अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

भारत की राजनीति क्या सचमुच विषाक्त हो चुकी है ? तीन पहलू…

Share

राकेश अचल

भारत की राजनीति क्या सचमुच विषाक्त हो चुकी है ? ये सवाल उन तीन घटनाओं से पैदा हुआ है जो हाल ही में इस देश की जनता के सामने आये है । पहली घटना टिकट न मिलने से क्षुब्ध एक सांसद द्वारा आत्महत्या किये जाने की है । दूसरी घटना एक अभिनेता के दोबारा राजनीति में लौट आने की है और तीसरी घटना देश की न्यायपालिका को कथित रूप से धमकाए जाने की है। क्या राजनीति इतनी जरूरी हो गयी है कि लोग अपनी जान तक दे दें ?


सबसे पहले बात तमिलनाडु के सांसद की । तमिलनाडु में इरोड लोकसभा क्षेत्र से सांसद और मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम नेता ए. गणेशमूर्ति का निधन हो गया है। कथित तौर पर गणेशमूर्ति ने कीटनाशक पीकर ख़ुदकुशी क। वे तीन बार के सांसद थे और इस बार उनकी पार्टी ने उनका टिकिट काट दिया था। देश में टिकिट काटने पर ख़ुदकुशी का ये अपनी तरह का अनोखा मामला है । लोग टिकट कटने पर बगावत करते हैं,दलबदल करते हैं लेकिन ख़ुदकुशी नहीं करते। गणेशमूर्ति ने खुदकुशी की। जाहिर है वे बिना टिकट आगे की यात्रा करने में अपने आपको असहज महसूस कर रहे होंगे।
दूसरी घटना मुंबई की है । चित्रपट दुनिया के हीरो नंबर वन कहे जाने वाले गोविंदा एक बार फिर राजनीति में लौट आये है। वे अब शिवसैनिक बन गए हैं हुए का जा रहा है कि वे मुंबई पश्चिम से लोकसभा का चुनाव भी लड़ेंगे। गोविंदा पहले कांग्रेसी थे। उन्होंने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में गोविंदा ने भाजपा के कई बार के सांसद और कद्दावर नेता राम नाईक को हराया था. हालांकि, बाद में गोविंदा ने राजनीति छोड़ दी थी। गोविंदा पर अंडरवल्ड के दान दाऊद से मिले होने के आरोप लगे थे। गोविंदा ने एक बातचीत के दौरान बताया था कि उनका पॉलिटिक्स में वापसी करने का कोई मन नहीं है. बल्कि उनका अनुभव इतना खराब रहा था कि इसे भूलने में भी उन्हे कई साल लग गए थे। गोविंदा इस कड़वी राजनीति में वापस क्यों आये हैं ये उनसे चुनाव के बाद पूछा जाएगा।
राजनीति के जहरीले स्वभाव को इंगित करने वाली तीसरी घटना न्यायपालिका से जुड़ी है। उस न्यायपालिका से जो कभी सत्ता की आँखों की किरकिरी होतीहै तो कभी विपक्ष की आँखों की। देश के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पिंकी आनंद सहित देश के 600 से अधिक वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि एक समूह देश में न्यायपालिका को कमजोर करने में जुटा हुआ है।
वकीलों ने यह चिट्ठी न्यायपालिका की अखंडता को कमजोर करने के उद्देश्य से एक विशिष्ट हित समूह के कार्यों के खिलाफ गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए लिखी है। सीजेआई को लिखी चिट्ठी में वकीलों ने कहा है कि ये समूह न्यायिक फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव की रणनीति अपना रहा है, और ऐसा खासकर सियासी हस्तियों और भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामलों में हो रहा है। चिट्ठी में कहा गया है कि ये समूह ऐसे बयान देते हैं जो सही नहीं होते हैं और ये राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा करते हैं। अपनी चिट्ठी में वकीलों ने ऐसे कई तरीकों पर प्रकाश डाला है, जिनमें न्यायपालिका के तथाकथित ‘स्वर्ण युग’ के बारे में झूठी कहानियों का प्रचार भी शामिल है।मजे की बात ये है कि इस चिठ्ठी में किसी दल या व्यक्ति का नाम नहीं है लेकिन हमारे विश्वगुरू ने इस चिठ्ठी को लपक लिया और कांग्रेस पर आरोप मढ़ दिया कि डरना-धमकाना कांग्रेस की संस्कृति रही है।
अब सवाल ये है कि क्या राजनीति केवल छींटाकशी का काम है या राजनीति लोगों की एक ऐसी जरूरत बन गयी है कि जिसके बिना एक पल ज़िंदा नहीं रहा जा सकता। सांसद गणेशमूर्ति का आत्महत्या करना,गोविंदा का राजनीती में वापस लौटना और न्यायपालिका के मामले में प्रधानमंत्री जी का शुभचिंतक बन जाना बहुत कुछ कहता है। इन तमाम बातों के बारे में जनता को भी चिंतन-मनन करना चाहिए क्योंकि देश की संसद तो शायद ही इस विषय पर विमर्श करे ! राजनीति में कौन है जो न्यायपालिका को डराता -धमकाता है, इसकी जांच भी होना चाहिए और खुलासा भी । हमारे सामने इसी देश के पूर्व क़ानून मंत्री रिज्जू और मुख्य न्यायाधीश के बीच भिड़ंत के तमाम उदाहरण मौजूद हैं। ये मुठभेड़ सनातन है । सत्ता में कोई भी रहे,सब देश में स्वामिभक्त न्यायपालिका चाहते है। सौभाग्य से अभी न्यायपालिका इस अपराध से बची हुई है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें