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विकास का सच:कराह रहीं गंगा, वरुणा और अस्सी नदियां…!

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विजय विनीत

भारत के आध्यात्मिक शहर बनारस ने गुजरात से आए जिस नरेंद्र मोदी को भारी मतों के साथ साल 2014 और 2019 में सांसद बनाकर संसद में भेजा, लेकिन पिछले एक दशक में लोगों ने सिर्फ सतही विकास देखा है। बनारस के वोटरों का एक बड़ा तबका अब उन्हें रेटिंग के पैमाने पर अच्छी रैंकिंग नहीं दे रहा है। खासतौर पर गंगा की सफाई, खोदी गई और उबड़-खाबड़ सड़कें, उफनते सीवर, संकीर्ण और क्लॉस्ट्रोफोबिक गलियां, ट्रैफिक जाम, बेरोजगारी और खराब स्वास्थ्य सेवा जैसी उनकी गलतियों को गिनाता है। बनारसियों का कहना है कि मोदी ने क्योटो जैसे विकास का वादा किया था, जो आज तक सपना बना हुआ है।

बनारस के प्रबुद्ध नागरिक ही नहीं, आम बाशिंदे भी इस शहर के विकास की पड़ताल करते हैं तो सच का पलड़ा नीचे और झूठ का ऊपर दिखता है। मोदी के विकास को छलावा करार देते हुए बनारस के प्रखर पत्रकार शिवदास कहते हैं, ”बनारस के लोगों ने पिछले एक दशक में सिर्फ तंगहाली देखी, बदहाली देखी, सीवर का बहता पानी देखा, सड़कों के गड्ढे और जलभराव देखा, टमाटर की महंगाई का विरोध करने वालों को जेल जाते देखा, वीआईपी के चलते शहर में डाइवर्जन और भीषण जाम देखा। महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा बनारस जैसे पहले था, वैसे आज भी है। करप्शन और शिकायतों पर एक्शन नहीं होने से बनारसियों की मुश्किलें बढ़ी हैं। मोदी का सारा काम खेल-तमाशे जैसा दिखता है। शहर की सड़कों पर बने गड्ढों ने हमें विकलांग बना दिया है। हम कैसे मान लें कि बनारस शहर स्मार्ट हो गया है?”

अस्सी-वरुणा नदियों को कौन लेगा गोद

बनारस के चर्चित नमो घाट से सटा है आदिकेश्वर घाट। यहां हमारी मुलाकात गोपाल साहनी से हुई। गायघाट पर इनकी चाय-पान की दुकान है। वह कहते हैं, ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े-बड़े दावे किए गए लेकिन जमीन पर कुछ खास नजर नहीं आ रहा है। बनारस में सर्वांगीण विकास का उनका दावा महज दिखावा है। लोकसभा चुनाव के समय पर्चा दाखिल करने के लिए बनारस आए तो अखबारों में छपा की गंगा मां ने उन्हें गोद लिया है। आप जबरिया कहते रहिए कि गंगा हमारी मां है और उन्होंने हमें गोद लिया है, तो उस पर भला कौन भरोसा करेगा? क्या गंगा दूसरे की मां नहीं हैं?  हमें किसी प्रपंच और पंचायत से मतलब नहीं है। सचमुच गंगा माई के लाल हैं तो वो पहले वरुणा नदी को साफ कराएं। हमारा सवाल यह है कि आखिर दस साल तक उन्होंने वरुणा और अस्सी नदियों की ओर से क्यों मुंह फेर रखा है। ये दोनों नदियां भी तो गंगा की सगी बहनें हैं। आखिर वो अब तक साफ क्यों नहीं हुईं? ”

”गंगा पवित्र नदी है, लेकिन अभी तक उसके अच्छे दिन नहीं आए हैं। बनारस के तमाम घाट पोपले हो गए हैं। ब्रह्मघाट पर सीवर ओवरफ्लो कर रहा हैं। कई सड़कें अभी भी गड्ढों से भरी हैं। नमो घाट के बगल में स्थित है आदिकेशव घाट। यह घाट बदरंग क्यों है? वरुणा के घाट बदहाल क्यों है? गंगा और वरुणा के संगम स्थल पर साल में एक बार नहान भी होता है और मेला भी लगता है। मोदी जी साल में बीस मर्तबा काशी आते हैं। वरुणा का प्रदूषण कहां जा रहा है, दस साल में वरुणा की गंदगी उन्हें क्यों नहीं दिखी? गंगा माई ने सिर्फ उन्हीं को ही गोद नहीं लिया है। हम तो गंगा के तीरे रहते हैं। गंगा ने गोद तो हमें भी लिया है। मेरे साथ चलिये, हम दिखा दें कि गंगा कितनी साफ हुई हैं? ”

”जहां तक पांच किलो राशन की बात है तो वह कांग्रेस के जमाने में भी मिलता था। तब सस्ती चीनी भी मिलती थी और मिट्टी का तेल भी। मोदी ने क्या राहत दिया है, हमें तो कुछ नहीं पता चल रहा है। हम तो खरीद कर अनाज खा रहे हैं। मोदी ने कुछ घाटों पर फ्लड लाइटें लगवा दी है, उससे हमें क्या लेना देना? पिछले चुनाव में मोदी ने बनारस की पहरेदारी का नारा उछालते हुए खुद को चौकीदार बताया था। अबकी वो गारंटी दे रहे हैं। हमें इससे मतलब नहीं है कि वो क्या गारंटी दे रहे हैं? हमें तो सिर्फ इस बात से मतलब है कि आदिकेशव घाट सूना क्यों पड़ा है? आधे शहर की गंदगी वरुणा में क्यों उड़ेली जा रही है? ”

बहुत ज्यादा है स्मार्ट सिटी का दर्द

बीबीहटिया के समीप पत्थरवाली गली में हमारी मुलाकात गुलाबी मीनाकारी के फनकार बलराम दास से हुई तो उन्होंने स्वीकार किया कि गंगा घाटों और शहर में सफाई व्यवस्था में कुछ हद तक सुधार हुआ है, लेकिन सीवर की समस्या जस की तस है। घरों के सामने झूल रहे बिजली के तारों के संजाल को दिखाते हुए कहते हैं, ”हमारे सिर पर हर समय मौत नाचती रहती है। घर के समाने कई सालों से बिजली के तार झूल रहे हैं। हम जिस जगह रहते हैं, आसपास के सैकड़ों लोग मौत के साए में जी रहे हैं। हमने न जाने कितनी शिकायतें की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। हमारे मुहल्ले में सभी घरों पर स्टीकर चिपकाया गया है, ”मोदी का परिवार! ”देश के प्रधानमंत्री का परिवार अगर मुश्किल में है तो आम जनता का हाल क्या होगा। शहर की गलियां अब भी संकरी हैं। बनारस बिल्कुल भी स्मार्ट सिटी का आभास नहीं देता।”

पक्के महाल की मुश्किलों का जिक्र करते हुए विष्णु शर्मा विफर पड़ते हैं। वो शहर में हर रोज लगने वाले ट्रैफिक जाम से नाराज हैं। कहते हैं, ”बनारस में सिर्फ दिन में ही नहीं, रात में भी जाम लग रहा है। अगर किसी को चिकित्सा के लिए आपात स्थिति है और वह अस्पताल जाना चाहता है, तो उसकी वाहन में ही मौत हो जाएगी। सड़कें संकरी हैं और भारी यातायात के कारण हर समय अवरुद्ध रहती हैं। विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। क्या सुचारू यातायात के लिए शहर की सड़कों को चौड़ा करना ‘विकास’ का हिस्सा नहीं है? सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बावजूद नाले गंगा में क्यों गिर रहे हैं? अगर गंगा मोदी की मां है तो यह पवित्र नदी साफ क्यों नहीं हो पा रही है?।”

अस्सी घाट पर कई युवाओं ने जनचौक से बात की तो उन्होंने बताया कि शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है। मोदी सरकार, वादे के मुताबिक नौकरियां पैदा करने में विफल रही। युवाओं का कहना था कि पीएम मोदी ने बनारस जिले में कोई उद्योग स्थापित नहीं किया। बुनकरों की बिजली महंगी कर दी गई। चौक इलाके में साड़ी की बुनाई करने वाले सद्दाम अस्सी के पास स्थित तुलसी  घाट पर मिले। बनारस के विकास के सवाल पर बोले, ”मोदी सरकार की अक्षमता के कारण विकास को आंकने का पैमाना नीचे चला गया है। बुनकरों की एक बड़ी आबादी रोजी-रोटी के लिए मोहताज है।”

सद्दाम यह भी कहते हैं, ”इक्कीसवीं सदी में हम शहर और गंगा घाटों पर बहुरंगी रोशनी और बुनियादी स्वच्छता को विकास के रूप में गिन रहे हैं। यह स्थिति बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में विफल रही है। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बेहतर और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं देने, रोजगार के अवसर पैदा करने और हाशिए पर रहने वाले वर्गों में सुधार करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विफल रहे। यह स्थिति बनारसियों के लिए कुछ ज्यादा खदबदाहट पैदा करने वाली है, क्योंकि मोदी बनारस के दस साल तक सांसद रहे। मकानों पर चित्रकारी और खंभों पर रंग-बिरंगी लाइट लगवाने के आलावा जनता को राहत देने के नाम पर कुछ किया ही नहीं।”

बनारसियों को क्या नंगा करने का इरादा है

अस्सी घाट के पास नगवा इलाके के निवासी वरिष्ठ पत्रकार जयनारायण मिश्र को इस बात से रंज है कि आध्यात्मिक शहर बनारस को पीएम नरेंद्र मोदी गोवा और मरीन ड्राइव बना देना चाहते हैं। विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद वहां के लोगों की मुश्किलें इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। वह कहते हैं, ”अब तो घरों से लोगों का बाहर आना-जाना मुहाल हो गया है। चौक इलाके का सारा कारोबार चौपट हो गया है। कितनी अजीब बात है कि दवा, कपड़े, इलेक्ट्रानिक सामानों की होलसेल दुकानों के मालिक अब माली बन गए हैं और फूल-माला बेच रहे हैं। कुछ पकौड़े तल रहे हैं तो कुछ चाट-गोलगप्पे बेचने को मजबूर हो गए हैं।”

”विश्वनाथ कॉरिडोर को सरकार ने माल बना दिया है और अब इसी तरह का खेल अस्सी इलाके में शुरू करने की तैयारी है। नगवां के 350 से ज्यादा परिवारों को अल्टीमेटम दिया गया है कि वो अपना मकान खाली करके चले जाएं। वो यहां जगन्नाथ कारिडोर बनाना चाहते हैं। विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह अस्सी इलाके के लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। फौरी तौर पर प्रशासन ने तोड़फोड़ की कार्रवाई पर रोक लगाई है, लेकिन लगता है कि चुनाव बाद वो लोगों को उजड़ने के लिए आ जाएंगे। तब हम क्या करेंगे, यह बेचैनी हमें सोने नहीं दे रही है। लंका से गोदौलिया तक सड़कों को चौड़ा करने की योजना बनाई गई है। सोचिए कि कितने लोग उजाड़े जाएंगे। इनके कारिडोर के लिए समूची बनारस सिटी ही बर्बाद हो जाएगी।”

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी निर्माणाधीन रोप-वे को रद्द करने की मांग उठाते हुए कहते हैं, ” बनारस के लोगों को यह नंगा करने की योजना है। वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से काशी विश्वनाथ मंदिर तक सरकार ने केबल कार चलाने की योजना बनाई है और वह जल्दी ही मूर्त रूप लेने वाली है। इस योजना को बनाते समय सरकार को यह क्यों नहीं सूझा कि बनारस के लोग निछद्दम में रहना पसंद करते हैं। ज्यादातर लोग रात में अपने घरों के छतों पर सोते हैं। जब केबल कारें चलेंगी तो सैलानियों को मोबाइल से लोगों के घरों की तस्वीरें उतारने से भला कौन रोक पाएगा? ऐसे में बनारस के हजारों लोगों की बहन-बेटियां अपने घरों में क्या कैद होकर रह जाएंगी? इस मामले में सरकार के खौफ की वजह से लोग खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं, लेकिन इस बार चुनाव में वो नरेंद्र मोदी के खिलाफ वोट देकर उनकी मनमानी का बदला जरूर लेंगे।”

क्योटो देखने लोग कहां जाएं

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के नजदीक स्थित नरोत्तमपुर गांव के रमाकांत यादव की शिकायत यह है कि उनके गांव में साफ पानी तक नहीं पहुंच पा रहा है। अधिकांश लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन नहीं मिलता है। हमें बहुप्रचारित उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस सिलेंडर दिए गए, लेकिन एलपीजी की ऊंची कीमत को देखते हुए इसे दोबारा भरवाना मुश्किल है। मुद्रास्फीति के इस युग में गुजारा करना मुश्किल हो गया है। बनारस में जिस विकास की हमेशा चर्चा होती है वह केवल गोदौलिया इलाकों और कुछ गंगा घाटों पर ही हुआ है। हमारे गांव में अभी भी बुनियादी सुविधाओं का टोटा है।

बीएचयू स्टूडेंट रोशन कहते हैं कि लंका इलाके में कोई कायदे का विकास कार्य नहीं हुआ है। कुछ लोग इस उम्मीद के साथ फिर से मोदी को वोट दे सकते हैं कि उनके प्रधानमंत्री बनने पर बनारस का मस्तक ऊंचा बना रहेगा। थोड़ी साफ-सफाई होती रहेगी। लेकिन बनारस के लोगों को जिन सुविधाओं की तलाश है वो उन्होंने नहीं मिल रही है। इस शहर में काम हो रहा है, यह हर कोई टीवी पर देख रहा और अखबारों में पढ़ रहा है, लेकिन उससे जनता का कितना सरोकार है, यह बताने वाला कोई नहीं है। बनारस के लोग मोदी का क्योटो देखना चाहते हैं। स्मार्ट सिटी का काम तो सिर्फ कागजों पर चल रहा है। लोग यह भी पूछ रहे हैं कि क्योटो देखने के लिए वो कहां जाएं। ”

हम बेड मांग रहे, वो वोट मांग रहे

बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ ओमशंकर कई दिनों से आमरण अनशन पर हैं। इन्हें कुलपति प्रो.एसके जैन की मनमानी, चिकित्सा अधीक्षक डा.केके गुप्ता के कथित भ्रष्टाचार को लेकर खासी शिकायत हैं। वह आरोप लगाते हैं कि दोनों अफसरों के गठजोड़ के चलते दिल के मरीजों के बेड दूसरे विभाग को दे दिए गए हैं। शहर की स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर तस्वीर पेश करते हुए वह कहते हैं, ”स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और स्वास्थ्य के अधिकार के लिए साल 2014 से हमें कई बार आमरण अनशन करने के लिए विवश होना पड़ा। हम जनता के लिए बेड मांग रहे हैं और वो जनता को गुमराह कर वोट मांग रहे हैं। बनारस में झूठ और सच का हैरतअंगेज खेल चल रहा है, जिनकी अनुगूंज समूची दुनिया सुन रही है।”

डॉ ओमशंकर कहते हैं, ”काशी को स्वास्थ्य क्रांति का केंद्र होना चाहिए, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में यह स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे उन्नत था। लेकिन दुर्भाग्य से, हमारी मांगें हमेशा अधूरी रह जाती हैं और अब तक कुछ नहीं हुआ है। बीएचयू में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से रेफर किए गए मामले आते हैं। ज्यातातर मरीज यहां गंभीर स्थिति में आते हैं। लेकिन हमारे पास केवल 16 बिस्तरों वाला आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाई) है। इसमें कम से कम 300 बिस्तर होने चाहिए, क्योंकि हर दिन मरीज़ों की संख्या लगभग 1,200 होती है। जब मैंने बीएचयू में नौकरी ज्वाइन की थी तब मेरे विभाग में ओपीडी (बाह्य रोगी विभाग) में रोजाना सिर्फ 90 मरीज आते थे। अब मरीजों की रोजाना की तादाद कम से कम 350 हो गई है। पहले प्रतिदिन 10 मरीज इको टेस्ट कराते थे, जो अब बढ़कर 100 से अधिक हो गया है। ट्रेडमिल टेस्ट की संख्या प्रतिदिन 1-2 से बढ़कर 12-18 हो गई है। जरूरी उपकरण के अभाव में, हमें उन रोगियों को कई दिनों बाद की तारीखें देनी पड़ती हैं जिन्हें विभिन्न चिकित्सा परीक्षण की जरूरत होती है।”

अनशन पर बैठे डॉ ओमशंकर आरोप लगते हैं कि बीएचयू में एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) जैसे अस्पताल का वादा सरकारी फाइलों में खो गया है। यह अंतर मोदी और उनके हमशक्ल जैसा है। वह कहते हैं, ”सरसुंदर लाल अस्पताल के पास एम्स जैसे अस्पताल की तरह फंडिंग नहीं है। बीएचयू को हर साल केवल 30-35 करोड़ रुपये मिलते हैं, जबकि एम्स को 2,000 करोड़ रुपये मिलते हैं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि हम प्रतिदिन 12,000-13,000 रोगियों का इलाज करते हैं, जबकि एम्स में प्रतिदिन रोगियों की संख्या लगभग 15,000 है। मौजूदा समय में प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य केंद्र अब पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं।”

एक निजी फार्मास्युटिकल कंपनी में मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले एक नौजवान ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर ने जनचौक से कहा कि, ”मेरे जैसे युवा, जिन्होंने पूरे उत्साह के साथ बीजेपी और मोदी को वोट दिया था और उम्मीद थी कि उनके जीवन में कुछ अच्छा होगा, वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और निराश हो गए हैं। सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के व्यवसायीकरण पर जोर दे रही पीपीपी (सार्वजनिक निजी भागीदारी) मॉडल पर कैंसर अस्पताल के लिए बीएचयू अस्पताल का एक हिस्सा टाटा को दिया है। कमीशनखोरी के लिए अस्पताल कैंपस में जांच और दवाओं का ठेका भी उठा दिया गया है।”

बनारस में विकास का सच

रिंग रोड के अलावा विश्वनाथ कारिडोर, दो बड़े-बड़े प्रेक्षागृह और गंगा में जलपोत चलाने के लिए बंदरगाह प्रधानमंत्री की प्रमुख उपलब्धियां हैं। करीब 600 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से अत्याधुनिक, 50 फीट चौड़े काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण कराया गया है, जिसके लिए करीब 250 बहुमंजिली हेरिटेज इमारतें और तमाम मंदिर ध्वस्त कर दिए गए। पहले चरण में करीब 16 किमी लंबी रिंग रोड के निर्माण पर 759 करोड़ खर्च किया गया है। बनारस से बाबतपुर तक 17 किलोमीटर लंबी फोर लेन सड़क बनाने पर 813 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

वाराणसी-आजमगढ़, वाराणसी-सुल्तानपुर और वाराणसी-जौनपुर सहित पंद्रह सड़क परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। 169 करोड़ रुपये की लागत से गंगा पर मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाया गया है। शहर के प्रबुद्ध नागरिकों का मानना है कि ये विकास परियोजनाएं केवल सतही स्तर के विकास हैं जिनका क्षेत्र के लोगों को कोई वास्तविक लाभ नहीं है। कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अभी भी गंभीरता से ध्यान देने की है, क्योंकि ज़मीनी स्तर पर लोगों के मुद्दों का समाधान नहीं हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त-सितंबर 2014 में जापान की यात्रा पर गए थे और वहां की सरकार के साथ एक पार्टनर सिटी अफिलिएशन एग्रीमेंट किया गया था। एग्रीमेंट में काशी और क्योटो के बीच कला, संस्कृति, शिक्षा और विरासत को संवारने और काशी के आधुनिकीकरण के दावे किए गए थे और कहा गया था कि वाराणसी के जल प्रबंधन, सीवरेज व्यवस्था, अपशिष्ट प्रबंधन और यातायात प्रबंधन के लिए जापानी विशेषज्ञों और तकनीक से काशी को क्योटो बना देंगे। मोदी सरकार ने काशी को क्योटो बनाने के नाम पर खूब सुर्ख़ियां बटोरीं, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में वह क्योटो का नाम भी नहीं ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने साल 2019 की शुरुआत में बंदरगाह का उद्घाटन किया था। इस योजना पर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च किए गए। यहां से करीब 3.55 मिलियन मीट्रिक टन कार्गो हैंडलिंग का अनुमान था। मार्च 2020 तक, यहां 0.008 फीसदी से भी कम कार्गो हैंडलिंग हो सका। बंदरगाह योजना के उद्घाटन के समय बनारस के लोगों को बताया गया कि यह परियोजना उनके लिए ‘‘गिफ़्ट’’ है। जनता के टैक्सपेयर के पैसे से जनता को भला कौन गिफ्ट देता है। यह तो घटिया काम है। प्रधानमंत्री हर एक राष्ट्रीय संसाधन को अडानी को सौंपने के लिए इतने उतावले क्यों हैं? इस बंदरगाह की पूर्ण विफलता और इसमें धन के बंदरबांट की कोई जांच क्यों नहीं की जा रही है?

बनारस के किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह से मुलाकात हुई तो उन्होंने अन्नदाता के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया। बोले, 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले से पूरे देश में एक ही नारा सुनाई दे रहा है ‘अब की बार, चार सौ पार। जब कोई सरकार 272 पर ही बन जाती है तो उन्हें क्या संविधान बदलने के लिए 400 का आंकड़ा चाहिए। इशारों में यह बात बीजेपी के कई नेता उठा चुके हैं। चौधरी राजेंद्र कहते हैं, “मोदी जी ने कहा था कि मेरी सरकार किसानों के मुद्दों पर काम करेगी। उन्होंने 2019 तक उस दिशा में प्रयास किया, लेकिन इसके बाद भगवान भरोसे छोड़ दिया। 2019 से 2024 तक सरकार की योजना के तहत किसानों के लिए बहुत कुछ नहीं हुआ है। सरकार सिर्फ़ दावे करती रही है। मोदी के कार्यकाल में बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की है। सरकार को किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए। सरकार को किसान की उपज का दाम देना चाहिए। नौजवानों को रोज़गार देना चाहिए, ताकि वे अवसाद का शिकार न बनें।”

बीजेपी समर्थकों की उड़ी नींद

वाराणसी में सात चरण के चुनाव के आखिरी चरण में एक जून को मतदान होना है। प्रधानमंत्री मोदी का मुकाबला एक बार फिर कांग्रेस के अजय राय से है। वो इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी हैं। बीएसपी ने पुराने समाजवादी नेता अतहर जमाल लारी को मैदान में उतारा है। लोकसभा चुनाव में इस बार पीएम मोदी और उनके समर्थकों की नींद उड़ी हुई है। बीजेपी के कार्यकर्ता जनता के सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं। तल्ख सवालों का जवाब सिर्फ अगर-मगर और गोल-मोल तरीके से दिया जा रहा है।

कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय कहते हैं, “मोदी जी खुद पर हजारों किलो फूलों की वर्षा करा रहे हैं, उनके गोद लिए गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं। उन्होंने वादा किया था कि हम ग्राम स्वराज लेकर आएंगे। सभी के लिए घर होगा। सभी ग्राम पंचायतों को वाई-फाई से कनेक्ट किया जाएगा। नंगा सच यह है कि मोदी जी के गोद लिए गांवों में लोगों को पीने का पानी खरीदना पड़ रहा है और गरीबों को गंदा पानी कपड़े से छानकर पीना पड़ रहा है।”

“इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में गंगा की सफाई को लेकर बीजेपी सरकार पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि, सफाई नहीं कर रहे हैं या सफाई करना ही नहीं चाहते हैं। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि गंगा की एक बूंद भी साफ नहीं हुई है। जनवरी 2024 में कोर्ट ने कहा कि माघ मेला शुरू हो रहा है, गंगा का पानी गंदा है, नालों का पानी सीधे गंगा में जा रहा है। इस पर सरकार ने खुद कोर्ट को बताया कि 40 फीसदी सीवर का पानी अभी भी सीधे गंगा में छोड़ा जाता है।”

पीएम नरेंद्र मोदी की नीति और नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए अजय राय वोटरों को बता रहे हैं कि, “मोदी सरकार ने दस साल में मनरेगा मजदूरों की मजूरी में सिर्फ सात रुपये का इजाफा किया। बनारस शहर में गंदे पानी की वजह से डायरिया और कई संक्रामक बीमारियां फैल रही हैं और लोगों की जान भी जा रही है। मैला ढोने की कुप्रथा के चलते बनारस में 25 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। एक दशक बाद भी मोदी अपने संसदीय क्षेत्र में न मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म नहीं कर पाए और न ही मणिकर्णिका व हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह करने वाले डोम परिवारों के माथे पर लगे छुआछूत के कलंक को मिटा पाए? “

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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