कैलाश सिंह
जौनपुर लोकसभा चुनाव 2024 में क्षत्रियों का विरोध और किसानों का आंदोलन एनडीए गठबंधन पर शुरुआत में ही भारी पड़ने लगा। ठाकुरों से टसल की चिंगारी गुजरात से चली और पश्चिमी यूपी में जब धधकी तो भाजपा हाई कमान के कान खड़े हुए लेकिन तब तक दो फेज का चुनाव पार हो गया था।
आग की आंच तब तक राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश को लपेटे में लेकर पूर्वांचल में सुलगने लगी। इस बीच भाजपा के 400 पार के नारे पर संविधान बचाओ का नारा भारी पड़ चुका था। विपक्षी गठबंधन ने आरक्षण को भी मुद्दा बनाकर सीएम योगी आदित्यनाथ को हटाये जाने की हवा फैलानी शुरू कर दी। जब भाजपा जाटों को सेट करने में लगी थी तब विपक्षी दल ठाकुरों के विरोध की चिंगारी को हवा दे रहे थे। पूर्वी यूपी में जब भाजपा हाई कमान बृजभूषण शरण सिंह, राजा भैया, धनंजय सिंह को सेट करने में लगी थी तब तक उसके गठबंधन के सहयोगी अपना दल और राजभर की पार्टी के नेता ठाकुरों पर जहर उगलने लगे।
जौनपुर की दोनों सीटों में मछली शहर के मडीयाहूँ विधान सभा के जवनसी आदि दर्जनों गावों में राजभर की पार्टी के नेता के निहायत गन्दे वक्तव्य ने चिंगारी को जंगल में लगी आग बना दिया। यहाँ के भाजपा प्रत्याशी द्वारा ठाकुर-ब्राह्मण युवकों पर दो साल पूर्व कराये गए एससी, एसटी के मुकदमे कोढ़ में खाज बने थे। तब तक राजभर नेता द्वारा सभा में ठाकुरों को दी गयी गाली ने जख्म को भयानक कैंसर का रूप दे दिया।
यहाँ सपा, बसपा और भाजपा तीनों के प्रत्याशी एक ही जाति वर्ग से हैं, यहाँ लडाई पहले से त्रिकोणीय बनी हुई थी, अब स्थिति डांवाडोल होने लगी है। इस तरह भाजपा के लिए उसके ही सहयोगी पार्टियों के नेता भस्मासुर बन गए हैं और एनडीए की यूपी में सीटों को ये 40 से नीचे समेटने में लगे हैं।
जौनपुर संसदीय सीट पर पार्टी द्वारा घोषित पैराशूट उम्मीदवार भाजपा के स्थानीय संगठन के ही गले नहीं उतरा। यही कारण है की टिकट घोषणा के बाद से अब तक चुनाव चढ़ा ही नहीं। प्रत्याशी का अपना दाग तो है ही ऊपर से उसके सारथी कथित ‘रत्न’ भी अपना आभा मण्डल सांप के केंचुल की तरह ऐसा छोड़े हैं जिसमें वोटर तो दूर भाजपा के पदाधिकारी, कार्यकर्ताओं में भी आक्रोश का कारण बना है।
ये रत्न कभी जिले में उसी तरह दलाल घोषित थे जैसे महाराष्ट्र में कांग्रेस में रहते इस प्रत्याशी की कुख्यति प्रबल थी। उनके भाजपा में आने के बाद महाराष्ट्र का दाग रूपी भूत जौनपुर में नृत्य करने लगे हैं। ऊपर से इनके कथित रत्न ऐसा प्रोटोकाल बनाए हैं मानो ये प्रत्याशी की बजाय मन्त्री हो चुके हैं।
यहाँ भी पूर्व सांसद धनंजय श्रीकला के चुनाव से हटने के बाद जिस फायदे की उम्मीद थी वह उल्टी पड़ गई। सपा प्रत्याशी जहाँ अदर बैकवर्ड वोट को साम-दाम से साधने में जुटा है और मुस्लिम को अपना फिक्स वोट मानकर चल रहा, लेकिन यह वोटर अभी नब्ज देख रहा है। वहीं बसपा उम्मीदवार को यादव होने का भरपूर फायदा मिल रहा है, दलित वोटर अपने दल में अंगद की तरह पांव जमाये है।