यानी इंकलाब से उनका क्या मकसद था, क्या मतलब था?

       18 दिसंबर 1928 को लाहौर में “हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना” के नाम से बांटे गए पर्चे में क्रांति के बारे में कहा गया था,”हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रांति से है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अंत कर देगी।”

      22 दिसंबर 1929 को मॉडर्न रिव्यू के संपादक के नाम अपने पत्र में शहीदे आजम भगत सिंह लिखते हैं,,, “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे को सब लोगों तक पहुंचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है। इस नारे की रचना हम लोगों ने नहीं की है। यही नारा रूस के क्रांतिकारी आंदोलन में प्रयोग किया गया है। प्रसिद्ध समाजवादी लेखक अपटन सिनक्लेयर ने अपने उपन्यासों “बोस्टन” और “आइल”में यही नारा अपने क्रांतिकारी पात्रों के मुख से प्रयोग कराया है।”

    भारत के क्रांतिकारी इतिहास में “इंकलाब जिंदाबाद” और संपूर्ण आजादी के नारे का निर्माण मौलाना हसरत मोहनी ने 1921 में किया था। हालांकि इससे पहले भी इंकलाब का नारा फ्रांसीसी क्रांति और रूसी क्रांति में उठाया जा चुका था, लगाया जा चुका था, मगर भारत में इस नारे का इस्तेमाल एच एस आर ए यानी हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने किया था और बाद में भगत सिंह और उसके साथियों ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे को अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ भारत को आजादी दिलाने और अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए प्रचारित प्रसारित किया और उसे किसानों, मजदूरों, नौजवानों, छात्रों का आम नारा बना दिया और आज भी भारत में यह नारा संघर्षशील जनता का सबसे बुलंद नारा बना हुआ है।

      8 अप्रैल 1929 को असेंबली हॉल में फेंके गए पर्चे में लिखा गया था,,,,” क्रांति द्वारा सबको समानता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ रक्तपात  जरूरी है।”

       6 जून 1929 को दिल्ली के सेशन जज लियोनाई मिडिल्टन की अदालत में दिए गए ऐतिहासिक बयान में क्रांति के बारे में भगत सिंह ने बयान दिया था,,,,”क्रांति के लिए खूनी लडाईयां अनिवार्य नहीं हैं, वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है, क्रांति से हमारा अभिप्राय है,, अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन।”

     इसी में वे आगे कहते हैं,,, “देश को एक ऐसे आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है और जो लोग इस बात को महसूस करते हैं, उनका कर्तव्य है कि वे साम्यवादी सिद्धांतों के आधार पर समाज का पुनर्निर्माण करें ,,,,,क्रांति से हमारा मतलब एक ऐसी समाज व्यवस्था की स्थापना से है, जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्य सर्वमान्य  होगा।”

      भूख हड़ताल के दौरान सुखदेव को लिखे पत्र में भगत सिंह लिखते हैं,,,,,”क्रांति तो केवल सतत कार्य करने से, प्यत्नों से, कष्ट सहन करने एवं बलिदानों से  ही उत्पन्न की जा सकती है और की जाएगी और “क्रांति की तलवार विचारों की शान पर ही तेज होती है।”

       19 अक्टूबर 1929 को पंजाब छात्र संघ को जेल से भेजे अपने एक पत्र में भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त नौजवानों का आह्वान करते हैं,,,,,”नौजवानों को क्रांति का संदेश देश के कोने कोने में पहुंचाना है। फैक्ट्री, कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्ती और गांव की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में क्रांति की अलख जगानी है जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असंभव हो जाएगा।”

       हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के घोषणापत्र में भगवती चरण वोहरा क्रांति के बारे में लिखते हैं,,,,”क्रांति एक ऐसा करिश्मा है जिसे प्रकृति स्नेह करती है और जिसके बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती,,,,,, क्रांति ईश्वर विरोधी तो हो सकती है, लेकिन मनुष्य विरोधी नहीं।

      इसी घोषणा पत्र में वे आगे कहते हैं,,,,,क्रांति एक नियम है, क्रांति एक आदेश है ,और क्रांति एक सत्य है।” क्रांति के बिना सुव्यवस्था, कानूनपरस्ती और प्यार स्थापित नहीं किया जा सकता।”

      26 जनवरी 1930 को बम का दर्शन में भगत सिंह लिखते हैं,,,, क्रांति पूंजीवाद, वर्गवाद और कुछ लोगों को विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अंत कर देगी। यह राष्ट्र को अपने पैरों पर खड़ा करेगी। उससे  नए राष्ट्र और नये समाज का जन्म होगा। क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूरों तथा किसानों का राज्य  कायम कर उन सब अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी जो देश की  राजनीतिक शक्ति को हथियाये बैठे हैं और अंत में क्रांति से ही देश को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी।”

       ड्रीमलैंड की भूमिका में भगत सिंह लिखते हैं ,,,,”हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि क्रांति का मतलब मात्र उथल-पुथल या खूनी संघर्ष नहीं है जब हम क्रांति की बात करते हैं तो उसमें मौजूदा हालत को अर्थात सरकार को पूरी तरह ध्वंश करने के बाद समाज के व्यवस्थित पुनर्गठन के कार्यक्रम की बात निहित है। “

        अपनी फांसी से कुछ दिन पहले  लिखे गए अपने बहुत ही महत्वपूर्ण लेख,,,,2 फरवरी 1931 को “क्रांतिकारी कार्यक्रम का मसौदा”, में क्रांति के विषय में भगत सिंह की विलक्षणता देखिए,,,,, “इंकलाब का अर्थ मौजूदा सामाजिक ढांचे में पूर्ण परिवर्तन और समाजवाद की स्थापना है। इसके लिए हमारा पहला कदम ताकत हासिल करना है। वास्तव में राज्य यानि सरकारी मशीनरी, शासक वर्ग के हाथों में अपने हितों की रक्षा करने और उन्हें आगे बढ़ाने का यंत्र ही है। हम इस यंत्र को छीनकर अपने आदर्शों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। हमारा आदर्श है,,,,, नए ढंग की सामाजिक रचना यानी मार्क्सवादी ढंग से समाज की रचना।”

      इसी लेख में वे आगे कहते हैं,,,,”हम समाजवादी क्रांति चाहते हैं, इसके लिए बुनियादी जरूरत राजनीतिक क्रांति की है। राजनीतिक क्रांति का अर्थ  यानी राजनीतिक सत्ता और ताकत का, अंग्रेजी हाथों से, भारतीय हाथों में आना है और वह भी उन भारतीयों के हाथों में जिनका अंतिम लक्ष्य हमारे लक्ष्य से मिलता हो।””क्रांति उनके हित में है और उनकी अपनी क्रांति, सर्वहारा, श्रमिक वर्ग की क्रांति, सर्वहारा के लिए।”

     वे आगे कहते हैं,,,,,,,”क्रांति करना बहुत कठिन काम है, यह एक आदमी की ताकत के बस की बात नहीं है और ना ही किसी निश्चित तारीख को आ सकती है। यह तो विशेष सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों से पैदा होती है और जनता को उसके लिए तैयार करना होता है।”

    अपने इसी लेख में वे आगे कहते हैं,,,,”पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार करने के लिए, अध्ययन केंद्र खोलने चाहिए, पंफलेट, पुस्तकें, मैगजीन छापनी चाहिए। कक्षा में भाषण होने चाहिए।,,,,,,किसानों और मजदूरों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रचार जरूरी है। पार्टी का नाम कम्युनिस्ट  पार्टी हो। अपने विचारों को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं,,,,,चेतना ही नहीं, वर्ग-चेतना भी पैदा करनी होगी। समाजवादी सिद्धांतों के बारे में जनता को सचेत बनाने के लिए सादा और स्पष्ट लेखन बेहद जरूरी है।”

    वे  आगे कहते हैं,,,,, क्रांति के लिए जरूरत है निरंतर संघर्ष करने, कष्ट सहने और कुर्बानी भरा जीवन जीने की। व्यक्तिवाद खत्म करो, व्यक्तिगत सुख के सपने उतार कर रख दो। इंच इंच कर आगे बढ़ो। इसके लिए हिम्मत, द्रृढता और मजबूत इरादे की जरूरत है। कष्ट और कठिनाइयों में आपकी हिम्मत न कांपे। कोई भी पराजय, धोखा, आपका दिल नहीं तोड़ सके। कष्टों के सामने आपका क्रांतिकारी जोश ठंडा न पड़े, कष्ट सहने और कुर्बानी करने के सिद्धांत से आप सफलता हासिल करेंगे।”

    भगत सिंह से अपनी अंतिम मुलाकात में उनके वकील प्राणनाथ मेहता ने भगत सिंह से पूछा कि वे देश की जनता के लिए क्या संदेश देना चाहते हैं तो इस पर भगत सिंह ने खुश होकर कहा था कि वे  “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के लिए काम करें और भारत में ऐसे ही समाज की स्थापना करें जिसमें शोषण, जुल्म, अन्याय और भेदभाव ना हों।

      क्रांति यानि इंकलाब के साथ साथ आजादी के बारे में भगत सिंह कहते हैं कि “वह पूर्ण स्वतंत्रता का नाम है, जिसमें लोग आपस में घुल-मिलकर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आजाद हो जायेंगे। वे आगे कहते हैं कि क्रांतिकारी समाज की स्थापना होने के बाद धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास और पाखंडों व धर्मांधता का विनाश हो जाएगा और सब धर्म के लोग मिलजुल कर रहेंगे, कोई किसी पर अत्याचार नहीं करेगा।

    क्रांति यानी इंकलाब के अर्थ जानने के बाद अब यह हमारा नैतिक और क्रांतिकारी कर्तव्य है कि हम भगत सिंह के विचारों को लेकर, क्रांति से उनकी क्या मुराद थी, इस बात को लेकर किसानों मजदूरों नौजवानों के बीच गांवों, झोपड़ियों और कारखानों में जाएं और वहां रहने वाले लोगों को क्रांति के लिए तैयार किए करें, आजादी के लिए तैयार करें और उन्हें देशी विदेशी गुलामी के खात्मे और विनाश के लिए तैयार करें।

    क्योंकि हमने आजादी 1947 में प्राप्त कर ली थी मगर आज हम फिर से साम्राज्यवादी ताकतों और देशी-विदेशी धन्ना सेठों की गुलामी के शिकार हो गए हैं। हमारी सरकार ने जनता से उसके अधिकार छीन लिए हैं और हमारे ऊपर और हमारे देश की जनता के ऊपर, पैसे वालों के कानून थोप दिए हैं। हमें फिर से उदारीकरण और निजीकरण के कानूनों को थोप कर हमें फिर से गुलाम बना दिया गया है। 

    अब हमें इस नई गुलामी को दूर करने के लिए, भगत सिंह और उनके साथियों के विचारों को लेकर एक बार पुनः जनता के बीच में जाना पड़ा पड़ेगा और वहां क्रांति के लिए यानी समाजवादी क्रांति के लिए और नए समाज व्यवस्था की रचना के लिए किसानों मजदूरों को तैयार करना होगा। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी और ऐसा करके ही उनके क्रांति के सपनों को साकार किया जाता है और क्रांति के इन्हीं सपनों से हमारे देश की जनता का असली कल्याण हो सकता है। ऐसा करके ही जनता की बुनियादी समस्याओं का सही समाधान किया जा सकता है।

“इंकलाब जिंदाबाद”

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