वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा भारत का रिकॉर्ड सातवां आम बजट पेश किया जा चुका है। इसमें कुछ चौंकाने वाली घोषणाएं भी सुनने को मिलीं, जिसे सुनकर एकबारगी तो लगा कि ये तो कांग्रेस के घोषणापत्र से चुराया हुआ बजट है, जिसे देख कांग्रेस का चुनावी घोषणापत्र तैयार करने वाले पी. चिदंबरम तक अचंभित रह गये और उन्होंने लिख दिया, “मुझे यह जानकर खुशी हुई कि माननीय वित्त मंत्री ने चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस घोषणापत्र लोकसभा 2024 पढ़ा है। मुझे खुशी है कि उन्होंने कांग्रेस घोषणापत्र के पृष्ठ 30 पर उल्लिखित रोजगार-संबंधी प्रोत्साहन (ईएलआई) को वस्तुतः अपना लिया है। मुझे यह भी खुशी है कि उन्होंने कांग्रेस घोषणापत्र के पृष्ठ 11 पर उल्लिखित प्रत्येक ट्रेनी को भत्ते के साथ प्रशिक्षुता योजना आरंभ की है। काश वित्त मंत्री ने कांग्रेस घोषणापत्र में कुछ अन्य विचारों की भी नकल की होती। मैं जल्द ही इन छूट चुके अवसरों की सूची तैयार करूंगा।”
प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है, यह कुर्सी बचाओ बजट है। अपने गठबंधन के सहयोगियों को खुश रखने के लिए उनके साथ खोखले वादे, जिसे अन्य राज्यों की कीमत पर किया गया है। दूसरा: क्रोनी पूंजीपतियों को खुश करने वाला बजट: AA (अडानी अंबानी) को लाभ पहुंचाने वाला, जिसमें आम भारतीय के लिए कोई राहत नहीं। और तीसरी टिप्पणी में राहुल गांधी ने इसे कॉपी पेस्ट बजट बताया है, जिसे कांग्रेस के घोषणापत्र और पिछले बजटों से चुराया गया है।
1 घंटे 21 मिनट तक चले इस बजट भाषण को वित्त मंत्री के पिछले बजटों से अपेक्षाकृत संक्षिप्त बताया जा रहा है। अपने भाषण की शुरुआत करते हुए निर्मला सीतारमण ने बताया कि अंतरिम बजट के अनुरूप इस बार के बजट को चार जातियों, गरीब, महिला, युवा और किसान के मुद्दे पर फोकस रखा गया है। उन्होंने कहा, “किसानों के लिए हमने सभी प्रमुख फसलों पर लागत मूल्य से कम से कम 50% न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की है। पीएम गरीब कल्याण योजना को 80 करोड़ गरीबों के लिए अगले 5 वर्षों के लिए बढ़ा दिया है।”
अब ये अलग बात है कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तगड़ा झटका खाने के बाद भी वित्त मंत्री समझ नहीं पा रही हैं कि किसानों को लागत के ऊपर 50% मूल्य की दरकार है, और जो सरकार उन्हें मुहैया करा रही है, उसमें बढ़ते इनपुट कॉस्ट को सरकार लगातार समायोजित नहीं कर रही है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के अवध और पूर्वी क्षेत्र से भाजपा के सफाए की मुख्य वजह 5 किलो मुफ्त राशन रहा, जिससे गरीब का पेट नहीं भर रहा। उन्हें रोजगार चाहिए, जिससे कि भरपूर भोजन के साथ-साथ सम्मानपूर्वक जीवन जिया जा सके।
बहरहाल, जिस चीज ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, वह था युवाओं के लिए 4 करोड़ नौकरियां देने का वादा। भारत के लोग भाजपा सरकार के मुख से रोजगार की बात सुनने के लिए तरस गये थे। अभी कुछ दिन पहले तक भी प्रधानमंत्री दावा कर रहे थे कि पिछले कुछ वर्षों में ही देश में 8 करोड़ नौकरियां सृजित की गई हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के एक प्रतिनिधि के दावे को सोशल मीडिया सहित समाचार पत्रों में चस्पा कर आम लोगों के मुंह पर मारा जा रहा था। लेकिन अब सरकार को स्वीकार करना पड़ रहा है कि रोजगार और महंगाई वे प्रमुख मुद्दे हैं, जिनसे आम लोगों का ध्यान किसी भी कीमत पर हटने वाला नहीं है।
सरकार ने घोषणा की है कि प्रति वर्ष 80 लाख युवाओं को इंसेंटिव दिया जायेगा। इसे ही पहली नजर में मान लिया गया कि शायद सरकार अगले 5 वर्षों में 4 करोड़ नए रोजगार देने जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि करीब 5000 अग्रणी उद्योगों को युवाओं को अपरेंटिसशिप में नौकरी देने के लिए कहा जाये। छोटे और मझौले उद्यमियों को बढ़ावा देने की बात भी कही जा रही है। लेकिन सब कुछ अभी इतना उलझा हुआ है कि स्पष्टता आने में कुछ समय लगेगा। एक नारा ये भी उछाला जा रहा है कि पहली बार नौकरी पर एक महीने का वेतन सरकार की ओर से दिया जायेगा। लेकिन इसके बाद क्या?
देश में पिछले कई वर्षों से कॉर्पोरेट टैक्स में भारी छूट के बावजूद कोई निवेश नहीं है। देश का पूंजीपति भारी मुनाफा तो कमा रहा है, लेकिन निवेश के नाम पर उसने पिछली तिमाही में ही मात्र 44,000 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, जो पिछले वर्ष की तिमाही का एक चौथाई था। अगर स्थिति यही रहने वाली है तो नए रोजगार कहां से सृजित होने जा रहे हैं? और यदि नए रोजगार सृजित ही नहीं होंगे तो केंद्र सरकार किसे इंसेंटिव देने जा रही है? यह सवाल बेहद अहम है, और लगता है सरकार ने सिर्फ हेडलाइंस बनाने के लिए इसकी घोषणा की है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि, बजट देखकर लगा जैसे नरेंद्र मोदी ने जनता को नजरअंदाज कर, सिर्फ 2 मित्रों को साथ लिए कुर्सी बचाने का काम किया है। कांग्रेस ने जनता को मनरेगा, फूड सिक्योरिटी एक्ट, हेल्थ मिशन, राइट टू हेल्थ और मिड डे मिल जैसी योजनाएं दी हैं। लेकिन मोदी सरकार में लोगों से सिर्फ झूठ बोला गया है। इसलिए इस बार नरेंद्र मोदी ने अपनी गारंटी की बात नहीं की।
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि मनरेगा को लेकर इस बजट में कोई चर्चा नहीं की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में संकट अपने चरम पर है, और उम्मीद की जा रही थी कि इसे देखते हुए मनरेगा के बजट के साथ-साथ मजदूरी में भी वृद्धि की घोषणा की जायेगी। लेकिन सरकार ने इस विषय को सिरे से नजरअंदाज कर दिया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इस बारे में ध्यान दिलाते हुए कहा है, “बजट में केंद्र सरकार ने एक या दो नहीं, बल्कि कई महत्वपूर्ण बातों का जिक्र नहीं किया है। इसमें मनरेगा का जिक्र नहीं किया गया, जो गरीबों के लिए सबसे प्रमुख योजनाओं में से एक है। इसके अलावा, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेजी लाने की दिशा में भी बजट में कोई विशेष ध्यान नहीं रखा गया है। उधर, मौजूदा जीडीपी की दर को कैसे बढ़ाना है, इस दिशा में भी सरकार ने बजट के जरिए यह बता दिया है कि देश की जीडीपी कुछ भी रहे, हमें इससे कोई सरोकार नहीं है। लोगों की आय में कैसे इजाफा हो, इस दिशा में भी सरकार पूरी तरह से निष्क्रिय नजर आ रही है। पिछले दस सालों में लोगों की आय में गिरावट देखने को मिल रही है। मुझे नहीं लगता कि इस बजट में कुछ ऐसा है, जिससे खुश हुआ जा सके।”
इस बार के बजट से देश का मध्य वर्ग खास तौर पर दुखी नजर आ रहा है। आरबीआई और सेबी की हाल की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए लगता है सरकार भी अब मन बना रही है कि साधारण लोग अब शेयर बाजार से बाहर निकलें, और अपने निवेश को वापस बैंकों में जमा करें या खपत में वृद्धि को बढ़ाने में अपना योगदान दें। शायद यही कारण है कि बजट की घोषणा के साथ ही शेयर बाजार में आज तेजी से गिरावट का रुख देखने को मिला है। इस बार के बजट में सभी वर्गों और निवेशकों के लिए एंजेल टैक्स को खत्म करने का प्रस्ताव किया गया है।
आयकर में भी मुख्य जोर नए कर प्रणाली को स्थायी तौर पर लागू करने के लिए कर सीमा में थोड़ी बढ़ोत्तरी की गई है। स्टैण्डर्ड डिडक्शन को 50,000 से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दिया गया है, लेकिन नौकरीपेशा लोगों के लिए कुल बचत 17,500 रुपये से अधिक नहीं है, जिसे 1000-1200 रुपये की मासिक बचत से अधिक नहीं माना जा सकता है। आम लोगों को उम्मीद थी कि जीएसटी कर प्रणाली को सरल और 5-12% की श्रेणी में लाया जा सकता है, लेकिन सरकार को लगता है कि जीएसटी जैसे दुधारू गाय को दुहना छोड़ देने पर उसके हाथ से सोने का अंडा देने वाली मुर्गी चली जाएगी।
अलबत्ता सरकार ने बिहार के लिए 26,000 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपये की अलग से सहायता राशि देकर किसी तरह से पटाने की कोशिश अवश्य की है, जिसको लेकर आम लोगों में अच्छी खासी चर्चा है। सोशल मीडिया पर बिहार को लोकर मीम बन रहे हैं, जहां पिछले दिनों एक के बाद एक कर लगातार पुल और सड़कें ध्वस्त हो रहे हैं। बजट में पटना-पूर्णिया एक्सप्रेसवे, बक्सर-भागलपुर एक्सप्रेसवे, बोधगया-राजगीर-वैशाली-दरभंगा एक्सप्रेसवे के साथ-साथ बक्सर में गंगा पर दो लेन का अतिरिक्त पुल के लिए 26,000 करोड़ रुपये की मंजूरी की गई है। इसके अलावा, भागलपुर जिले में 21,400 करोड़ रुपये में पीरपैंती में 2400 मेगावाट का पॉवर प्लांट को भी मंजूरी देकर जेडीयू और अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को मद्देनजर रखने का काम किया गया है।
सोशल मीडिया पर लोग बिहार और आंध्र प्रदेश की तुलना मध्य प्रदेश, हिमाचल, दिल्ली और उत्तराखंड से कर रहे हैं, जहां से भाजपा को शत प्रतिशत लोकसभा सीटें हासिल हुई हैं। इनमें विशेषकर मध्य प्रदेश के मतदाताओं को याद दिलाया जा रहा है कि भाजपा के साथ 100% जाने का नतीजा उन्हें किस प्रकार से मिल रहा है। एक सोशल मीडिया यूजर का तो यहां तक कहना है कि, आजके बजट को देखकर लगता है कि भारत में सबसे अच्छा कैरियर यह होगा कि शेयर बाजार में ट्रेडिंग के बजाय बिहार में पुल या सड़क का ठेकेदार बना जाये।
हां, मुद्रा ऋण की सीमा को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये अवश्य किया गया है, लेकिन मुद्रा ऋण के साथ जो सबसे बड़ी खामी सामने आई थी कि इसमें बेहद छोटे-छोटे ऋण बड़ी संख्या में वितरित किये गये थे, जिसमें ढंग का रेहड़ी-पटरी का रोजगार भी मयस्सर होना कठिन है। दूसरी तरफ यदि कुछ बड़े ऋण पारित भी हुए हैं, तो उनकी रिकवरी की राह नहीं नजर आती। मुद्रा लोन का बड़ा हिस्सा राजनीतिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है, जिसके बारे में अभी तक ऑडिट नहीं हो पाया है।
पीएम आवास योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में 1 करोड़ शहरी गरीबों को 2.2 लाख करोड़ की केन्द्रीय सहायता राशि अगले 5 वर्षों में देने की बात कही गई है। इसी प्रकार पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत 1 करोड़ लोगों को सौर ऊर्जा से 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया गया है। लेकिन यह सब कैसे अमल में आने वाला है या इसके लिए भी अंबानी-अडानी के लिए ही चीनी उत्पाद की खरीद के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोला जा रहा है, इस बारे में बजट में कोई स्पष्टीकरण नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक एवं मोबाइल वस्तुओं पर कस्टम ड्यूटी में करीब 15% की कमी की घोषणा की गई है, जो हाल के दिनों में चीनी उत्पादों पर बढ़ती निर्भरता और आने वाले दिनों में अंबानी, सज्जन जिंदल जैसों के लिए चीनी कंपनियों के साथ निवेश के लिए खुली बाहों के साथ दरवाजे खोल देने के तौर पर देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि इस बार का बजट दिग्भ्रमित तो है ही, लेकिन इसमें देश की जनता को कुछ समय तक भरमाने का माद्दा भी है। बुनियादी मुद्दों पर ठोस उपायों को अपनाने के बजाय फायर ब्रिगेड की तरह काम करने की हड़बड़ी है। अगले एक-दो दिनों में जब बजट के सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से चर्चा होगी, उसके बाद ही यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि नहाने लायक पानी है या निचोड़ने लायक।