अग्नि आलोक
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विकास विकास विकास कहां है विकास?

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मुनेश त्यागी

जोर जोर से कहकर आए थे
हम करेंगे सबका विकास।
पूछो तो सही इनसे जरा
किया है किसका विकास?

विकास तो दिख नहीं रहा
यहां तो पसर गया है विनाश।
झूठ बोलकर सत्ता हड़प ली
तोड़ दिया है सबका विश्वास।

धरती पूछे, नदियां पूछें
पूछ रही हैं सारी हवाएं,
भैया मेरे बताओ हमको
किसका हुआ है विकास?

किसान पूछें मजदूर पूछें
पूछ रही है जनता सारी,
ठहरो और बताओ हमको
कहां गुम हो गया विकास?

संविधान और कानून रौंदा
रौंद दिया है सारा जनतंत्र,
सेठों की तिजोरियां भर दीं
हुआ है उनका ही विकास।

चिंतित हुई है सारी धरती
चिंतित है पूरा आकाश।
वादे हैं झूठे, नारे हैं झूठे
किया नैतिकता का सर्वनाश।

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