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तरकश के तीर

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राकेश श्रीवास्तव 

देश मे नौतपा चल रहा है।कहीं-कहीं तापमान पचास डिग्री तक पहुंच रहा है बल्कि उससे आगे भी।बात मुजरे तक पहुंच गई है।

लगता है कि बयार कुछ बदल रही है। कुछ लोग बता रहे हैं कि धरातल के नीचे धारा है (अंडर करेंट)। अब हम तो ठहरे इसी थरती के जीवित प्राणी।जो दिख रहा है उसी से अनुमान लगा सकते हैं।कुछ बातें हैं जो मुकाबले को रोचक बनाये हुए हैं।सभी के तरकश से नये नये तीर निकल रहे हैं। 

अब पैसे लेकर चुनाव प्रबंधन के लिए प्रसिद्ध एक हस्ती के रूप मे तरकश से नया तीर निकला है।वैसे तो वह बहुत बार अलग अलग दलों द्वारा इस्तेमाल किए जा चुके हैं पर अबकी अचानक प्रकट होकर निश्चित रूप से जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं।उनका टास्क है अंतिम दो चरण के चुनाव मे माहौल तैयार करना और समा बांधना। 

उनकी टक्कर मे रण मे आ गये हैं एक प्रसिद्ध पूर्व सेफोलाजिस्ट जो हर तरह के गिलास और किलास मे फिट हो जाते हैं पर अन्त मे जहां दिखते हैं वहीं का खेल बिगाड़ते हैं। कभी भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होते हैं पर अपने ही खिलाफ जांच होने पर अब लिमिटेड विरोध करते हैं और सरकार के लिए समय-समय पर संकटमोचक बनते हैं।किसान आंदोलन से लेकर लखीमपुर तक अपने हिसाब से ही तीर चलाते हैं। 

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कभी अपने तरकश से मंडल का तीर चलाया था जिसने कमंडल को भी अवसर दिया।दलित मुद्दों की बात करते करते अब मंडल के नाम से भी लोग खुल्लमखुल्ला अपनी बैटिंग का स्टैंस  बदल कर यथास्थिति के लिए वाईल्ड ओवर्स जैसी बैटिंग कर रहे हैं और किसी भी कीमत पर फिजा बदलने नहीं देना चाहते हैं। 

भीषण गरमी के इस मौसम मे खरबूजे बहुत तेजी से पक रहे हैं और रंग भी बदल रहे हैं।समाजवाद का झंडा उठाये हुए,अपने व्यवसायिक हितों हेतु आर एस एस और भाजपा के साथियों को साधने वालों के सुर भी बदल रहे हैं। वैसे यह समझदार लोग बैलेंसिंग के लिए प्रतिबद्ध समाजवादियों को भी साथ लिए रहते हैं और उनको मंच देते रहते हैं।यथाशक्ति यथास्थिति ही चाहते हैं। इनका तरकश बहुत समृद्ध है, अतः कुछ तीर इंडिया गठबंधन के पक्ष मे भी चला देते हैं क्योंकि इनको भी लग रहा है कि बयार बदल सकती है और इंडिया गठबंधन को भी साधना है। 

पहले दो चरणों के बाद एक मुख्यमंत्री को जेल से छुड़वाना भी एक बहुत सोचा समझा तीर था। उनके जेल से बाहर आने के बाद बल्लियों उछलने वालों को शायद इससे हुए नुकसान का अंदाज नहीं है। पहले तो उन्होंने अपने को नम्बर एक के रुप मे प्रोजेक्ट करना चाहा पर इंडिया गठबंधन के नेता इतना आगे जा चुके थे कि यह संभव न हो सका।हमेशा की तरह यह एक दोधारी तीर है।कहा नहीं जा सकता है कि यह तीरंदाज या निशाना किसको अधिक हानि पहुंचायेगा।इसी पार्टी की सरकार ने बहुत शान से महात्मा गांधी की फोटो अपने आफिसों से हटाई थी और करेंसी नोट पर लक्ष्मी जी की फोटो की पैरवी की थी और इसके अनेक नेता भ्रष्टाचार की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। जुमलेबाजी मे यह भी किसी से कम नहीं है। अब उसी पार्टी की सशक्त महिला पर हमले का मामला भी आ गया है।

चुनाव आयोग द्वारा कुल वोटों की संख्या मे संदेह उत्पन्न करने के उपरांत भी लगता है दोनो गठबंधन संघर्ष मे हैं। एक तरफ मंदिर और राशन तो दूसरी तरफ संविधान और रोजगार के मुद्दे हैं।जातियों मे बटे समाज को धर्म के नाम पर भी संगठित और एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की चाल भी चली जा रही है। ऐसे मे चुनाव आयोग का परमहंस बन जाना बिना कहे बहुत कुछ कह जाता है।

उपर उल्लेखित इन कुछ बिन्दुओं पर विचार कर के लगता है कि चुनावी परिणाम काफी नजदीकी होंगे। यदि पार्टियों और गठबंधनों की दावों माने तो लगभग आठ सौ से उपर सीटें होनी चाहिए। 

यदि एनडीए गठबंधन सत्ता पाता है तो पार्टी के नेताओं के निरंकुश होने का खतरा बढ़ जायेगा। इसके विपरीत यदि इंडिया गठबंधन जीतता है तो तमाम अन्य लोग उसका श्रेय लेने के लिए मुहं बाये बैठे हैं।उंगली कटा कर शहीद होने वालों की लाईन तैयार है। यदि कहीं इंडिया गठबंधन बहुत अधिक सीटें पा जाता है तो इन पर भी अंकुश जरूरी होगा। 

वैसे यह बात निश्चित रूप से सत्य है कि भाजपा विपक्ष के रूप मे बहुत अधिक सक्रिय रहती है।उसके जिन नेताओं की आवाज़ अभी सुनाई नहीं पड़ती है वह सब सक्रिय हो जायेंगे। 

फिलहाल चार जून तक दिल थाम कर बैठिए।

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