वर्षा भम्भाणी मिर्ज़ा
हा हा और हाहाकार के साथ अठारहवीं लोकसभा के नए नवेले सत्र का अंत हो गया। खूब किस्सागोई हुई, खूब तस्वीरें लहराईं गईं, मणिपुर से आए सांसद ने अपने ज़ख्म खोलकर रख दिए, नीट परीक्षा पर सरकार ने कोई कान नहीं दिए। विपक्ष के हंगामे के बीच पानी पी-पी कर इकदूजे को कोसा गया। इस बार कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी की पिच पर खेलने में कोई संकोच नहीं किया। नियम है कि संसद में कोई तख्ती या चिन्ह नहीं लाया जा सकता लेकिन लाया गया। यहां शालीनतापूर्वक अपनी बात ही रखी जानी चाहिए क्योंकि सड़क और संसद के बीच यही फर्क है। बेशक प्रधान मंत्री ने विकसित भारत के संकल्प को दोहराया लेकिन एक दुःखद संयोग रहा कि जब वे विकसित भारत का ज़िक्र कर रहे थे, ठीक उसी समय हाथरस के एक गांव में मची भगदड़ ने सैकड़ों निर्दोष महिलाओं की जान ले ली। यह देश की वह बदहाल महिला आबादी थी जो प्रशासन की बदहाली का शिकार हो गईं। अपने तमाम आभाव और परेशानियों के बीच चंद सुख के पल लेने की उम्मीद में उन्हें सुकून नहीं मौत मिली। कथित बाबा को दर्शनार्थियों की भीड़ से बचाने के लिए आयोजकों ने इन महिलाओं की भीड़ को भगदड़ में बदल दिया था।
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर पक्ष-विपक्ष दोनों के नेता खूब बोले लेकिन बातों से यही लगा कि वे अब भी चुनावी रैलियों से बाहर नहीं आए हैं। दोनों ही पक्ष जैसे जनादेश को भी नहीं समझ पाए हैं। जिन्हें नपातुला मिला है वे खुद को सर्वेसर्वा समझ रहे हैं और जिन्हें कम मिला है वे खुद को ताकतवर मान बैठे हैं। क्षमताओं से ज़्यादा ख़म ठोकने का यह चलन नई संसद के दोनों सदनों में खूब दिखाई दे रहा है। बहस में ऐसा कहीं नहीं लगा कि जनता के मुद्दों पर, तकलीफ़ पर ये दल कोई एक राय बनाने की कोशिश भी कर रहे हों। इन्हें बस केवल दांव पेंच चलने थे, जैसे अखाड़े में कोई पहलवान करता है। अपने विरोधी को चित करने के लिए वे हर चाल चल रहे थे। जब ये बहस जनता के लिए है ही नहीं, केवल एक दूसरे को नीचा दिखाते हुए, शत्रु की तरह व्यवहार करने के लिए है तो सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि यह संसद सही फैसलों पर कैसे पहुंचेगी। पहले की तरह अब भी हंगामों के बीच ही एक तरफ़ा बिल पास हो जाएंगे। यूं भी संसदीय समितियों की भूमिका भी कम हुई है कि जहां विशषज्ञ बहस करें और कोई बिल पुनर्विचार के लिए लौटाएं। ऐसे में संसद की प्रासंगिकता कैसे बनी रह सकती है, इस पर विचार होना चाहिए।
दलों के बीच बढ़ते वैमनस्य का समाप्त होना बहुत ज़रूरी है। यह ज़िम्मेदारी सत्तापक्ष की थोड़ी ज़्यादा है। अजीब मंज़र ऐसा भी देखने में आया कि ट्रेज़री बेंचेस की ओर से स्पीकर को दिशा- निर्देश दिए गए। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के भाषण के दौरान कई बार ट्रेज़री बेंचेस ने कानून का हवाला दिया। प्रधान मंत्री समेत पांच मंत्रियों ने बीच में हस्तक्षेप कर स्पीकर से गुहार लगाई। यह अभूतपूर्व था। बाद में नेता प्रतिपक्ष के भाषण के बड़े हिस्से को संसदीय कार्यवाही से हटा दिया गया। दरअसल राहुल गांधी भगवान शिव, गुरु नानक और ईसा मसीह की तस्वीरों को दिखाते हुए कह रहे थे कि इन सभी में दिखाई गई अभय मुद्रा का संदेश है कि डरो मत, डराओ मत। उन्होंने कहा -“हमारे महापुरुषों ने यह संदेश दिया- डरो मत, डराओ मत। शिवजी कहते हैं- डरो मत, डराओ मत और त्रिशूल को ज़मीन में गाड़ देते हैं। दूसरी तरफ़ जो लोग (बीजेपी की ओर इशारा करते हुए) अपने आपको हिंदू कहते हैं वो 24 घंटे हिंसा-हिंसा-हिंसा.. नफरत-नफरत-नफरत… आप हिंदू हो ही नहीं।” इस पर प्रधान मंत्री ने खड़े होकर कहा “ये विषय बहुत गंभीर है, पूरे हिंदू समाज को हिंसक कहना ये गंभीर विषय है.” जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि आप पूरा हिन्दू समाज नहीं हो, भाजपा पूरा हिन्दू समाज नहीं है। इस्लाम को लेकर भी जब गांधी ने अभय रहने का हवाला दिया तब गृहमंत्री ने उठकर सवाल किया कि ऐसा बोलने से पहले क्या इस्लामिक विद्वानों की राय ली गई है। नेता प्रतिपक्ष के भाषण का बड़ा हिस्सा अब रिकॉर्ड से हटा दिया गया है।
विपक्ष के यह तेवर सत्ता पक्ष को स्वीकार नहीं थे। अतीत में भी हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के आने के बाद राहुल गांधी के आक्रामक तेवर से उनकी संसद सदस्यता ले ली गई थी। एक बार फिर सरकार की ओर से ऐसे ही संकेत मिले हैं कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। तल्खी की एक बड़ी वजह यह भी रही कि पहली बार विपक्ष भारतीय जनता पार्टी की ही पिच पर आ गया था। भाषण वाले दिन सोशल मीडिया पर राहुल गाँधी टॉप पर ट्रेंड कर रहे थे। तमाम मुख्यधारा का मीडिया भी उन्हें दिखा रहा था। फुटेज की बात करें तो उस दिन उन्हें खूब फुटेज मिला जैसा कि अक्सर नहीं ही होता है। अगले दिन पीएम की बारी थी। उनके भाषण के दौरान विपक्ष पूरे समय नारेबाज़ी कर शोर मचाता रहा। प्रारंभ में विकसित भारत के रोड मैप को समझाता हुआ भाषण बेहद गंभीर मालूम हो रहा था कि यकायक प्रधानमंत्री हास्य व्यंग्य की दुनिया में दाखिल हो गए। शोले का सीन अपनी तरह से प्रस्तुत करते हुए उन्होंने खूब ठहाके लगवाए। प्रधानमंत्री ने शोले फिल्म की मौसी के साथ जय वीरू के किरदार को जिस तरह जीवंत किया उससे ज़ाहिर होता था कि वे मंझे हुए कलाकार भी हैं। वे बता रहे थे कि नेता प्रतिपक्ष में ऐब ही ऐब हैं, फिर भी वे हैं तो हमारे हीरो। ठीक वैसे ही जैसे जय अपने दोस्त वीरू के ऐब गिनाता है। प्रधानमंत्री के भाषण में ये शब्द भी थे- माँ की गाली, आदमखोर एनिमल, कांग्रेस के मुंह खून लग गया है, श्राप, तबाह, संविधान सर पर रख कर नाच रहे हैं, ड्रामा, तमाचा, परजीवी।
पीएम ने राहुल गांधी को बालक बुद्धि बताते हुआ कहा कि जब कोई बच्चा साइकिल से गिर जाता है, तब वह रोने लगता है। सब उसका हौसला बढ़ाने के लिए कहते हैं कोई बात नहीं चींटी मर गई.. चिड़िया उड़ गई। यहां भी यही सब हो रहा है।बहरहाल, कुछ विशेषज्ञ इसे बच्चों का अपमान मान रहे हैं । गौरतलब है कि बच्चों के कान खींचतीं हुए प्रधनमंत्री की कई तस्वीरें इंटरनेट पर चर्चित हैं। इनमें अक्षय कुमार के बेटे और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की बेटी की तस्वीरें भी हैं। अक्षय ने तो तब के ट्विटर पर लिखा था- एक पिता के लिए गर्व का क्षण जब प्रधानमंत्री बेटे के कान खींचते हुए कहते हैं वह एक अच्छा लड़का है। कई और रोचक मोड़ भी आए जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा – हमारे यहाँ जी -23, जी- 24 पता नहीं क्या-क्या होता है लेकिन आपके यहाँ डर है, बोलने की आज़ादी नहीं है और देखिये यह बात आप सबको कितनी सही लगी, इसलिए आप चुप हैं और कोई हंगामा नहीं कर रहे हैं। चुटकी पीएम ने भी ली। वैसे उनके तरकश के सभी तीर कांग्रेस के लिए थे इंडिया गठबंधन के घटकों पर नहीं।मुलायम सिंह के भाई रामगोपाल यादव की तरफ देखते हुए उन्होंने कहा-“आज जो लोग जांच एजेंसियों को बदनाम कर रहे हैं, हल्ला मचा रहे हैं वे स्वर्गीय मुलायम सिंह जी के इस बयान को कैसे भूल गए कि कांग्रेस से लड़ना आसान नहीं है, जेल में डाल देगी, सीबीआई लगा देगी। कांग्रेस सीबीआई, इनकम टैक्स का डर दिखा के समर्थन लेती है। क्या मुलायम सिंह जी झूठ बोलते थे क्या, ज़रा भतीजे को समझाएं।” इशारा अखिलेश की ओर था।
इस संसदीय सत्र की सुखद बात रही कि मणिपुर पर चुप्पी टूटी। पीएम ने राजयसभा में कहा कि वहां हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं। मणिपुर में 11हज़ार एफ़आइआर (यह वाकई हालात की भयावहता को भी प्रकट करता है) दर्ज़ हुई हैं। इससे पहले मणिपुर के सांसद ने लोकसभा में कहा था कि मेरे प्रदेश में विभाजन के समय जैसे भयावह हालात रहे लेकिन खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली पार्टी ने राजधर्म नहीं निभाया। लुधियाना के सांसद भी किसानों के साथ सरकार के व्यवहार पर खूब दहाड़े। बहरहाल, सत्र समाप्त हो चुका लेकिन दलों में शत्रुता रह गई है। जब तक मुद्दों से भटक कर इधर-उधर की बात होगी, नेता जनता का भरोसा खोते जाएंगे। भावी डॉक्टरों को चुनने की नीट परीक्षा पर पर दोनों पक्षों को संसद में बात करनी चाहिए थी, जो नहीं की गई।