~ मनीषा कुमारी
*आजादी :*
वह मुझसे बोले- ‘किसी गुलाम को सोते देखो तो जगाओ मत, हो सकता कि वह आजादी का सपना देख रहा हो।’
‘अगर किसी गुलाम को सोते देखो तो उसे जगाओ और आजादी के बारे में बताओ।’ मैंने कहा।
*ऊँचाई :*
अगर आप बादल पर बैठ सके तो एक देश से दूसरे देश को अलग करने वाली सीमा रेखा आपको कहीं दिखाई नहीं देगी और न ही एक खेत से दूसरे खेत को अलग करनेवाला पत्थर ही नजर आएगा।
च्च…च….च… आप बादल पर बैठना ही नहीं जानते.
*मेजबान :*
‘कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।’
करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा :
‘मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।’
भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।
*दूसरी भाषा :*
मुझे पैदा हुए अभी तीन ही दिन हुए थे और मैं रेशमी झूले में पड़ा अपने आसपास के संसार को बड़ी अचरज भरी निगाहों से देख रहा था। तभी मेरी माँ ने आया से पूछा, “कैसा है मेरा बच्चा?”
आया ने उत्तर दिया, “वह ख़ूब मज़े में है। मैं उसे अब तक तीन बार दूध पिला चुकी हूँ। मैंने इतना ख़ुशदिल बच्चा आज तक नहीं देखा।”
मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया और मैं चिल्लाने लगा, “माँ यह सच नहीं कह रही। मेरा बिस्तर बहुत सख़्त है और, जो दूध इसने मुझे पिलाया है वह बहुत ही कड़वा था और इसके स्तनों से भयंकर दुर्गंध आ रही है। मैं बहुत दुखी हूँ।”
परंतु न तो मेरी माँ को ही मेरी बात समझ में आई और न ही उस आया को; क्योंकि मैं जिस भाषा में बात कर रहा था वह तो उस दुनिया की भाषा थी जिस दुनिया से मैं आया था।
और फिर जब मैं इक्कीस दिन का हुआ और मेरा नामकरण किया गया, तो पादरी ने मेरी माँ से कहा, “आपको तो बहुत ख़ुश होना चाहिए; क्योंकि आपके बेटे का तो जन्म ही एक ईसाई के रूप में हुआ है।”
मैं इस बात पर बहुत आश्चर्यचकित हुआ। मैंने उस पादरी से कहा, “तब तो स्वर्ग में तुम्हारी माँ को बहुत दुखी होना चाहिए; क्योंकि तुम्हारा जन्म एक ईसाई के रुप में नहीं हुआ था।”
किंतु पादरी भी मेरी भाषा नहीं समझ सका।
फिर सात साल के बाद एक ज्योतिषी ने मुझे देखकर मेरी माँ को बताया, “तुम्हारा पुत्र एक राजनेता बनेगा और लोगों का नेतृत्व करेगा।”
परंतु मैं चिल्ला उठा, “यह भविष्यवाणी गलत है; क्योंकि मैं तो एक संगीतकार बनूंगा। कुछ और नहीं, केवल एक संगीतकार।”
किंतु मेरी उम्र में किसी ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया। मुझे इस बात पर बहुत हैरानी हुई।
तैंतीस वर्ष बाद मेरी माँ, मेरी आया और वह पादरी सबका स्वर्गवास हो चुका है, (ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे), किंतु वह ज्योतिषी अभी जीवित है। कल मैं उस ज्योतिषी से मंदिर के द्वार पर मिला। जब हम बातचीत कर रहे थे, तो उसने कहा, “मैं शुरु से ही जानता था कि तुम एक महान संगीतकार बनोगे। मैंने तुम्हारे बचपन में ही यह भविष्यवाणी कर दी थी। तुम्हारी माँ को भी तुम्हारे भविष्य के बारे में उसी समय बता दिया था।”
और मैंने उसकी बात का विश्वास कर लिया क्योंकि अब तक तो मैं स्वयं भी उस दुनिया की भाषा भूल चुका था।
*स्वत्व के साथ :*
मैं मानसिक रुग्णालय के उद्यान में टहल रहा था. वहां मैंने एक युवक को बैठे देखा जो तल्लीनता से दर्शनशास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा था.
वह युवक स्वस्थ प्रतीत हो रहा था और उसका व्यवहार अन्य रोगियों से बिलकुल अलग था. वह यकीनन रोगी नहीं था.
मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
उसने मुझे आश्चर्य से देखा. जब वह समझ गया कि मैं डॉक्टर नहीं हूँ तो वह बोला :
“देखिये, यह बहुत सीधी बात है. मेरे पिता बहुत प्रसिद्द वकील थे और मुझे अपने जैसा बनाना चाहते थे.”
“मेरे अंकल का बहुत बड़ा एम्पोरियम था और वह चाहते थे कि मैं उनकी राह पर चलूँ”.
“मेरी माँ मुझमें हमेशा मेरे मशहूर नाना की छवि देखतीं थीं”.
“मेरे बहन चाहती थी कि मैं उसके पति की कामयाबी को दोहराऊँ”.
“और मेरा भाई चाहता था कि मैं उस जैसा शानदार एथलीट बनूँ”.
“और यही सब मेरे साथ स्कूल में, संगीत की कक्षा में, और अंग्रेजी की ट्यूशन में होता रहा – वे सभी दृढ़ मत थे कि अनुसरण के लिए वे ही सर्वथा उपयुक्त और आदर्श व्यक्ति थे.”
“उन सबने मुझे एक मनुष्य की भांति नहीं देखा. मैं तो उनके लिए बस एक आइना था.”
“तब मैंने यहाँ भर्ती होने का तय कर लिया. आखिर यही एक जगह है जहाँ मैं अपने स्वत्व के साथ रह सकता हूँ.”