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कहानी : फिर सड़क पर

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        मनीषा कुमारी 

तीन दोस्त मुम्बई यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री लेकर दो वर्षों से बेकारी और मुफ़लिसी के दिन काट रहे थे I दो इकोनॉमिक्स से एम.ए. थे और तीसरा हिन्दी साहित्य से. बहुत भटकने के बाद एक पाँच-सितारा होटल में टेम्पररी नौकरी मिल गयी बार-टेंडर की.

     मुम्बई की सबसे बड़ी और सबसे आलीशान रिहायशी इमारत में  देश के सबसे बड़े पूँजीपतियों में से एक की बेटी की शादी एक दूसरे पूँजीपति के बेटे से हो रही थी.

     शादी के समारोह में देश के अधिकांश बड़े पूँजीपति, व्यापारी, शेयर-दलाल, शीर्ष राजनेता, नौकरशाह, जज, वकील, डॉक्टर और  फ़िल्मी दुनिया की लगभग सभी ऊँची तोपें मौजूद थीं. हज़ारों की  संख्या में सारे के सारे वी वी आई पी एक बहुत बड़े हॉल में एक साथ.

     पार्टी की सारी ज़िम्मेदारी उस पाँच-सितारा होटल की थी. तीनों दोस्त बारटेंडर के तौर पर वहाँ मौजूद थे और अतिथियों को दुनिया की नायाब शराबों के पेग बनाकर पेश कर रहे थे.

     पहले वाले ने दूसरे के कान में फुसफुसाते हुए कहा,”इससमय देश के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 75 प्रतिशत यहाँ इस हाल में मौजूद है. दूसरे वाले ने कोर्स की पढाई के साथ-साथ थोड़ा मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र भी पढ़ रखा था. 

     उसने तुरत प्रतिवाद किया,”नहीं-नहीं, यह देश भर के कुल निचोड़े गए सरप्लस का 75 प्रतिशत है जो यहाँ जमा हो गया है.

   अ कैपिटलिस्ट इज़ ओनली कैपिटल पर्सोनिफ़ायड. अब तीसरा दोस्त, साहित्य वाला, बोला,”मुझे तो लगता है, देश की सकल घरेलू गन्दगी का 75 प्रतिशत यहाँ इकट्ठा हो गया है.

   गू और गंद से भरी हज़ारों रंग-बिरंगी रेशमी पोटलियाँ जो पूरे हॉल में लुढ़क-पुढ़क रही हैं.

    उनके ठीक पीछे खड़ा उनका बॉस उनकी बातें सुन रहा था. अगले दिन ही तीनों की उस टेम्पररी नौकरी से भी छुट्टी मिल गयी. तीनों फिर सड़क पर आ गये.

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