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क्या मुस्लिम वाले बयान पर पीएम मोदी पर कार्रवाई कर सकता है चुनाव आयोग?

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मुस्लिम वाले बयान को लेकर पीएम मोदी के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है। चुनाव आयोग ने भी भाजपा को नोटिस जारी किया है। इस मामले में अधिकतम क्या सजा हो सकती है। जन प्रतिनिधित्व कानून में क्या ऐसा कोई प्रावधान है

1987 की बात है, जब महाराष्ट्र की विले पार्ले विधानसभा सीट पर उप-चुनाव हो रहा था। कांग्रेस उम्मीदवार प्रभाकर काशीनाथ कुंटे और शिवसेना समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. रमेश यशवंत प्रभु के बीच कड़ा मुकाबला था। तब शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे सभाएं करके लोगों को प्रभु को जिताने की अपील कर रहे थे। 14 दिसंबर, 1987 को नतीजे आए तो प्रभु जीत गए। इस हार के बाद कुंटे ने प्रभु के निर्वाचन को बॉम्बे हाई कोर्ट में यह कहकर चुनौती दी कि उन्होंने भड़काऊ और नफरती भाषणों के सहारे चुनाव जीते हैं। उन्होंने सुबूत पेश करते हुए चुनाव रद्द करने की अपील की। आखिरकार 7 अप्रैल 1989 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रभु और बाल ठाकरे को ‘जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951’ के तहत ‘चुनाव में भ्रष्ट आचरण’ का दोषी पाया और विले पार्ले सीट के उप-चुनाव के नतीजे को रद्द कर दिया। इस फैसले के खिलाफ प्रभु सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, मगर वहां भी हार गए।
चुनावी सभाओं में बाल ठाकरे ने कहा था कि हम हिंदुओं की रक्षा के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। हमें मुस्लिम वोटों की परवाह नहीं है। ये देश हिंदुओं का था और हिंदुओं का ही रहेगा। इसी आधार पर ठाकरे को भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया जाता है। चूंकि, बाल ठाकरे उस समय किसी लोकसभा या विधानसभा के सदस्य तो नहीं थे। ऐसे में उन्हें 6 साल के लिए मताधिकार से वंचित कर दिया गया, जो अधिकतम सजा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के पास भेजा। राष्ट्रपति ने इसे आयोग के पास भेजा, जहां तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त मनोहर सिंह गिल ने बाल ठाकरे को 6 साल के लिए मताधिकार से वंचित करने की सिफारिश की। इसी के आधार पर राष्ट्रपति ने 28 जुलाई, 1999 को बाल ठाकरे की वोटिंग राइट पर पाबंदी लगा दी।क्या कहा था पीएम मोदी ने चुनावी रैली में
21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला देते हुए मुस्लिमों पर टिप्पणी की। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि वो मां-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। फिर उसे बांट देंगे। वो उनको बांटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। मेरी मां-बहनों ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे, ये यहां तक जाएंगे। मोदी के इस बयान को विपक्षी पार्टियां हेट स्पीच कह रही हैं। कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की है। इसके अलावा 17 हजार से अधिक आम नागरिकों ने भी चुनाव आयोग से इस ‘हेट स्पीच’के लिए पीएम मोदी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। आइए-जानते हैं क्या है जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 और मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट, जिसका पालन किया जाना अनिवार्य है।

जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951: केवल योग्य मतदाता ही लड़ सकता है चुनाव
भारतीय संविधान के भाग XV में अनुच्छेद 324 से 329 तक देश की चुनावी प्रणाली का प्रावधान है। संविधान संसद को संसद और राज्य विधानमंडल के चुनावों से जुड़े सभी मामलों के लिए कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि केवल योग्य मतदाता ही लोकसभा और राज्यसभा का चुनाव लड़ने के लिए पात्र है। जो सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के लिए आरक्षित हैं, केवल वही उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं।

जानिए, कब 6 साल के लिए लग सकता है बैन
चुनाव विश्लेषक राजीव रंजन गिरि बताते हैं कि अगर कोई व्यक्ति वर्गों के बीच नफरत और शत्रुता को बढ़ावा देने, चुनाव को प्रभावित करने, रिश्वत देने, महिला से रेप या गंभीर अपराध करने, धार्मिक वैमनस्य फैलाने, छुआछूत का आचरण करने, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात-निर्यात करने, अवैध दवाओं या केमिकल्स बेचने या उपभोग करने, आतंकी गतिविधियों में शामिल होने, कम से कम 2 साल तक जेल में रहने, भ्रष्ट आचरण में शामिल होने का दोषी पाया जाता है तो ऐसे व्यक्ति को जेल से रिहा होने के बाद चुनाव लड़ने के लिए 6 साल की अवधि के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

ये है 9 मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट, जिसे चुनाव आयोग ने लागू किया है
-कोई भी पार्टी या प्रत्याशी किसी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकती है या आपसी नफरत पैदा कर सकती है या अलग-अलग जातियों और समुदायों, धार्मिक या भाषाई समूहों के बीच तनाव पैदा कर सकती है।
-दूसरे राजनीतिक दलों की आलोचना उनकी नीतियों और कार्यक्रम, पिछले रिकॉर्ड और काम तक ही सीमित रहेगी। पार्टियों और उम्मीदवारों को किसी की प्राइवेट लाइफ पर कमेंट करने से बचना चाहिए। बिना आरोप प्रमाणित हुए किसी पार्टी या उसके कार्यकर्ता की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
-वोट हासिल करने के लिए जातिगत या सांप्रदायिक भावनाओं के आधार पर अपील नहीं करें। मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों या अन्य पूजा स्थलों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए मंच के रूप में नहीं किया जाएगा।
-सभी दलों और उम्मीदवारों को ईमानदारी से भ्रष्ट आचरण जैसी गतिविधियों से बचना चाहिए। चुनाव कानून के तहत अपराध माने जाने वाली गतिविधियों जैसे मतदाताओं को रिश्वत देने, उन्हें धमकाने-डराने जैसी बातों से दूर रहें।
-पार्टियों को मतदान होने से 48 घंटे के भीतर मतदान केंद्रों के 100 मीटर के भीतर प्रचार करना, सार्वजनिक बैठकें आयोजित करने जैसी गतिविधियों से बचना चाहिए।

-प्रत्येक व्यक्ति के शांतिपूर्ण और निर्बाध घरेलू जीवन के अधिकार का सम्मान किया जाएगा। भले ही राजनीतिक दल या उम्मीदवार उस पार्टी की राजनीतिक राय या गतिविधियों से कितना भी नाराज क्यों न हो। किसी भी व्यक्ति की राय या गतिविधियों के विरोध में उनके घरों के सामने प्रदर्शन या धरना का आयोजन किसी भी परिस्थिति में नहीं किया जाएगा।
-कोई भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार अपने समर्थकों को किसी भी व्यक्ति की भूमि, भवन, परिसर की दीवार वगैरह का इस्तेमाल उसकी अनुमति के बिना झंडा लगाने, बैनर लटकाने, नोटिस चिपकाने और नारे लिखने के लिए नहीं करेगा।
-राजनीतिक दल और उम्मीदवार यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके समर्थक अन्य दलों द्वारा आयोजित बैठकों और जुलूसों में बाधा पैदा न करें। एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता या समर्थक दूसरे राजनीतिक दल द्वारा आयोजित सार्वजनिक बैठकों में मौखिक या लिखित रूप से प्रश्न पूछकर या अपनी पार्टी के पर्चे बांट कर गड़बड़ी पैदा नहीं करेंगे।
-एक पार्टी की ओर से उन स्थानों पर जुलूस नहीं निकाला जाएगा, जहां पर दूसरी पार्टी की बैठकें होती हैं। एक पार्टी के पोस्टर को दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं हटाएंगे।

तो क्या भाजपा और कांग्रेस देंगी आयोग के नोटिस का जवाब

पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हेट स्पीच के मामले में पहली बार चुनाव आयोग ने भाषण देने वाले को नहीं, बल्कि पार्टी अध्यक्ष को नोटिस जारी किया है। चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधि कानून 1951 के सेक्शन 77 के तहत नोटिस जारी किया है, जिसका जवाब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे देंगे। 25 अप्रैल को जारी इस नोटिस में चुनाव आयोग ने माना है पीएम मोदी और राहुल गांधी ने जो भाषण दिया वो नफरत फैलाने वाला और समाज में दूरी पैदा करने वाला है। वहीं, कांग्रेस नेता ने 12 अप्रैल को केरल में एक रैली में कहा था कि महज 22 लोगों के पास 77 फीसदी संसाधनों पर कब्जा है। देश में गरीबी बढ़ी है, लेकिन उनकी सरकार आई तो गरीबी खत्म कर देंगे। इसी दावे को झूठा करार देते हुए भाजपा ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी।

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