अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

हुकूमत पकड़ने को बेताब थी,इसके बावजूद रेडियो से ललकार जारी थी….. ।

Share

(भाग- 7)प्रोफेसर राजकुमार जैन

(ए वतन, मेरे वतन”, फिल्म कीं हकीकत)

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत, वह भी रेडियो के मार्फत, सरकार इसको कैसे बर्दाश्त करती? सरकारी हुक्म जारी हुआ, कैसे भी हो जल्द से जल्द इनको पकड़ो। एक तरफ कांग्रेस रेडियो पूरे जोश खरोश से आजादी के तराने, अंग्रेजी सल्तनत को हिंदुस्तान से बाहर खदेड़ने के पैगाम, जोशीली तकरीरो, लेखों, गानों से हिंदुस्तानी आवाम में जोश भर रहा था, वही सरकारी मशीनरी भी उतनी ही मुस्तैदी से रेडियो स्टेशन को पकड़ने में लगी थी। रेडियो संचालकों ने प्रमुख नेताओं के नाम इसलिए बदल दिए थे कि यदि कोई कार्यकर्ता पकड़ा भी जाए तो पुलिस उससे सही नाम ना जान पाए। पुलिस को केवल नकली नाम ही पता लगे। डॉ लोहिया ”वैद्”‘ जयप्रकाश नारायण “मेहता” अरुणा आसफ अली “कुसुम” तथा सुचेता कृपलानी “दीदी” नाम से पहचानी जाती थी। थोड़े दिनों के बाद नाम फिर से बदल दिए जाते थे। यदि पुलिस को इन नामो के बारे में पता चले तो उन्हें अंधेरे में रखा जा सके।
कांग्रेस रेडियो दो तरह की मुश्किलों का सामना कर रहा था। आर्थिक साधनों का जुगाड़ करना तथा पुलिस द्वारा रेडियो तरंगों को पकड़ने वाली तकनीक से लैस, खोजी पुलिस वैन जो पता लगाने के लिए पीछा कर रही थी उससे बचना। इस कारण रेडियो चलाने वाले एक जगह से दूसरी जगह बदलते रहते थे। सरकारी दस्ता बड़ी तकनीक और यंत्रों की सहायता से कांग्रेस रेडियो को ठप करने की भी कोशिश करता रहता था। कांग्रेस रेडियो ने उन्हीं की तरह “ऑल इंडिया रेडियो” (सरकारी भोंपू) को जाम करने का भी प्रयास किया। तथा अपने प्रचार में उसे ऑल इंडिया रेडियो न कहकर एंटी इंडिया रेडियो कहना शुरू कर दिया। कांग्रेस रेडियो ने पूरे मुल्क में प्रसारण का एक नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश की ताकि यदि कोई एक सेट जब्त हो जाए तो रेडियो का काम रुक ना पाए। हालांकि इस दिशा में केवल दो सेट तैयार करने तक ही कामयाब रहे। कांग्रेस रेडियो ने एक और काम, प्रसारण और रिकॉर्डिंग स्टेशन को अलग-अलग कर दिया। विट्ठल भाई प्रसारण स्टेशन के इंचार्ज थे, वहीं रिकॉर्डिंग स्टेशन के निर्देशक के रूप में भी काम कर रहे थे। रेडियो स्टेशन से प्रसारण होने वाली वार्ताओं, लेखों, भाषणों तथा अन्य जानकारी को तैयार करने वाले लेखको, कर्मचारियों का भी एक ग्रुप बना हुआ था।
इस काम में सबसे अहम भूमिका डॉ राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, हैरिस मोइनुद्दीन, और कूमि दस्तूर निभाती थीअधिकतर अंग्रेजी भाषण डॉ लोहिया और कूमि दस्तूर द्वारा प्रसारित किए जाते थेहिंदी में मोइनुद्दीन हैरिस, अच्युत पटवर्धन और उषा मेहता इस कार्य को करती थी
रेडियो स्टेशन में लिखने- पढ़ने, बोलने वालों के साथ-साथ और कई तरह से मदद करने करने वाला एक दस्ता भी काम करता था। रिकॉर्डिंग स्टेशन से प्रसारण स्टेशन तक लाने ले जाने की जिम्मेदारीं इन्ही की थी। पुलिस हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई थी, रेडियो के काम में बहुत सारे टेक्नीशियन भी लगे हुए थे, इनमें से एक तकनीशियन जगन्नाथ गिरफ्तार हो गए। पकड़े गए टेक्नीशियन से पुलिस को पता चला कि रेडियो स्टेशन को चलाने का मुख्य काम उषा मेहता, बाबू भाई खाकर, विट्ठल भाई झावेरी कर रहे हैं। पुलिस ने 12 नवंबर को बाबू भाई खाकर के दफ्तर पर छापा मारा। उषा मेहता तथा दो अन्य सहयोगी भी उस वक्त दफ्तर में मौजूद थे परंतु जब इनको पता चला की पुलिस ऑफिस में आई है, तो दफ्तर में मौजूद लोगों ने महत्वपूर्ण फाइलों और कांग्रेस रेडियों से जुड़े साहित्य को वहां से हटाने की कोशिश की,तथा कामयाब भी रहे। वहां से तुरंत उषा मेहता रिकॉर्डिंग स्टेशन पहुंची, जहां डॉक्टर लोहिया, मोइनुद्दीन हैरिस शाम को प्रसार होने वाले प्रोग्राम की तैयारी में व्यस्त थे। उषा मेहता ने डॉक्टर लोहिया को कहा कि हमारे कुछ सहकर्मी हिरासत में हैं। बाबू भाई के कार्यालय पर छापा पड़ा है, आगे क्या होगा कोई नहीं जानता ? इसको सुनकर डॉक्टर लोहिया की प्रतिक्रिया थी कि हमारे प्रसारण रेडियो स्टेशन का क्या होगा? इस पर उषा मेहता ने कहा “फैसला आपका, उसको अमली जामा पहनाना हमारा“।
जल्दी से विट्ठल भाई, मोहिउद्दीन तथा अन्य कुछ की राय जानकर डॉक्टर लोहिया ने कहा, “आजादी के लिए लड़ाई रुकनी नहीं चाहिए, हालात चाहे जितने खिलाफ हो, लड़ाई जारी रखनी है*।” *इस पर उषा मेहता ने पलट कर कहा “काम जारी रहेगा*”
इसके फौरन बाद उषा मेहता उस टेक्नीशियन के सहायक के पास गई जो बाबू भाई के ऑफिस में पुलिस को लाया था।उससे अनुरोध किया की रात भर में एक और ट्रांसमीटर तैयार कर दो। उसने इस कार्य को पूरा करने की हामी भर ली। इसके बाद उषा मेहता अपने भाई चंद्रकांत तथा झावेरी के साथ प्रसारण स्टेशन गई। पहले से तय प्रोग्राम के मुताबिक प्रसारण हुआ। कांग्रेस रेडियो पर “हिंदुस्तान हमारा” बजा। उसके बाद कुछ खबरें तथा एक वार्ता भी प्रसारित हुई। वंदे मातरम बज रहा था तभी दरवाजे पर कड़ी दस्तक हुई, तथा डिप्टी कमिश्नर पुलिस, उसके साथ मिलिट्री टेक्नीशियन, तकरीबन 50 पुलिस वाले, तीन दरवाजे तोड़कर अंदर दाखिल हो गए। *उन्होंने हुक्म दिया कि बंदे मातरम रिकॉर्ड बजाना बंद करो। परंतु उषा मेहता ने ऐसा करने से मना कर दिया। उषा मेहता रेडियो पर इसकी जानकारी देना चाहती थी, परंतु गद्दार टेक्नीशियन की मदद से पुलिस ने फ्यूज को बिगाड़ दिया, जिसके कारण हर जगह अंधेरा छा गया। पुलिस को डर लग रहा था कि शायद गिरफ्तार उषा मेहता ओर उनके साथी भाग न जाए। उस समय जो लोग रेडियो सुन रहे थे, उन्होंने रेडियो पर बड़ी कड़ी आवाज़े सुनी, दरवाजा तोड़ने की आवाज से उनको लगा की जरूर कोई बड़ी बात है। ….. (जारी है*–)

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें