लाल बहादुर सिंह
लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम और निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुका है। 4 जून का बेसब्री से पूरे देश को इंतज़ार है। जाहिर है सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि किस तरह की सरकार बनेगी। क्या मोदी राज का अंत होगा और एक नयी सरकार का गठन होगा?बहरहाल इसी के साथ एक और संभावना पर वाम-लोकतांत्रिक ताकतों की निगाह लगी है कि क्या लंबे अंतराल के बाद कम्युनिस्ट पार्टियां हिंदी पट्टी से फिर संसद में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करा सकती हैं? क्या एक बार फिर हिंदी पट्टी से कम्युनिस्ट सांसदों का एक ग्रुप संसद में प्रवेश करेगा?
इस बार इंडिया गठबन्धन की ओर से कुल 7 वाम प्रत्याशी हिंदी पट्टी में मैदान में हैं। राजस्थान के सीकर, झारखंड के कोडरमा, बिहार के आरा, काराकाट, नालन्दा, बेगूसराय और खगड़िया से।
सीकर और खगड़िया से माकपा, बेगूसराय से भाकपा तथा आरा, काराकाट, नालन्दा और कोडरमा से भाकपा माले के प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें 4 सीटों पर चुनाव हो चुका है। शेष 3 सीटों आरा काराकाट और नालन्दा में चुनाव अंतिम चक्र में 1 जून को है।
जहां तक भाकपा माले को मिली आरा सीट की बात है, 35 साल पहले 1989 में आईपीएफ (IPF) के बैनर से पार्टी यह सीट जीतने में कामयाब हो गयी थी। तब गरीब भूमिहीन परिवार से आने वाले कामरेड रामेश्वर प्रसाद सांसद बने थे। क्या पार्टी इस बार फिर उस इतिहास को दुहरा पाएगी?
आरा सीट पर 2019 के चुनाव में पार्टी उम्मीदवार को 4 लाख से ऊपर वोट मिले थे। राजद ने भी समर्थन दिया था। इस समय वहां जो भाजपा के सांसद हैं, पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आर के सिंह, वे 2014 और 2019 में वहां से जीते थे। जाहिर है केंद्र व राज्य सरकार विरोधी एन्टी इनकम्बेंसी के साथ-साथ सांसद के खिलाफ भी भारी एन्टी इनकम्बेंसी मौजूद है। 2019 के पुलवामा घटना के बाद के असामान्य चुनाव में आर के सिंह को भले ही 52.2% वोट मिल गया लेकिन 2014 में यह मोदी लहर के बावजूद 43.78% ही था। माले प्रत्याशी को भी 2019 में 38.79% वोट हासिल हुआ था।
2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आरा में जो 7 विधानसभा सीटें हैं उनमें से 5 सीटें-अगियांव, तरारी, सन्देश, जगदीशपुर, शाहपुर महागठबंधन ने अच्छे खासे बहुमत से जीता था। उधर भाजपा-एनडीए ने केवल दो सीटें, वे भी बेहद कम मार्जिन से, आरा लगभग 3 हजार और बड़हरा 5 हजार मतों से जीता था। तब से राजनीतिक परिस्थितियां भाजपा के प्रतिकूल ही हुई हैं।उधर भाकपा माले ने अपने एक लोकप्रिय विधायक सुदामा प्रसाद को मैदान में उतारा है।
दरअसल भोजपुर-आरा पिछले 5 दशकों से गरीबों के पक्ष में माले के रैडिकल संघर्षों व लोकतांत्रिक आंदोलनों की भूमि रहा है। वहां से न सिर्फ उसके सांसद बने, बल्कि कई बार विधायक भी जीते हैं। जाहिर है वहां माले की ये जीतें तीखे सामाजिक ध्रुवीकरण के बीच ही सम्भव होती रही हैं- एक ओर समाज के वर्चस्वशाली तबके, दूसरी ओर गरीब गुरबा। माले की तो यह विरासत पहले से है ही, इस बार जिस तरह का नैरेटिव पूरे इण्डिया गठबंधन द्वारा सेट हुआ है, उसमें वर्गीय-जातीय, तबकाई हर दृष्टि से सामाजिक संतुलन इंडिया गठबंधन के पक्ष में झुकना स्वाभाविक है, इसके संकेत देश में हर जगह देखे जा सकते हैं और अगर कोई चमत्कार न हुआ तो माले इस सीट पर 35 साल बाद फिर विजय पताका फहरा सकती है।
काराकाट सीट पर माले के प्रत्याशी राजाराम जी हैं जो राष्ट्रीय स्तर के किसान नेता हैं और उस टीम का हिस्सा रहे हैं जिसने 3 कृषि कानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन का नेतृत्व किया था तथा उसके बाद भी किसान आंदोलन को दिशा देने में लगी हुई है। दरअसल उस आन्दोलन को तानाशाह मोदी को झुकाने और किसान विरोधी कानूनों को वापस कराने के लिए तो याद किया ही जाएगा, उस आंदोलन को इस बात का भी श्रेय मिलेगा कि आज के विपक्ष (सम्भवतः भविष्य की सरकार) से उसने अपनी 2 सर्वप्रमुख मांगों-MSP की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी को अपना एजेंडा बनवा लिया और उनके घोषणापत्र में शामिल करवा लिया। यह देखना सुखद था कि अपने सहयोद्धा राजाराम जी के नामांकन में तमाम राष्ट्रीय किसान नेता शामिल हुए।
काराकाट लोकसभा क्षेत्र की अधिकांश विधानसभा सीटों पर इस समय इंडिया गठबन्धन का वर्चस्व है। भोजपुरी कलाकार पवन सिंह के मैदान में उतरने से विपक्ष के लिए लड़ाई और अनुकूल हो गयी है। किसान आंदोलन के एक प्रमुख नेता रहे राजाराम सिंह की काराकाट से जीत होती है तो यह आंदोलन पर भी जनता की मुहर होगी और संसद में वे किसानों की मुखर और विश्वसनीय आवाज बनेंगे।
ठीक उसी तरह नालन्दा नीतीश कुमार का गृह जनपद होने के बावजूद, माले के युवा नेता जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री संदीप सौरभ वहां एनडीए को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं।
झारखंड का कोडरमा लंबे समय से भाकपा माले के जन-राजनीतिक संघर्षों का गढ़ रहा है। बगोदर क्षेत्र से कई बार विधायक रहे जुझारू जननेता कामरेड महेन्द्र सिंह की शहादत की यह भूमि है। अब वहां से विधायक विनोद सिंह इंडिया गठबन्धन की ओर से लड़ते हुए कोडरमा में भाजपा को जबरदस्त चुनौती दे रहे हैं।
राजस्थान के सीकर और बिहार के खगड़िया में माकपा प्रत्याशियों की जीत की अच्छी सम्भावना बताई जा रही है। बेगूसराय में भी भाकपा प्रत्याशी ने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के लिए कड़ी चुनौती पेश की है।
चुनाव 2024 के नतीजे जो भी हों, आने वाले दिन देश में लोकतंत्र के भविष्य और जनता के जीवन के मूलभूत सवालों की दृष्टि से बेहद चुनौती पूर्ण होने वाले हैं। इस नाजुक घड़ी में हिंदी पट्टी से आने वाले वाम सांसदों की सदन में उपस्थिति बेहद अहम साबित हो सकती है।