अखिलेश अखिल
चुनाव संपन्न हो गए, मोदी की तीसरी बार सरकार भी बन गई और अभी तक इंडिया गठबंधन का एकजुट खड़े रहना कोई मामूली बात नहीं है। भारत जैसे देश में जब राजनीति केवल लाभ-हानि और झूठ के नैरेटिव पर टिकी हो तो ऐसे में कोई भी दल और कोई भी बड़ा नेता कब पलटी मार देगा यह कौन जानता है?
लेकिन मोदी की सरकार बनने के बाद भी इंडिया गठबंधन आज भी बीजेपी और मोदी की राजनीति के खिलाफ अगर खड़ा है तो जाहिर है कि देश का मिजाज अब बदल रहा है। लोगों का एक बड़ा हिस्सा अब यह समझ गया है कि इस देश में पिछले दस सालों से जो राजनीति चलती रही उसमें आम लोगों के लिए कुछ नहीं हुआ। जो कुछ भी हुआ वह कारोबारी घरानों के लिए ही हुआ और इस खेल में रोटी के कुछ टुकड़े जनता के हवाले किये जाते रहे। अब तक जो भी सरकार चली है वह मानकर चल रही थी कि देश की जनता को विकास से ज्यादा धर्म प्रिय है, हिन्दू-मुसलमान प्रिय है, भारत-पाकिस्तान प्रिय है और राम मंदिर की कहानी सबसे प्रिय है।
मोदी सरकार भी जानती थी कि धार्मिक भावना के जरिये जनता को बहकाया जा सकता है और बाकी की चीजें उसी तरह चलती रहेंगी जैसे पहले चल रही थीं। करीब दस सालों तक बीजेपी ने इस खेल का लाभ उठाया और कह सकते हैं कि इस बार भी पीएम मोदी और बीजेपी के लोगों ने ऐसा ही सब कुछ करने की तैयारी की लेकिन कांग्रेस और विपक्ष के तेवर और एकजुटता के साथ ही इंडिया गठबंधन ने जिस तरह से अपने एजेंडे को जनता के सामने रखने का प्रयास किया है उससे बीजेपी का खेल ध्वस्त तो हुआ ही है। बीजेपी भी अब जान गई है कि उसका यह खेल जनता अब समझ गई है। अगर काम नहीं तो दाम नहीं।
हालांकि इसका कतई यह अर्थ लगाने की जरूरत नहीं है कि बीजेपी के लोग धार्मिक उन्माद फैलाने, धार्मिक राजनीति को आगे बढ़ाने और हिन्दू-मुसलमान की राजनीति के जरिये समाज को बांटने का काम अब बंद कर देंगे। हो सकता है यह मुद्दा तत्काल फाइलों में थोड़े समय के लिए पैबस्त कर दिया जाए और जैसे ही उसे मौक़ा मिलेगा फिर से खेला शुरू कर देंगे।
ये बातें इसलिए कही जा रही हैं कि अभी मोदी की सरकार जिस वैशाखी पर खड़ी है वह वैशाखी भी काफी मजबूत है। जदयू और टीडीपी के सहारे बीजेपी की सरकार अभी बन तो गई है लेकिन बीजेपी को यह भी पता है कि इन दोनों दलों के पास मुसलमानों का भी एक बड़ा वोट बैंक है। ये दोनों पार्टियां जानती हैं कि मुसलमानों के खिलाफ जाकर बीजेपी के सुर में सुर मिलाने का मतलब है उसकी राजनीति का खात्मा और ऐसे में इनकी पार्टियां भी बच नहीं पाएंगी। यह बात जदयू नेता नीतीश कुमार भी जानते हैं और टीडीपी नेता चंद्रबाबू भी समझते हैं।
चन्द्रबाबू नायडू को इस बार दोहरा लाभ मिला है। एक तो सालों बाद वे आंध्र प्रदेश के सीएम बने हैं। बुढ़ापे में यह बात उनके लिए ज्यादा लाभकारी है। और दूसरी बात कि लोकसभा के चुनाव में भी उनके पास 16 सीटें आ गई हैं। और इसी सीट के बदले चंद्रबाबू मोदी से सौदा करते दिख रहे हैं।
चन्द्रबाबू के लिए केंद्र में सरकार बनाने की कोई मज़बूरी नहीं है लेकिन जरूर है कि हालिया विधान सभा चुनाव में मुसलमान समाज के लिए जो उन्होंने दर्जनों वायदे किये हैं उसमें कई पूरा किया जाए। चंद्रबाबू जानते हैं कि बीजेपी का साथ देने भर से आंध्र का विकास संभव नहीं है। उनकी असली चुनौती तो यही है कि मुसलमानों और आंध्र प्रदेश के लोगों के लिए उन्होंने जो बातें चुनाव के दौरान की थी, उसे पूरा करना है।
अगर वादे पूरे नहीं होंगे तो उनका खेल ख़राब हो सकता है। और जैसे ही खेल ख़राब होगा उनकी राजनीति जमींदोज हो जाएगी। यही वह वजह है कि बीजेपी भी चन्द्रबाबू की कमजोरी को समझ रही है। बीजेपी वालों को लग रहा है कि बीजेपी से ज्यादा सत्ता में बने रहना टीडीपी की जरूरत है और इस जरूरत के लिए उसे केंद्र सरकार का समर्थन करना मज़बूरी है।
लेकिन ऐसा ही कुछ नीतीश कुमार के साथ भी है क्या? ऊपर से देखने में अभी नीतीश की क्या है मज़बूरी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन ऐसा लगता है कि बार-बार पलटाई मारने की राजनीति से बचने के लिए ही वे बीजेपी के साथ खड़े हैं। नीतीश कुमार भी जानते हैं कि जदयू सर्वधर्म समभाव की राजनीति करती है और पार्टी की पहुँच मुस्लिम समाज के साथ ही सभी जातियों में सामान है।
सीटों की बात को छोड़ भी दिया जाए तो एक बात तो साफ़ हो गयी ही कि इस बार के चुनाव में जदयू ने जो कर दिखाया है वह कमतर नहीं है। जिस तरह की राजनीति इस चुनाव के दौरान देखने को मिली थी वैसे हालात में जदयू की उपलब्धि बड़ी मानी जा सकती है।
यह नीतीश कुमार के ही बस की बात है कि इतने विकट दौर में भी वे पार्टी को संभाल लिए और सीट पाने में भी कामयाब रहे। लेकिन बड़ी बात तो यह है कि जिन मुसलमान वोटरों के दम पर जदयू के 12 सांसद चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं और मोदी की सरकार में शामिल हुए हैं अगर मोदी की सरकार धर्म और मुस्लिम समाज के खिलाफ कोई फैसला लेती है तो जान लीजिये नीतीश कुमार एक पल भी बीजेपी के साथ नहीं रह सकते।
यह बिहार का मिजाज भी है और जदयू की राजनीति भी। नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर मुसलमान भाइयों के खिलाफ की राजनीति का उन्होंने साथ दिया तो बिहार की राजनीति से उनकी विदाई हो सकती है और पार्टी में टूट भी हो सकती है। इसलिए अभी का वक्त खुद को सहेजने और मौके का इन्तजार करने का है।
यह तो हर कोई जनता है कि नीतीश कुमार ने बिहार के लिए बहुत कुछ किया है। आज बिहार जहां खड़ा है उसमें नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका है। वह चाहे बीजेपी के साथ सरकार चलाते रहे हों या फिर राजद के साथ मिलकर सरकार चलाते रहे हों लेकिन हर सरकार में बिहार में बहुत कुछ होता गया है। इसलिए बिहार की जनता भी जानती है कि नीतीश की छवि एक सेक्युलर बड़े नेता की है और वह कभी भी ऐसा कोई मान नहीं कर सकते जो उनकी छवि के खिलाफ हो। इसलिए अभी इन्तजार की ज़रूरत है।
मोदी के सरकार बनाने में नीतीश की पहली शर्त तो यही है कि इसी साल बिहार का भी चुनाव कराया जाये। हो सकता है मोदी ने इस पर सहमति दे दी हो। और अगर इस मुद्दे पर बात हुई है तभी नीतीश और जदयू वाले मौन हैं। नीतीश कुमार विधान सभा चुनाव कराकर जदयू को फिर ताकतवर बनाने की तैयारी में हैं। वे चाहते हैं कि या तो उनकी पार्टी बिहार में नंबर एक पर रहे या फिर दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित हो सके। ऐसा होने पर ही जदयू की राजनीति आगे बढ़ सकती है।
इसके साथ ही नीतीश कुमार काफी समय से बिहार के लिए विशेष राज्य की मांग भी कर रहे हैं ताकि बिहार की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सके और कुछ उद्योग धंधे के जरिये बिहार का कायाकल्प किया जा सके। आगे मोदी सरकार ऐसा कुछ कर पाती है तो जदयू को बीजेपी के साथ बने रहने में कोई दिक्कत नहीं हो सकती। और फिर मोदी की यह सरकार आगे चलती रह सकती है। लेकिन बीजेपी के मन में क्या है यह भी तो कोई नहीं जानता ?
जिस तरह से अमित शाह समेत सभी पुराने नेताओं के पास पुराने विभाग दिए गए हैं उससे यह भी साफ़ है कि बीजेपी भी कोई बड़े खेल को अंजाम देने के लिए तैयार है। खेल यह भी हो सकता है कि वह इंडिया गठबंधन को तोड़कर अपनी सीटों में इजाफा करे या फिर खेल यह भी हो सकता है कि जदयू और टीडीपी को ही तोड़ दे। क्योंकि ये बातें इसलिए कही जा रही हैं कि बीजेपी जिन दलों के साथ रहती है अक्सर ऐसा ही करती रही है। लेकिन बीजेपी के इस खेल से इस बार नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू सतर्क ही होंगे। बीजेपी जिस दिन कोई खेल करने की तैयारी करेगी उसी दिन यह सरकार गिर जायेगी।
ऐसे में विपक्ष को अभी पूरी ताकत के साथ विपक्ष की भूमिका को ही निभाने की जरूरत है और जनता के सवालों को उठाने की जरूरत है। अब देश में विपक्ष के साथ भी एक बड़ा वर्ग खड़ा हो गया है। संसद के भीतर भी अब विपक्ष ताकत के साथ पहुँच रहा है। कांग्रेस का जनाधार भी बढ़ा है और संसद में सीटों की संख्या भी बढ़ी है। संसद में विपक्ष की तरफ से जब अखिलेश यादव और राहुल गाँधी सरकार को घेरते नजर आएंगे तो वह पल भी देखने लायक होगा। ऐसे में जरूरत इस बात की भी है कि विपक्ष एकजुट रहे और ऐसा हो गया तो मोदी इस बार कोई बड़ा खेल नहीं कर सकेंगे। विपक्ष की एकजुटता में ही सरकार का पतन है।