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संविधान हत्या दिवस हताशा का प्रतीक

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 –सुसंस्कृति परिहार 

ये सच है कि इंदिरा जी ने संविधान संशोधन कर आपातकाल लगाया,विपक्ष को परेशानी में डाला किंतु आम जनता को जो अनुशासन इस दौर में देखने मिला उसकी चर्चा गाहे-बगाहे हो जाती है।इसे काला दिवस कहा गया विपक्ष ने संजय गांधी के जबरिया नसबंदी का इतना प्रचार किया कि कांग्रेस की छवि खराब हुई और वह सत्ता से बाहर हो गई।नई सरकार बनी लेकिन वह टूट फूट गई और इंदिरा जी फिर भारी बहुमत से वापस सत्ता में आईं। उन्होंने 25 जून 75 को लगाई इमर्जेंसी की गलत करार दिया और सार्वजनिक रूप से जनता से माफी मांगी।उनकी पुनः जीत और माफ़ी मांगने का कोई जिक्र नहीं करता।साथ ही उन्होंने इस धारा में ऐसा संशोधन भी कर दिया कि कभी ऐसा  दुरुपयोग ना हो।यदि वह धारा नहीं बदलती तो यकीन मानिए आज मनुवादी संविधान लागू हो ही जाता।

आज़ लगभग पचास साल हमारी सरकार इस दिन को संविधान हत्या दिवस आगामी वर्ष से मनाने की तैयारी कर रही है वह ग़लत है संविधान की एक धारा जिसे बदलने का अधिकार सत्तारुढ़ पार्टी को था।वह सदन में बराबर पास हुआ इसे संविधान की हत्या नहीं कहा जा सकता। विदित हो भाजपा सरकार ने कई विधेयक बहुमत के कारण ऐसे ही पास कराए हैं। मैं समझती हूं गुजरात नरसंहार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने जो कहा उसे नहीं माना गया तब संविधान की हत्या हुई,कश्मीर में धारा 370के एक अंश को तो बिना राज्य सरकार की अनुशंसा के राज्यपाल से पास कराया।तब संविधान की हत्या हुई।विपक्षी 140 सांसदों को सदन से निष्कासन कर मनमाने विधेयक पास हुए , जनता की वोट से बनी राज्यों की विपक्षी सरकारों को दलबदल के सहारे सरकार गिराया गया तब संविधान की हत्या हुई। मणिपुर राज्य को केन्द्र ने जिस तरह धधकने मज़बूर किया उनके घावों पर मरहम लगाने के नाम पर चुप्पी साधी तब संविधान की हत्या हुई। किसानों के दुनियां के सबसे लंबे चले आंदोलन में सरकार का रुख संविधान की हत्या है।झूठे वादों को जुमला कहना संविधान की हत्या है। संविधान द्वारा प्रदत्त स्वायत्त इकाईयों का विपक्ष को सताने का काम संविधान की हत्या है। समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने तो सरकार पर  संविधान की हत्या के अनेकों मामलों को सामने लाया है।

 लेकिन मेरा ख़्याल है संविधान हमेशा ज़िंदाबाद रहा है और रहेगा कुछ धाराओं में संशोधन से संविधान की हत्या नहीं होती। इस तरह के विचार सामने वही ला सकते हैं  जिनके विचार और इरादे नेक नहीं है। सबको ज्ञात है,हिंदू राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध वर्तमान सरकार जब इस चुनाव में चार सौ पार तो छोड़िए बहुमत से 32सीट दूर वैशाखियों के सहारे है तब पचास साल पहले दफ़न मामले खोदे जा रहे हैं।यह हताशा और कुंठा से उपजी मानसिकता है। संविधान बचाओ अभियान की खीज है।अब जब संविधान ख़त्म करने वालों पर इंडिया गठबंधन का सख्त पहरा है तब इस तरह के शोशे छोड़कर जनता को बरगलाया नहीं जा सकता। आज़ की बात और समस्याओं का समाधान अवाम चाहती है।

मन का मलाल इस तरह निकालना और उसे हत्या दिवस के रुप में मनाने से कोई फायदा होने वाला नहीं इससे विपक्ष और मज़बूत होगा। कब्रें खोदना बंद करें वर्तमान में अपनी करतूतों की समीक्षा करें और जनमत के मन की बात सुनें और गुनें। नई पीढी जो  नई सीढ़ियों पर चढ़ने बेताब है किसी भी हालात में पीछे मुड़कर देखना पसंद नहीं करती।

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