बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर भारत भूषण ने कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया लेकिन उनकी एक गतली उन पर ही भारी पड़ गई और वह पाई-पाई के मोहताज हो गए।
फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे सितारे आए जिन्होंने कई बेहतरीन फिल्में की और अपनी अदाकारी से दिग्गज सितारों को टक्कर दी। हम बात कर रहे हैं ‘कालिदास’, ‘तानसेन’, ‘कबीर’, ‘बैजू बावरा’ और ‘मिर्जा गालिब’ जैसी एक से बढ़कर एक फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने वाले एक्टर भारत भूषण की।
अपनी दम पर एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले भारत भूषण ने सालों तक इंडस्ट्री पर राज किया, लेकिन अपनी एक गलती की वजह से वह पाई-पाई को मोहताज हो गए थे। एक ही झटके में भारत भूषण का करियर अर्श से फर्श तक पर आ गया था। जिंदगी के आखिरी दिनों में उनकी हालात इतनी खराब हो गई थी कि बेहद तंगहाली में उनकी मौत हुई थी।
60 रुपये थी पहली सैलरी
भारत भूषण का जन्म 14 जून, 1920 को मेरठ में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल वकील थे। एक्टर के पिता चाहते थे कि उनका बेटा उन्हीं की तरह वकील बने। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भारत भूषण को तो एक्टर बनना था। भारत भूषण ने अलीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी की और मुंबई आ गए। सालों स्ट्रगल करने के बाद उन्हें अपनी पहली फिल्म ‘भक्त कबीर’ मिली। उन्हें फिल्म में काशी नरेश का रोल और 60 रुपए महीना की नौकरी दे दी। इस फिल्म में उनके छोटे से रोल को खूब पसंद किया गया और इसके बाद उन्होंने ‘भाईचारा’, ‘सावन’, ‘जन्माष्टमी’, ‘बैजू बावरा’, ‘मिर्जा गालिब’ जैसी कई फिल्में साइन की।
भाई की एक सलाह से बर्बाद हुआ करियर
भारत भूषण की गिनती अपने दौर के बड़े कलाकारों में होने लगी थी कि तभी एक्टर के बड़े भाई ने उन्हें प्रोड्यूसर बनने की सलाह दी। एक्टर ने कई फिल्में प्रोड्यूस कीं। इनमें से दो फिल्में ‘बसंत बहार’ और ‘बरसात की रात’ सुपरहिट हुईं और भारत भूषण मालामाल हो गए। इसके बाद भारत भूषण ने अपने भाई के कहने पर फिल्में बनाना शुरू किया, लेकिन उनकी सभी फिल्में फ्लॉप हो गई और वह कर्ज में डूब गए।
अर्थी उठाने वाला भी नहीं हुआ नसीब
उनका घर गाड़ियां सब कुछ बिक गया। यहां तक कि एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें अपनी लाइब्रेरी की किताबें रद्दी के भाव में बेचनी पड़ी और वह आम जनता के साथ बस की लाइन में लगे नजर आने लगे। जिंदगी के आखिरी दिनों में भारत भूषण काफी परेशान हो गए थे। उनके पास इलाज करवाने के भी पैसे नहीं थे और जब उनकी मौत हुई तो उनकी अर्थी उठाने वाला भी कोई नहीं था। ’10 अक्टूबर, 1992 को 72 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली थी। एक्टर ने अपने अंतिम दिनों में कहा था कि ‘मौत तो सबको आती है, लेकिन जीना सबको नहीं आता। और मुझे तो बिल्कुल नहीं आया।’