(हर दिन भारी पड़ रही है मोदी के प्रति अंधभक्ति)
~ पुष्पा गुप्ता
हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हरेक 100 बेरोज़गारों में से 83 युवा हैं। यह रिपोर्ट 2022 तक के आँकड़े सामने रखती है। ‘आईएलओ’ (इण्टरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) और ‘आइएचडी’ (इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट) द्वारा जारी किये गये इस सर्वे में और भी कई तथ्य सामने आये हैं। भारत के कुल बेरोज़गारों में पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या साल 2000 के मुक़ाबले 2022 तक दोगुनी हो गयी। देश के शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या जोकि वर्ष 2000 में 35.2 फ़ीसदी थी वह 2022 में बढ़कर 65.7 फ़ीसदी हो चुकी है। दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों ही नहीं बल्कि संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की आय में भी गिरावट देखने को मिली है तथा अकुशल मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी तक नसीब नहीं होती है।
भारत में बेरोज़गारी की हक़ीक़त हम सभी पहले से ही जानते हैं। अब इस अन्तरराष्ट्रीय पूँजीवादी संस्था द्वारा जारी आँकड़े ही ‘अच्छे दिनों’ के जुमले पर कालिख पोतते नज़र आ रहे हैं। जनता को तो अपने हालात समझने के लिए आँकड़ों की कोई दरकार ही नहीं थी। इसके लिए तो हम भर्तियों में एक-एक पद के पीछे निराश-हताश हज़ारों-लाखों युवाओं की भीड़ को आये दिन देखते ही हैं।
भारत में बढ़ती बेरोज़गारी का कारण फ़ासीवादी मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियाँ हैं। वैसे तो पिछली सरकारों और गैर-भाजपा राज्य सरकारों के दौरान भी रोज़गार के हालात कोई बेहतर नहीं थे लेकिन केन्द्र व राज्यों के भाजपा के फ़ासीवादी शासन ने स्थिति को नारकीय बना दिया है। हर साल 2 करोड़ नये रोज़गार पैदा करने का जुमला उछालने वाले मोदी के राज में इस वक़्त तक़रीबन 32 करोड़ लोग बेरोज़गारी का दंश झेल रहे हैं। रोज़गारशुदा लोगों तक भी मन्दी की आँच पहुँच रही है और कई प्रतिष्ठित कम्पनियाँ भी अपने कर्मचारियों की धड़ल्ले से छँटनी कर रही हैं। मोदी सरकार ने खुद यह माना कि इसके कार्यकाल के दौरान 22 करोड़ 5 लाख युवाओं ने केन्द्र की नौकरियों के लिए आवेदन किया और केवल 7 लाख 22 हज़ार को ही नौकरी मिली।
भाजपा के शासन के दौरान उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों की मार जनता के ऊपर भयंकर रूप से पड़ रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की तमाम कम्पनियों और संस्थानों को बेरोकटोक ढंग से बेचा जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप सरकारी नौकरियों में भयंकर कमी आयी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सिंचाई, पेयजल, बिजली समेत तमाम विभागों में लाखों-लाख पद खाली पड़े हुए हैं। भाजपा के राज के नाममात्र की भर्तियाँ निकली हैं।
उनमें भी ज़्यादातर पेपर लीक, धान्धलेबाजी और कोर्ट केस का शिकार हुई। देश के युवा रोज़गार के लिए अपनी जान जोख़िम में डालते हुए युद्धरत इज़रायल तक में जाने को तैयार हैं। युवाओं की अत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं जिसका कारण भी बेरोज़गारी के ख़तरनाक हालात हैं। साल 2017 से 2021 तक के चार सालों के दौरान 7,20,611 लोगों ने आत्महत्या की जिनमें ज़्यादातर छात्र-नौजवान और गरीब लोग शामिल थे। इस सबके बावज़ूद जुमलेबाज़ सरकार विकसित भारत की बीन बजाने में लीन है और जनविरोधी गोदी मीडिया इसकी अभ्यर्थना में लगा हुआ है।
फ़ासीवादी भाजपा के निरंकुश शासन का एक-एक दिन छात्रों-युवाओं और आम जनता पर भारी पड़ रहा है।
ऐसे हालात में अपने रोज़गार को सुरक्षित करने के लिए हमारे पास एकजुट संघर्ष का ही रास्ता बचता है। हमें जाति-धर्म के नाम पर बँटवारे की राजनीति करने वाले तमाम संगठनों के झण्डों को धूल में फेंककर रोज़गार-शिक्षा-चिकित्सा आदि हमारे असली हक़-अधिकारों के लिए एकजुट होना चाहिए। हमें संगठित होकर निजीकरण को रोकने, विभागों में खाली पदों को भरने, ठेकेदारी प्रथा समाप्त करने, बेरोज़गारी भत्ता हासिल करने जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना चाहिए। आगामी चुनावों में वोट की भीख माँगने के लिए हमारे दरवाजों पर आने वाले भाजपा नेताओं से हमें पूछना चाहिए कि दो करोड़ रोज़गार के जुमले का क्या हुआ और उन्हें अपने द्वार से उल्टे पाँव भगाना चाहिए। यदि हम एकजुट नहीं हुए तो फ़ासीवादी मोदी सरकार फिर से सत्ता में आयेगी और इसको वही काम करना है जोकि वह कर रही है।
मौद्रीकरण और निजीकरण के रूप में अदानी-अम्बानी, टाटा-बिरला की सेवा जारी है। पीएम केयर, इलेक्टोरल बॉण्ड जैसे घोटाले करके धन्नासेठों को देश को लूटने की छूट देकर अपनी तिजोरी भरी जा रही है। लूट और झूठ पर पर्दा डालने के लिए जनता और उसके युवा बेटे-बेटियों को जाति-धर्म-मन्दिर-मस्जिद के नाम पर आपस में लड़ाया जा रहा है।
हम आज भी नहीं चेतते तो भविष्य हमें कभी माफ़ नहीं करेगा।