अग्नि आलोक
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4 कविताएं 

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आजकल के ये बच्चे / मेरा प्यारा गांव है ये / बंधना औरतें ही क्यों सीखे? / 5G के जमाने में भी नेटवर्क की कमी

आजकल के ये बच्चे

पूजा आर्या
चौरा, उत्तराखंड

आजकल के ये बच्चे, नहीं लगते अब सच्चे,
मां बाप की डांट, नहीं मानते वे अच्छे,
मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में,
हर वक्त वो खोए खोए से हैं रहते,
पहले जितनी मेहनत अब वे नहीं करते,
दोस्तो के संग मौज मस्ती उन्हें खूब भाता,
घर का अनुशासन अब उन्हें रास न आता,
आधुनिकता के नाम पर फैशन में खोए रहते,
बड़ो का आदर और मान सम्मान करना भी,
अब वो जरूरी ही नहीं समझते,
नाचने-गाने और सैर सपाटे में ही,
उनको बड़ा ही मजा आता है,
पढ़ाई लिखाई भी अब उन्हें कम ही भाता है,
इसलिए आजकल के बच्चे, नहीं लगते अब सच्चे।।

मेरा प्यारा गांव है ये

गरिमा जोशी
उत्तरोडा, उत्तराखंड

मेरा प्यारा गांव है ये,
सुंदर सुंदर गांव है ये ,
बारिश की बूंदों से हरियाली आई,
जगह जगह खुशहाली छाई,
खेतों में चमचमाहट है,
हवाओं में सनसनाहट है,
बूंद-बूंद में मुस्कुराहट है,
पहाड़ों पर जरा तुम देखो,
कैसी खुशी हर तरफ है छाई,
एक तरफ कोहरा उठाता हुआ,
दूसरी तरफ चिड़ियों का शोर है,
नदियों का पहाड़ से गिरना,
दीवारों को तोड़ बाहर निकलना,
चारों तरफ़ छाई हरियाली ये,
मेरा ऐसा प्यारा गांव है ये।।

बंधना औरतें ही क्यों सीखे?

पूजा गोस्वामी
गरुड़, उत्तराखंड

समाज में रहना है तो,
बंध कर रहना होगा,
घर से बाहर निकलने से पहले,
समाज के बारे में सोचना ही होगा,
चूल्हे पर रोटी सेकने वाली औरतें,
बाहर काम नहीं कर सकती हैं,
लड़कियों से घर की इज्जत है,
वे लड़कों से दोस्ती नहीं कर सकती है,
समाज की चार बातों से डर कर,
हाफ शॉर्ट्स नहीं पहन सकती है,
माता पिता की इज्जत की ख़ातिर,
सुसराल में अपनी इच्छा को दबाती है,
आखिर लड़कियां भी तो इंसान हैं,
किसी के हाथों की कठपुतलियां नहीं,
जब चाहे नाच नचाये समाज,
जब चाहे बंधन में बांधे समाज,
रोक टोक की इस बस्ती में,
औरत का ही क्यों बसेरा है?
उनमें भी है उड़ने का आकार,
मत छीनो तुम उनसे ये सारा अधिकार॥

5G के जमाने में भी नेटवर्क की कमी

महिमा जोशी
कपकोट, उत्तराखंड

बैठी अंदर मैं, जमाना आगे बढ़ गया,
खिड़की से देखा बाहर तो 5G आ गया,
न जाने कितने गांवों को ये समस्या सता रही,
ऑनलाइन हो गया है जीवन का सारा काम,
मगर गांव में नेटवर्क का नहीं है कोई नाम,
सिग्नल के लिए चल पड़े जंगल की ओर,
वहां जानवर भी हंस पड़े, देख कर हमारी ओर,
आधा अधूरा काम किए, डर कर फिर घर दिए,
एक खंभा यहां भी गढ़वा दो ना,
गांव में नेटवर्क हमे भी दिला दो ना,
सुना है डिजिटल लाया सुविधा हजार,
लैपटॉप में भी सुविधाओं की बहार,
अब तो हम भी सीखना चाहेंगे,
दिन चौगुनी और हर बार हजार।।

चरखा फीचर

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