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लोकसभा चुनाव में कहीं उल्टी गंगा न बह जाय!

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-डा. भरत मिश्र प्राची

देश में 19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ हीं राजनीतिक दलों की राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो गई है जहां सत्ता पक्ष इस चुनाव में चार सौ पार की योजना बना कर चुनावी रणनीति पर क्रियाशील है वहीं विपक्ष पहले से अधिक सीट लाकर सत्ता पक्ष को पटकनी देने की रणनीति बना रहा है। वैसे विपक्ष को भी मालूम कि जहां सत्ता पक्ष सत्ता बल की ताकत पर विपक्ष को तोड़ने की हर कोशिश कर रहा है, उसे सत्ता से फिलहाल हटाना आसान नहीं फिर भी विपक्ष अपनी बची ताकत पर पहले से ज्यादा सीट हासिल करने की भरपूर कोशिश में लगा है।

चुनाव पूर्व विपक्ष को उसी समय जोरदार झटका लगा जब विपक्षी एकता के सूत्रधार सत्ता पक्ष से हाथ मिला लिये। जहां जांच एजेंसी से बचने के लिये कई राज्यों में विपक्ष के नेता विपक्ष का साथ छोड़ सत्ता से हाथ मिलाते जा रहे है। जो हाथ नहीं मिला पा रहे वे जांच एजेंसियों के घेरे में कैद होते जा रहे। जांच एजेंसियों की कार्यवाही को देश की अवाम पैनी नजर से देख रही है।

सत्ता पक्ष इसे कानूनी कार्यवाही बताकर निष्पक्ष बनने की भूमिका निभा रहा है। पर जांच एजेंसियों की एक तरफा विपक्ष की जांच कार्यवाही एवं जांच के घेरे मे आये विपक्षी दल के नेता का सत्ता पक्ष की ओर बढ़ते ही कदम जांच घेरे से अलग हो जाने से सत्ता पक्ष पर अनेक सवाल खढ़े करते है। इस तरह के परिवेश लोकसभा चुनाव को प्रभावित कर सकते है। जांच एजेंसियां निष्पक्ष होते हुये भी सत्ता पक्ष के प्रभाव से अपने आप को अलग नहीं कर पायेगी, यह भी सच्चाई है। वर्तमान समय में देश में जांच एजेंसियों की केवल विपक्षी नेताओं की ओर की जा रही कार्यवाही सत्ता पक्ष के प्रभाव को साफ .- साफ दर्शा रही है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है।

इस तरह के परिवेश में दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजसथान सहित अन्य राज्यों में सत्ता पक्ष के चुनावी समीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। चुनाव उपरान्त लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष को चार सौ पार की सीट नहीं आती एवं विपक्ष की सीट पहले से बढ़ जाती भले सत्ता परिवर्तन न हो पर इस तरह का परिवेश सत्ता पक्ष की जीत होते हुये भी हार को परिलक्षित कर सकता है। इस तरह के हालात में सत्ता पक्ष के नेतृत्व में उभरता घमंड, विपक्ष को कमजोर करने में सत्ता की ताकत का दुरूपयोग, जनता द्वारा चुनी सरकार को गिराने की राजनीति, अपने को सही ठहराना एवं विपक्ष को गलत बताना, विपक्ष की सरकार द्वारा जनता को दी जा रही राहत को रेवड़ी एवं स्वयं की सरकार द्वारा दी जा रही राहत का बखान करना। आम जनता पर टैक्स का भार बढ़ाते जाना, विपक्ष में डर पैदा करना, देश पर कर्ज का बोझ लादते जाना, सांप्रदायिकता को बढत, कथनी करनी में अंतराल का बढ़ना आदि ऐसे कारण है जो सत्ता पक्ष के वोट पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते है।

इतिहास साक्षी है , सत्ता पक्ष ने जब – जब मद में आकर सत्ता की ताकत का दुरूपयोग किया है, परिणाम प्रतिकूल रहे है। उभरते राजनीतिक हालात में लोकसभा चुनाव में कहीं उल्टी गंगा न बह जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता। (-स्वतंत्र पत्रकार)

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