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मिलिट्री नर्सरी स्कूलों के संचालन में संघियों की घुसपैठ का निहितार्थ 

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    पुष्पा गुप्ता 

     अभिनव सैनिक स्कूलों में से 62 प्रतिशत संघ परिवार से जुड़े लोग चला रहे हैं। रिपोर्टर्स कलेक्टिव के द्वारा इस मामले का खुलासा किया गया है. शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ता साम्प्रदायिकरण और निजीकरण अब उस स्थिति तक पहुँच रहा है जो न केवल शिक्षा को प्रभावित करेगा बल्कि सशस्त्र बलों, नौकरशाही और समाज के पूरे ताने-बाने में साम्प्रदायिक कट्टरपन्थी नफ़रती सोच को भी बढ़ावा देगा। 

     गोदी मीडिया की ज़हरीली ख़ुराक पाकर चेतन चौधरी नामक आरपीएफ जवान द्वारा चार लोगों की लक्षित हत्या हम भूले नहीं होंगे। संघियों की सैनिक स्कूल फैक्टरियों में कितने चेतन चौधरी पैदा हो सकते हैं इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

    मोदी सरकार द्वारा अक्टूबर, 2021 में सैनिक स्कूलों में निजी निवेश को छूट देने की नीति बनायी गयी थी। इसके अनुसार पीपीपी मॉडल के तहत 100 नये सैनिक स्कूल खोले जाने थे जिनका संचालन निजी तौर पर किया जाना तय हुआ था। इन सैनिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की फ़ीस से लेकर ढाँचे में सरकार द्वारा आर्थिक सहायता दिया जाना भी सुनिश्चित था। मोदी सरकार द्वारा एसएसएस (सैनिक स्कूल समिति) के माध्यम से 5 मई 2022 से 27 दिसम्बर 2023 के बीच 40 नये सैनिक स्कूल खोलने का समझौता निजी निवेशकों से किया गया। 

     इनमें से 62 फ़ीसदी सैनिक स्कूल चलाने का समझौता भाजपा नेताओं, संघ परिवार और उससे जुड़े लोगों के साथ हुआ है। इनमें साध्वी ऋतम्भरा से लेकर महन्त बालक नाथ जैसे संघी शामिल हैं जो अपने ज़हरीले व नफ़रती भाषणों-बयानों के लिए कुख्यात हैं। इससे पहले देश में 33 सैनिक स्कूल थे जिनको सैनिक स्कूल समिति चला रही थी।

     सैनिक स्कूल समिति रक्षा मन्त्रालय के अधीन एक स्वायत्त संगठन है। यह संस्था और तमाम संस्थाएँ अब कितनी स्वायत्त रह गयी हैं इसकी असलियत हम सभी जानते हैं।

नयी शिक्षा नीति – 2020 के ज़रिये भाजपा शिक्षा के निजीकरण व साम्प्रदायिकीकरण को नये मुक़ाम तक लेकर गयी है। अब सैनिक स्कूलों को नफ़रती हाथों में सौंपकर वह इस एजेंडे को और भी खतरनाक ढंग से आगे बढ़ा रही है। इस समझौते के बाद कई पुराने स्कूलों को भी सैनिक स्कूलों में बदल दिया गया है जिसमें समविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल भी शामिल है। 

     इस स्कूल को साध्वी ऋतम्भरा चलाती है जिसका नाम बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़ा हुआ है। भोंसले मिलिट्री स्कूल, नागपुर भी इन नये 40 सैनिक स्कूलों में शामिल है कथित तौर पर जिसके तार नान्देड और मालेगाँव बम ब्लास्ट केस से जुड़े हुए थे। संघ परिवार की मंशा अब सैनिक स्कूलों के ज़रिये सशस्त्र बलों में अपनी घुसपैठ को और बढ़ाने की है। 

     सैनिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे बड़ी संख्या में सशस्त्र बलों में शामिल होते हैं और कुछ तो सीधे ऑफिसर रैंक पर भर्ती होते हैं। पिछले 6 सालों में इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों में से 11 फ़ीसदी सशस्त्र बलों में गये हैं। 

      शिक्षा व्यवस्था को किसी भी धर्म से जुड़ी संस्थाओं और धार्मिक लोगों के चंगुल से छुड़ाया जाना चाहिए और पूरे देश में एक समान स्कूली व्यवस्था लागू होनी चाहिए। धार्मिक गुरुओं, सन्तों, मौलानाओं, पादरियों और ग्रन्थियों का शिक्षा के क्षेत्र में कोई काम नहीं है। धर्म लोगों का निजी मसला है सार्वजनिक जीवन में इसकी दखल नहीं होनी चाहिए। सरकार और सरकारी संस्थाओं का धर्म और इससे जुड़े मामलों से पूर्ण विलगाव होना चाहिए। यही सच्ची धर्मनिरपेक्षता है। लेकिन भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के सर्वधर्मसमभाव के बोदे सिद्धान्त का यही परिणाम हो सकता था जिसे हम आज भुगत रहे हैं।

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