मुनेश त्यागी
दुनिया के सारे मेहनतकशों को नमन, नन्दन, वंदन और अभिनंदन। इस दुनिया में प्रकृति को छोडकर जो कुछ भी,,,, हंसिया, हथौड़ा, दरांती, हल, जुआ, खुरपी, झोंपड़ी, कुआ, नहरें, महल दुमहले, सडकें, कपडे, लत्ते, चूडियां, साड़ियां, सिंदूर, रोटी कपडा मकान, विश्वविद्यालय, कलम, दवात, किताबें, तख्ती, स्कूल, कालिज, ब्लैक बोर्ड, पंखे, कूलर, ऐसी, पलंग, किताबें, कार, गाडी, रेल, हवाई जहाज, घडी, पहनने के कपडे, पिज्जा, बरगर, इडली, डोसा, बर्फी, लड्डू, जलेबी, दवाईयां, अदालतें, कोट टाई, कमीज पैंट, घडी, मोबाइल, एक्सरे, पर्दे, झूमर, फसलें, सब्जियां, हल, ट्रैक्टर, गहने, सोना चांदी के आभूषण चमचमाती मनमोहिनी लाइटें,, गुफायें, हीरे मोती, सुई धागा, कपड़े, साडी, ब्लाऊज, तख्तो ताज, पंखे, एसी, कूलर, बिजली, गैस के चूल्हे आदि आदि हजारों हजार चीजें, मजदूरों, किसानों और मेहनतकशों ने ही तो बनाये हैं, इस दुनिया को प्रकृति के बाद, हम सब मेहनतकशों ने ही तो सजाया और संवारा है।
जब से मजदूर वर्ग पैदा हुआ है तभी से उसे असकी बुनियादी समस्याओं से मुक्ति नहीं मिली थी जमींदार और सामंत इसका लगातार शोषण करते रहे थे। इसके बाद 1789 में फ्रांसीसी क्रांति हुई जिसने पूंजीवादी व्यवस्था को जन्म दिया। इस व्यवस्था के शासकों से उम्मीद की गई थी कि मजदूरों को उनके कानूनी हक दिए जाएंगे, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ और पूंजीपति कारखानेदार भी मजदूरों का उसी तरह शोषण करते रहे। इस शोषण से परेशान होकर मजदूरों ने प्रतिदिन 8 घंटे के काम की मांग उठाई और यह मांग धीरे-धीरे दुनिया के सारे दुनिया में फैलती चली गई।
मजदूरों के सबसे बड़े त्यौहार यानी मई दिवस का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है,,,, दुनिया के पश्चिमी देशों के कारखानों के मजदूर सन अट्ठारह सौ से ही 8 घंटे की मांग करते चले आ रहे थे। इसको लेकर लगातार आंदोलन होते रहे और 8 घंटे का कार्य दिवस करने की मांग जारी रही। सबसे भारी प्रदर्शन 1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो में हुआ जिसमें 90,000 श्रमिकों ने भाग लिया। आंदोलन लगातार जारी रहा। 3 मई तक जारी इस आंदोलन में 65000 और मजदूरों ने भाग लिया। इसी बीच अमेरिका के शिकागो शहर में हे-मार्केट की घटना हुई जिसके फलस्वरूप कई लोग पुलिस की गोली में मारे गए और सैकड़ों मजदूर घायल हुए। इसी आंदोलन के सबसे अग्रणी नेताओं स्पाइस, फील्डेन, स्विस, फिशर, एंजेल, लुईस और आस्कर पिरान्हा पर मुकदमे चले और मजदूर वर्ग के चोटी के इन पांच नेताओं को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
यह आंदोलन लगातार जारी रहा। 1 मई 1890 से मई दिवस ने अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस का रूप ले लिया। 1891 में रूस में मई दिवस मनाया गया। मई दिवस का यह आंदोलन धीरे-धीरे दुनिया के विभिन्न शहरों में जारी रहा। 1890 में मई दिवस की आठ घंटे कार्य दिवस की मांग के साथ साथ और भी कई मांगें जोडी गई जैसे,,,, मजदूरों की काम करने की दशाओं में महत्वपूर्ण सुधार, पूरी दुनिया के देशों के बीच में शांति और मैत्री और अवसरवादी और भ्रष्टाचारी मजदूर नेताओं की कार्यप्रणाली का भंडाफोड़ दिवस।
मई दिवस यानी मजदूर दिवस के बारे में वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता एंगेल्स का कहना था कि मजदूरों का कार्य दिवस आठ घंटे का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मई दिवस दुनिया के पूंजीपतियों और जमीदारों के खिलाफ एक “निश्चित उद्देश्य” का दिन है, यह वर्ग विभाजन के खात्मे और सामाजिक परिवर्तन का दिन है। यह समस्त राष्ट्रों की एकता का दिन है। यह मजदूरों की लड़ाकू इच्छा के प्रदर्शन का दिन है, जो गुलामी और पूंजीपतियों की शोषणकारी व्यवस्था के खात्मे की बात करता है।
मई दिवस यानी मजदूर दिवस के बारे में 1917 की रुसी समाजवादी क्रांति के महान नेता लेनिन का कहना था कि मई दिवस “प्रदर्शन और संघर्ष” का दिन है। यह मजदूरों की विजय प्राप्ति के लेखे जोखे के प्रदर्शन का दिन है। यह मेहनतकशों के भविष्य के संघर्ष की योजना का दिन है और मई दिवस मजदूरों के मजदूरों के 8 घंटे काम का दिन, 8 घंटे विश्राम और 8 घंटे मनोरंजन की व्यवस्था निश्चित करने का दिन है। यह दिन राजनीतिक स्वतंत्रता का दिन है और यह समाजवादी संघर्ष की शुरुआत का दिन है। यह किसी एक व्यक्तिगत सेवायोजक के खिलाफ नहीं, बल्कि सेवायोजकों और सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष का दिन है। यह सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का दिन है। यह हड़ताल, प्रदर्शन, जुलूस निकालने, क्रांतिकारी भाषण करने और शोषण के प्रति गुस्सा प्रकट करने और शोषणकारी व्यवस्था को खत्म करने की शपथ लेने का दिन है। यह छुट्टी मनाने का दिन नहीं है।
इस क्रांतिकारी दिवस यानी मई दिवस के संघर्ष के क्रांतिकारी नारे इस प्रकार हैं,,,, 1.दुनिया के मजदूरों एक हो, 2.तमाम मेहनतकशों पर पुलिस दमन बंद करो, 3.साम्राज्यवादी व्यवस्था बर्बाद हो, 4.मजदूरों पर पुलिस जुल्म बंद करो, 5.समाजवाद जिंदाबाद।
1917 में जब रूसी क्रांति हुई और किसानों मजदूरों का राज्य कायम हुआ तो उसने सबसे पहले मई दिवस की समस्त मांगों को मान लिया। 1917 की रूसी क्रांति ने मजदूर दिवस की उन सब मांगों को मानव इतिहास में सबसे पहले बार स्वीकार कर लिया जिसमें 8 घंटे का काम, 8घंटे विश्राम और 8 घंटे मनोरंजन का अधिकार, नियुक्ति पत्र, वेतन पर्ची, डबल ओवरटाइम, नियमित प्रोमोशन, महिलाओं और पुरुष मजदूरों को बराबर वेतन, समान काम का समान वेतन, महिलाओं को मातृत्व अवकाश की सवेतन छुट्टियां, साप्ताहिक छुट्टी, काम के दौरान हुई दुर्घटना होने पर मुआवजा, प्रोविडेंट फंड, ईएसआई सुविधाएं, बुढ़ापा पेंशन जैसी समस्त मांगे स्वीकार कर ली गई।
इसके बाद भी मजदूर दिवस आंदोलन पूरी दुनिया में जारी रहा। अमेरिका, इंग्लैंड, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के देशों में यह प्रतिवर्ष मनाया जाता रहा। 1920 में चीन में मजदूर दिवस मनाया गया। 1927 के को भारत के कलकत्ता, मद्रास और मुंबई में मजदूर दिवस मनाया गया। यह मजदूर दिवस 1 मई को पूरी दुनिया के पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। शुरू मई दिवस 8 घंटे के कार्य दिवस के कार्य दिवस की मांग को लेकर मनाया जाता था। इसके बाद धीरे धीरे इसमें और दूसरे मजदूर अधिकारों को लेने के लिए जैसे,,,,, न्यूनतम वेतन, नियुक्ति पत्र, स्थाई नौकरी, पेंशन, ग्रेच्युटी ओवरटाइम, स्टैंडिंग ऑर्डर्स, हाजिरी रजिस्टर, देने आदि की मांगें भी जुड़ गईं। इन सुविधाओं और अधिकारों को पाने के लिए मजदूर वर्ग के सैकड़ों हजारों मजदूरों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है और अपनी नौकरी को स्वाहा किया है ताकि उसके आने वाली पीढ़ी मई दिवस के आदर्शों और उपलब्धियों के अविराम संघर्ष को जारी रख सके।
हमारे देश में भी तमाम मजदूर कानून हजारों बलिदानों के बाद हासिल किए गए थे। आज कमाल देखिये कि इन करोड़ों मजदूरों ने लडकर, बलिदान देकर, फांसियों के तख्ते पर चढकर, अपनी नौकरियों की बलि चढ़ाकर, जो हक अधिकार और सुविधाएं, शोषक और जालिम पूंजिपतियों से लडकर लिये थे, जैसे आठ घंटे का कार्य दिवस, नियुक्ति पत्र, वेतन पर्ची ,कैटेगरी स्लिप, ओवर टाइम, बोनस, ग्रेचुईटी, पेंशन, प्रोमोशन आदि प्राप्त किए थे, आज उन पर पूंजीपतियों व सामंतों और उनकी सरकार द्वारा भयानक हमले किए जा रहे हैं।
गजब की बात यह है कि भारत का पूंजीपति वर्ग, पूरा शोषक वर्ग और उनकी सरकार कभी चुप नहीं बैठे । वे लगातार मजदूरों के इन अधिकारों पर हमला करते रहे, ताकि उनका शोषण बरकरार है और उनकी मुनाफाखोरी बिना किसी रोक-टोक के जारी रहे। वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीतियों और उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद, मजदूरों के ये बुनियादी अधिकार, देश और दुनिया के पूंजीपति, नौकरशाहों ने पिछले 32 वर्षों में लगभग छीन लिये हैं और अधिकांश मजदूरों को आधुनिक गुलाम बना दिया है। अब कार्य के घंटों को बढाकर 12 कर दिया गया है, बोनस खत्म कर दिया गया है, स्थायी प्रकृति के काम को ठेके पर दे दिया गया है, उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है, तमाम श्रम कानूनों को निष्क्रिय और निष्प्रभावी कर दिया गया है, जिससे अधिकांश मजदूर लगभग आधुनिक गुलाम बन गये हैं, उनकी संघर्ष करने की और सामूहिक सौदेबाजी की ताकत छीन ली गई है, यूनियन बनाने का अधिकार लगभग छीन लिया गया है या यूनियन बनाने को लगभग असंभव बना दिया गया है, ताकी शोषण करने वाले और अन्याय करने वाले मालिकान और कारखानादारों की मुनाफाखोरी की मनमानी मुहिम को बिना किसी रोक-टोक के जारी रखी जा सके।
वर्तमान पूंजिवादी निजाम ने मजदूरों को जाति और धरम में बांटकर उनकी एकता को खंडित कर दिया है, आपसी फूट के कारण वे अब लडने की स्थिति में नही रह गये हैं। मजदूरों को आधुनिक गुलाम बनाने में अधिकांश सरकारें कांग्रेस, बीजेपी, बसपा, सपा और दूसरी सभी क्षेत्रिय पार्टियां जिम्मेदार रही हैं। आज हालात इतने खराब हैं कि कई सारी मजदूर यूनियनों में भी पूंजीवादी प्रवृत्ति के नेता पैदा हो गए हैं और उन्होंने वर्ग संघर्ष का रास्ता छोड़कर, वर्ग सहयोग का रास्ता अपना लिया है और उन्होंने मजदूरों को वर्ग संघर्ष की मजदूर कल्याण की नीतियों से मुंह मोड़ लिया है। सिर्फ वाम्पंथी पार्टियों और वामपंथी ट्रेड यूनियनियन कार्यकर्ताओं को छोडकर, कोई भी मजदूरों की बात नही कर रहा है।
इन सब हालातों ने मजदूरों को फिर एकजुट होकर लडने को बाध्य कर दिया है। मजदूर फिर से एकजुट हो रहें हैं। अब अपने अधिकारों को बचाने के लिए और अपने अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए मजदूरों की केंद्रीय मजदूर फेडरेशनों ने किसानों के साथ एक संयुक्त मोर्चे का गठन किया है ताकि किसानों और मजदूर के मुक्तिकारी संगठन को आगे बढ़ाया जा सके और पूरी जनता को पूंजीपतियों और संप्रदायिक ताकतों के विनाशकारी गठजोड़ की विनाशकारी नीतियों से बचाया जा सके।
शोषक पूंजीपतियों और सरकारों की मजदूर विरोधी नीतियों का मुकाबला, मजदूर एकता के बल पर ही किया जा सकता है, अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस का यही संदेश है कि मिलकर लडो और देश और दुनिया के स्तर पर किसानों और मेहनतकशों को साथ लेकर लडो, इन मजदूर विरोधी निजामों को नेशनाबूद कर डालो। शोषण, अन्याय, भेदभाव और गैरबराबरी के निजाम का खात्मा कर डालो और अपनी सत्ता और सरकार कायम करो, 99 फीसदी पर 1 फीसदी पूंजीवादी निजाम को उखाड फैंकों, मजदूरों, किसानों और मेहनतकशों की यह सरकार ही जनता का कल्याण कर सकती हैं, इसके अलावा और कोई रास्ता नही बचा है.
पूंजिवादी व्यवस्था अपनी मुनाफ्खोरी में व्यस्त है, वह दुनिया भर के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा जमाने की फिराक में है, वह पूरी दुनिया को युध्दों में झोंक देना चाहती है। उसके पास दुनिया भर के 99 फासदी लोगों किसानों मजदूरों और मेहनतकशों की समस्याओं का कोई निदान और समाधान नही हैं., वह जनता की बुनियादी समस्याओं,,,, रोटी, कपडा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा का समाधान नही कर सकती है। अतः अब मानव इतिहास के तीन सौ साल की दास्तान कह रही है कि पूंजीवाद अपने ही अंतर्विरोधों से घिरा हुआ है, वह जनता की समस्याओं का कोई हल पेश नही कर सकता है। अतः हम मेहनतकशों के पास इस पूरी दुनिया के मजदूरों, किसानों और मेहनतकशों के पास भी वर्ग संघर्ष और लडने के अलावा और कोई विकल्प नही बचा है। अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आजादी को बचाने और शोषण, जुल्म, अन्याय और भेदभाव के साम्राज्य को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग को एकजुट होना पड़ेगा। तभी मई दिवस के आदर्शों को जिंदा रखा जा सकता है और उन्हें प्राप्त किया जा सकता है।
मजदूर मुक्ति का यह विश्व प्रसिद्ध दिवस, वर्तमान में हमारे सब मतभेदों को दूर करने का और अपने सारे मतभेदों को भूलकर एक हो जाने का दिन है। यह नई गुलामियों, भ्रष्टाचार, बेईमानी, व्यक्तिवाद, आपसी ईर्ष्या, आपसी कलह, जातिवाद, साम्प्रदायिकतावाद , फासीवाद, भाई भतीजावाद, नवउदारवाद, फिरकापरस्ती, पूंजीवाद और वैश्विक लुटेरे, प्रभुत्ववादी और विनाशकारी साम्राज्यवाद को खत्म करने की पहल का दिन है। यह अंतरराष्ट्रीय भाईचारे की घोषणा करने का दिन है। ऐसा करके ही मजदूर दिवस की महान उपलब्धियों को सुरक्षित रखा जा सकेता है और उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है।
अपनी बात को मेहनतकशों के अंतर्राष्ट्रीय गीत की इन पंक्तियों के साथ खत्म करेंगे और पूरी दुनिया के किसानों और मजदूरों का आह्वान करेंगे,,,,,,,
हम मेहनतकश जग वालों से
जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
एक खेत नहीं एक देश नहीं
हम सारी दुनिया मांगेंगे
हम सारा जहान मांगेंगे।
और
किसान आ मजदूर आ
दुनिया को संवारने वाले आ
साथी, दोस्त, सहयोगी आ
इस जग को सजाने वाले आ
फहरेगा परचम लाल जमाना बदलेगा।