अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

 *गंदा है पर धंधा है* 

Share

विवेक मेहता 

           ड्राई एरिया में दारू की बोतल और आम की पेटियों को पहुंच कर उन्होंने अपना स्थान ‘आम’ से खास बना लिया था। थोड़ी बहुत अगर कमी रह जाती तो चापलूसी, चाटुकारिता से वे पूरी कर लेते। बड़े लोगों से हुई अपनी चर्चा की चुगली चटकारे लेकर इस तरह करते कि सामने वाला उनके प्रभाव में आ जाता। गुर्राने और तुम दबाने के बीच समंजन बिठाना में जानते थे। यह सब उनका अलग ही प्रभाव बना देता।

         लोग काम करवाने उनके आसपास आ जुटते। वे भी प्यार से, सुनहरे  सपने दिखा, बातों से संभाल लेते।

            सब दिन एक जैसे तो रहते नहीं! 

        एक रिटायर हो रहे कर्मचारी के जीपीएफ का फंड रिलीज करवाने के नाम पर उन्होंने अपना हाथ रखते हुए कुछ हजार रुपए भी रखवा लिए। कुछ दिनों में बातों में से बात निकलते निकलते उसे कर्मचारी तक पहुंची जिसके नाम से उन्होंने पैसे लिए थे। आमना सामना भी हुआ। और बेइज्जत हो उन्हें पैसे लौटाने पड़ें।

         उनकी चमक थोड़े दिन कम हो गई। जैसे अमावस्या की ओर जाते चांद की होती है। कुछ दिनों के बाद पूनम की ओर जाते चांद की तरह उनकी कलाएं फिर खिलने लगी। वह फिर चमकने लगे। 

          धंधा फिर चल निकला।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें