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दो बार की सांसद फूलन देवी की मां दाने-दाने को मोहताज

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जिन्हें जनता ने दो बार सांसद बनाया, जिनके न रहने पर गांव-गांव में उनकी मूर्तियां बांटी गईं। जिनके नाम पर सियासतदानों ने खुद को समाज का अगुआ साबित किया। आज उन्हीं की मां दाने-दाने को मोहताज हैं। हम बात कर रहे हैं दस्यु सुंदरी से सांसद बनने वाली फूलन देवी की। आज उनकी मां की दुर्दशा देखकर लोगों की आंखें नम हो जाती हैं।आज फूलन की मां की दुर्दशा देखकर आंखें नम हो जाती हैं। कहती हैं कि भगवान उनकी बेटी की तरह किसी की दुनिया न उजाड़े। बताया, जब फूलन सांसद बनीं तो वह भी दिल्ली गई थीं। उम्मीद थी कि जिंदगी संवर जाएगी, लेकिन एक झटके में सब खत्म हो गया।

कानपुर देहात के रास्ते हम कालपी पहुंचे। हाईवे किनारे से रास्ता निकला है, जो शेखपुर गुढ़ा (गोरहा का पुरवा) गांव पहुंचता है। यहां ज्यादातर घर पक्के हो गए हैं। गांव के प्राथमिक विद्यालय के पीछे करीब पांच फीट चौड़ी सड़क मिलती है। करीब 100 मीटर आगे पक्का मकान दिखता है, जहां एक मूर्ति लगी है। यह मूर्ति फूलन देवी की है। मकान का पिछला हिस्सा अभी भी कच्चा ही है। चारपाई पर बुजुर्ग महिला बैठी हैं, जो फूलन देवी की मां मूला देवी (80) हैं। शरीर कमजोर हो चुका है। हमने उनसे बातचीत का प्रयास किया तो उन्होंने मना कर दिया। फिर अपनी तकदीर को कोसती हैं। कहती हैं कि भगवान उनकी बेटी की तरह किसी की दुनिया न उजाड़े। बताया, जब फूलन सांसद बनीं तो वह भी दिल्ली गई थीं। उम्मीद थी कि जिंदगी संवर जाएगी, लेकिन एक झटके में सब खत्म हो गया।

किसी ने मूर्ति बांटी तो किसी ने की सीबीआई जांच की मांग
फूलन देवी को लेकर विभिन्न दलों में मौजूद उनकी बिरादरी के नेता राजनीति चमकाते हैं। भाजपा सरकार में मंत्री डाॅ. संजय निषाद ने उनकी मौत की सीबीआई जांच कराने की मांग की। फूलन के नाम पर समाज को गोलबंद किया। सपा ने भी आर्थिक मदद की थी। फूलन की जयंती और पुण्यतिथि पर उन्हें निषाद गौरव के रूप में प्रचारित किया जाता है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान वीआईपी के मुकेश साहनी और सपा के पूर्व एमएलसी राजपाल कश्यप ने निषाद समाज के लोगों के घर-घर मूर्तियां बंटवाई थीं।विज्ञापन

जब-तब करते रहे हैं मदद
निषाद विकास संघ के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी लौटन राम कहते हैं कि सपा सरकार में परिवार को मदद मिली थी। संगठन के जरिये भी मदद कराते रहे हैं, लेकिन नियमित मदद नहीं हो पा रही है। फूलन देवी के नाम पर सत्तासुख लेने वाले कई संगठन सियासत चमकाते हैं, लेकिन परिवार की सुध नहीं लेते।

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